Laxmi
हर पल मौत उसके करीब आती जा रही है। इलाज के लिए उसके भाई ने अपने हर सपने को कुर्बान कर दिया। खेती से लेकर घर की हर चीज बिक गई। मगर
, उसकी बीमारी ने पीछा नहीं छोड़ा। अब तो डॉक्टर्स ने भी जवाब दे दिया है। सांसों के लिए उसे हर हफ्ते दो बॉटल खून की जरूरत पड़ती है। फिर भी भाई ने उम्मीद नहीं छोड़ी है। बहन की जिंदगी के लिए खुद 24 बार खून दे चुके भाई को अब इस कानपुराइट्स से आस है। उसकी अपील है आप उसकी हेल्प करें और उसकी जिंदगी बचा लें.

 ऐसा बुखार आया कि

परमट के टैफ्को कॉलोनी के पहाड़ी लाइन में रहने वाली लक्ष्मी जानलेवा ए-प्लास्टिक एनीमिया बीमारी से पीडि़त है। 22 साल की लक्ष्मी साल 2002 से यह दर्द झेल रही हैउसकी जिंदगी एक चारपाई तक ही सीमित है। लक्ष्मी का भाई ब्रह्मा तिवारी एक प्राइवेट ब्लड बैंक में काम करता है और इंटर के स्टूडेंट्स को ट्यूशन पढ़ाकर घर खर्च चला रहा है। उसने बताया कि नौ साल पहले लक्ष्मी को एक दिन बुखार आ गया। उसने बहन को हैलट में एडमिट करा दिया था जहां उसे पांच बोतल खून चढ़ाया गया। डॉक्टर ने कहा, खून की कमी है और कोई चिंता की बात नहीं है। लेकिन 15 दिन बाद फिर तेज बुखार आया और वो बेहोश हो गई। फिर खून की बोतलें चढ़ाई गईं। तब से यह सिलसिला आज तक रुका नहीं है। धीरे-धीरे महीने में तीन से चार बार खून की बोतलें चढऩे लगीं।

 बहन ही मेरी जिंदगी है

ब्रह्मा ने कहा कि मेरी बहन ही मेरी जिंदगी है और उसी को भगवान मुझसे छीन रहा है। जिस दिन से डॉक्टर ने इसके कभी न ठीक होने की खबर दी है। तब से मैंने भगवान की पूजा करना तक छोड़ दिया है. अपने सपनों को पूरा करने के लिए फतेहपुर से गांव छोडक़र यहां आया था। लक्ष्मी भी पूरी मेहनत से पढ़ाई कर रही थी। नाइंथ में अच्छे माक्र्स आए, लेकिन हाईस्कूल का पहला पेपर देते ही उसे तेज बुखार हुआ। इस बुखार ने ही हम सब की जिंदगी का मकसद ही बदल दिया।

तुम नहीं करा पाओगे इलाज

ज्यादा बुखार होने बाद डॉ। सुनील तनेजा को दिखाया। उन्होंने कुछ टेस्ट किए। रिपोर्ट देखने के बाद डॉ। तनेजा ने जो बताया उसने मुझे झकझोर कर रख दिया। डॉक्टर ने कह दिया कि तुम्हारी बहन एक बड़ी बीमारी से जूझ रही है। इसे घर ले जाओ। इलाज बहुत महंगा है। तुम नहीं करा पाओगे। फिर भी मैंने उम्मीद नहीं खोई। मैंने दोस्तों और रिश्तेदारों से मशविरा किया तो मुम्बई के डॉ। एमबी अग्रवाल का पता चला। हम वहां पहुंचे और बहन को 15 दिन तक एडमिट कर इलाज करवाया। बीमारी कारण पूछने पर डॉक्टर ने मेडिसिंस का ओवरडोज बताया। यह भी कहा कि समय बहुत हो चुका है। अब घर ले जाकर बहन की सेवा करो.

110 लोग दे चुके है खून

लक्ष्मी को अब तक 110 लोग ब्लड दे चुके हैं। उसे हफ्ते में दो बोतल ओ पॉजिटिव ग्रुप का ब्लड चढ़ाना ही पड़ता है। भाई ब्रह्मा भी अब तक 24 बार खून दे चुका है। मोहल्ले में रहने वाले ज्यादातर लोग भी लक्ष्मी को अपना खून दे चुके हैं। इंफेक्शन के डर की वजह से डॉक्टर्स भी उसे हॉस्पिटल में एडमिट नहीं कर रहे। अब उसे घर में ही खून चढ़ाया जाता है। सिर्फ ढाई हजार की मंथली इंकम में लक्ष्मी का ट्रीटमेंट मुश्किल साबित हो रहा है।

और कुछ नहीं चाहिए

लास्ट मंथ लक्ष्मी का हीमोग्लोबिन घटकर तीन रह गया था। लक्ष्मी को कभी भूख लगती है तो कभी भूख प्यास का अंदाजा तक नहीं होता। लक्ष्मी के भाई ने बताया कि वो आने-जाने वाले सभी लोगों से बहन को खून देने की रिक्वेस्ट करते हैं। ब्रह्मï तिवारी के मुताबिक भले ही घरवालों को भूखा सोना पड़े। मगर, सबसे पहले लक्ष्मी की दवाई घर में लाई जाती है.

टूट चुकी है वो

लक्ष्मी की मां सूरजमुखी बेटी को कभी अकेला नहीं छोड़ती है। सारा दिन लक्ष्मी के पास बैठकर उसे बातें करती है और उसको हिम्मत बंधाती है। लक्ष्मी की मां सूरजमुखी बताती है कि लक्ष्मी बहुत साहसी थी लेकिन अब अंदर से टूट चुकी है। वो कहती है भाई को कहो कि मेरे लिए इतना परेशान न हो, इतनी मेहनत न करो। अपने परिवार के लिए पैसे जोड़ो। मैं अब कुछ ही दिनों की
मेहमान हूं।

अनुज ने जगाई उम्मीद

ब्रह्म का जिंदगी का एक ही लक्ष्य है, अपनी बहन की जिंदगी बचाना.  पिछले साल आई नेक्स्ट में प्लास्टिक एनीमिया से जूझ रहे अनुज की खबर से भी ब्रह्मा को उम्मीद की किरण जगी है। अनुज अब पूरी तहर ठीक हो चुका है। ब्रह्मा ने अनुज के फादर से मुलाकात कर उनसे मदद ली। पूछा अनुज का इलाज कहां और कैसे हुआ? अनुज का ट्रीटमेंट तमिलनाडु में हुआ था। अब ब्रह्मा ने लक्ष्मी को तमिलनाडु ले जाने की तैयारी कर ली है। डॉक्टर से 15 जुलाई का अप्वांइटमेंट मिल गया है।

बिक गया सबकुछ

ब्रह्मï कहते हैं कि इलाज में उनका सब कुछ बिक चुका है मगर बहन की जिंदगी के लिए वह कुछ भी कर सकते हैं। इलाज के लिए बैंक से सिर्फ 55 हजार रूपए मिलें है लेकिन इलाज के लिए ये काफी नहीं है। अगर शहरवासियों से थोड़ी-थोड़ी मदद भी मिल जाए तो उसकी लड़ाई आसान हो जाएगी। मेरी बहन की जिंदगी ही मेरा मकसद है।