- दुर्दात दुबे के शरणदाताओं के खिलाफ पनकी थाने में केस दर्ज, देरी पर उठे सवाल

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KANPUR: कुख्यात विकास दुबे से जुड़े मामलों में खाकी की लापरवाही का सिलसिला जारी है। विकास दुबे और उसके गुगरें को शरण देने और फरारी के दौरान मदद करने वालों पर रिपोर्ट दर्ज करने में पुलिस को 17 दिन लग गए। वेडनसडे को पनकी थाने में एफआईआर दर्ज की गई। एसटीएफ ने जिन छह मददगारों को जेल भेजा था, पुलिस ने उनको ही आरोपी बनाया है। कुछ अज्ञात भी एसटीएफ की लिस्ट में शामिल हैं। एफआईआर में इतनी देरी से पुलिस की कार्यशैली पर तो सवालिया निशान लगता ही है। साथ ही सवाल खड़ा होता है कि आखिर मददगारों की गिरफ्तारी के तुरंत बाद केस दर्ज क्यों नहीं किया?

1 मार्च को की थी अरेस्टिंग

एसटीएफ ने एक मार्च को सात लोगों को असलहों के साथ गिरफ्तार किया था। इसमें विष्णु कश्यप, अमन शुक्ला, रामजी उर्फ राधे, अभिनव तिवारी, संजय परिहार, शुभम पाल और मनीष यादव शामिल थे। सभी जेल में बंद हैं। एसटीएफ की तफ्तीश में पता चला था कि मनीष यादव की भूमिका असलहों की खरीदारी में थी जबकि अन्य छह आरोपियों ने विकास दुबे, अमर दुबे और प्रभात मिश्र को वारदात के बाद से लेकर तीन दिनों तक शरण दी थी।

सभी के खिलाफ धारा 216

डीआईजी डॉ। प्रीतिंदर सिंह ने बताया कि इन सभी के खिलाफ धारा 216 के तहत केस दर्ज किया गया। जांच की जाएगी कि इसमें और कोई शामिल है या नहीं। अगर किसी और के खिलाफ इविडेंस मिलता है तो उसको भी आरोपी बनाया जाएगा। ऐसे अपराधी को शरण देना जो पुलिस कस्टडी से भाग निकला है। या जिसको पकड़ने का आदेश दिया जा चुका है। ये संज्ञेय अपराध है। इसमें सजा 7 साल या जुर्माना या दोनों हैं।

पुलिस का दावा, इसलिए हुई देरी

पुलिस अफसरों ने एक मार्च को ही कहा था कि मामले में मददगारों के खिलाफ आ‌र्म्स एक्ट के अलावा भी कार्रवाई की जाएगी। पुलिस अफसरों का कहना है कि दरअसल इसमें संशय था कि इन सभी के नाम बिकरू कांड के केस में बढ़ाए जाएं या अलग से केस दर्ज किया जाए। इसको लेकर कानूनी सलाह मांगी गई थी। जिसमें तय हुआ कि अलग से एफआईआर दर्ज की जाएगी। राय लेने में समय लगा, इसलिए देर से एफआईआर हो सकी।