कानपुर(ब्यूरो)। कानपुर प्राणि उद्यान ने गैंडों के संरक्षण व प्रजनन में महत्पपूर्ण भूमिका निभाई है। यहां जन्मे गैंडों ने केवल देश नहीं बल्कि विदेश में भी सिटी का नाम रोशन किया है। प्राणि उद्यान में फीमेल गैंडों ने अब तक 10 बच्चों को जन्म दिया है। इनको पटना, जूनागढ़, लखनऊ, गुजरात, हैदराबाद के चिडिय़ाघरों के अलावा जापान के चिडिय़ाघर भेजा जा चुका है।

देश के कई जू में भेजे
प्राणि उद्यान में वर्तमान समय में तीन गैंडे हैं। इनमें एक फीमेल और दो मेल हैं। प्राणि उद्यान में वर्ष 1973 में असम से फीमेल गैंडा मयंक कुमारी और वर्ष 1974 में मेल गैंडा लक्षित को लाया गया। इनके मिलन से प्राणि उद्यान में गैंडों का कुनबा बढ़ता गया। इनकी संख्या में इतनी वृद्धि हुई कि उनको देश के दूसरे चिडिय़ाघरों में भेजा जाता रहा। इस तरह गैंडों की संख्या बढ़ाने में प्राणि उद्यान ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

1985 में जापान भेजा गया था
प्राणि उद्यान के वन्य जीव चिकित्सक डॉ। मोहम्मद नासिर बताते हैं कि लक्षित व मयंक कुमारी के मिलन से रोहित, मोहित, लोहित और रश्मि गैंडे का जन्म हुआ। इनमें से रश्मि को वर्ष 1985 में जापान के चिडिय़ाघर भेजा गया। बाद में मोहित व मयंक कुमारी से वर्ष 1996 में मेल गैंडा तरुण और वर्ष 2003 में फीमेल मानू पैदा हुए। इनमें से तरुण को लखनऊ के प्राणि उद्यान भेज दिया गया, जबकि मानू अब भी प्राणि उद्यान में है। मानू व रोहित से वर्ष 2013 में पवन व वर्ष 2015 में कृष्णा का जन्म हुआ। वर्तमान समय में पवन, कृष्णा व मानू प्राणि उद्यान में हैं।

गैंडों की संख्या बढ़ाने के प्रयास
प्राणि उद्यान में गेंडों की संख्या बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं। इसके लिए मेल व फीमेल गैंडे का आपस में मेलजोल बढ़ाया जा रहा है। प्राणि उद्यान के फॉरेस्ट अफसर नवेद इकराम बताते हैं कि गैंडा शांत स्वभाव का होता है, लेकिन एक बाड़े में एक से अधिक गैंडे रखने पर वे आक्रमक हो सकते हैं।

प्राणि उद्यान का नेचुरल नेचर गैंडों के लिए मुफीद है। यह संकटग्रस्त वन्य जीवों की सूची में शामिल है। ऐसी स्थिति में प्राणि उद्यान की गैंडों के संरक्षण व उनकी संख्या बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
-केके सिंह, निदेशक, प्राणि उद्यान