कानपुर (ब्यूरो)। अब तक एफआईआर दर्ज कराने के लिए आपको थाने, चौकी, एसीपी ऑफिस के साथ-साथ पुलिस कमिश्नर ऑफिस के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे। शासन ने बीपीओ (बीट पुलिस ऑफिसर) और डॉयल-112 के पुलिस कर्मियों को एफआईआर दर्ज करने के आदेश दे दिए हैैं। कानपुर कमिश्नरेट में इसका सर्कुलर भी जारी कर दिया गया है। आने वाली 7 जून तक ये प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी। फस्र्ट फेज में सीनियर सिटीजन और फिजिकली हैैंडीकैप्ड लोगों को इस सेवा का फायदा दिया जाएगा, इसके बाद जल्द ही सभी लोगों को इस सेवा का लाभ मिल सकेगा।

ऐसे दर्ज होगी एफआईआर
घटना होने के बाद सबसे पहले घटनास्थल पर बीपीओ या डॉयल-112 की टीम ही मौके पर पहुंचती है। घटनास्थल पर पहुंचकर सबसे पहले शांति व्यवस्था कायम करने के बाद अधिकारियों को घटना की जानकारी दी जाएगी। घायलों को अस्पताल भेजा जाएगा। इसके बाद बीपीओ या डॉयल-112 के पुलिस कर्मी दोनों पक्षों से मिलकर मामले की जानकारी करेंगे, मौके पर मौजूद दोनों पक्षों के लिखित बयान दर्ज किए जाएंगे। फिर घटनास्थल से अपने मोबाइल से स्कैन कर एप्लीकेशन थाने और अधिकारियों को भेजेंगे। जहां से उनके मोबाइल पर ऑनलाइन फार्मेट मिल जाएगा। इस ऑनलाइन फार्मेट में थाने से ही धाराएं लिखकर आएंगी। चंद मिनटों में ही पीडि़त को एफआईआर उनके मोबाइल पर दे दी जाएगी।


सीनियर सिटीजन और फिजिकली हैैंडीकैप्ड
फस्र्ट फेज में इस व्यवस्था को सीनियर सिटीजन और हैैंडीकैप्ड लोगों के लिए शुरू किया जाएगा। इसके बाद नियमानुसार डॉयल-112 के ऑफिस से न सिर्फ इस एफआईआर की फीडिंग की जाएगी बल्कि इसकी मॉनीटरिंग भी की जाएगी। बयान देने के लिए इन दोनों कैटेगिरी के लोगों को थाने चौकी या आईओ (इनवेस्टिगेशन ऑफिसर) के पास नहीं जाना पड़ेगा। आईओ आपसे फोन पर बात कर आपके समय के मुताबिक ही बयान दर्ज करने आएगा। शुरुआत में लड़ाई, झगड़ा, मारपीट, गाली गलौज, लाठी डंडे से मारपीट समेत दो दर्जन से ज्यादा धाराएं इस सिस्टम में फीड की गई हैैं। इस सिस्टम पर काम लगातार चल रहा है, अधिकारियों की माने तो बड़े क्राइम (हत्या, रेप, हत्या का प्रयास, रेप का प्रयास। डकैती, लूट और टप्पेबाजी)और फाइनेंशियल फ्रॉड अभी इस सिस्टम में शामिल नहीं किए गए हैैं। इन क्राइम की रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए थाने ही जाना पड़ेगा।

इनकी सीधी दर्ज नहीं होगी एफआईआर
धोखाधड़ी और अमानत में खयानत के मामले में सीधे एफआईआर दर्ज न करने के लिए शासन से निर्देश जारी किए गए हैैं। निर्देश के मुताबिक इस तरह के केस दर्ज कराने के लिए पहले अभियोजन की राय लेनी पड़ेगी। अगर अभियोजन की सहमति होगी, तभी केस दर्ज किया जाएगा। न सिर्फ अभियोजन की राय से केस लिखा जाएगा बल्कि केस चलने के दौरान भी अभियोजन की इस राय को बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हुए इसे शामिल किया जाएगा।

एफआर और चार्जशीट में मिलेगी मदद
फस्र्ट फेज के बाद अगर कमिश्नरेट का ये प्लान सफल रहा तो पुलिस का चार्जशीट और फाइनल रिपोर्ट में समय बच जाएगा। दरअसल घटनास्थल पर पहले पहुंचने वाले बीपीओ या पीआरवी कर्मियों की जानकारी में घटना की असलियत की जानकारी होगी। दोनों पक्षों में से कोई भी घटना को प्लांट नहीं कर पाएगा।