लड़कियों की शिक्षा के लिए अभियान चलाने वाली मलाला यूसुफ़ज़ई को उस समय गोली मार दी गई थी जब वो स्कूल से घर वापस लौट रही थी। मंगलवार को ये घटना स्वात घाटी के मुख्य शहर मिंगोरा में हुई। इस हमले में दो अन्य लड़कियों भी घायल हो गई थी।

शुरु में जिन डॉक्टरों ने मलाला का इलाज किया उनका कहना था कि वो खतरे से बाहर है लेकिन इसके बाद उसे इलाज के लिए हेलीकॉप्टर से पेशावर ले जाया गया।

पाकिस्तान के तालिबान ने इस हमले की ज़िम्मेदारी स्वीकार की है। पाकिस्तानी तालिबान के प्रवक्ता एहसानउल्लाह एहसान ने बीबीसी उर्दू को बताया कि मलाला पर इसलिए हमला किया गया क्योंकि वो तालिबान के खिलाफ थी, धर्म निरपेक्ष थी और उसे बख्शा नहीं जाएगा।

हमले की निंदा

पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी ने कहा है कि इस हमले से इस्लामिक चरमपंथियों से लड़ने की पाकिस्तान की प्रतिबद्धता पर असर नहीं पड़ेगा।

वहीं प्रधानमंत्री राजा परवेज़ अशरफ ने कहा, "हमें उस मानसिकता से लड़ना होगा जो हमले के लिए ज़िम्मेदार है। हमें इसकी निंदा करनी होगी। मलाला मेरी बेटी की तरह है, वो आपकी भी बेटी है। अगर ऐसी ही मानसिकता रही तो किसकी बेटी सुरक्षित रहेगी."

इस हमले की व्यापक रूप से निंदा हुई है और सोशल मीडिया पर भी बहस छिड़ गई है। दुनिया भर के हजारों लोग सोशल मीडिया के जरिए मलाला के समर्थन में संदेश भेज रहे है।

पाकिस्तान के प्रमुख राजनीतिक दलों, टीवी हस्तियों और मानव अधिकार समूहों के सबसे द्वारा की निंदा की है। अमरीका के विदेश मंत्रालय ने इसे बर्बर और कायरतापूर्ण कार्रवाई कहा है।

मलाला पहली बार सुर्खियों में वर्ष 2009 में आईं जब 11 साल की उम्र में उन्होंने तालिबान के साए में ज़िंदगी के बारे में बीबीसी उर्दू के लिए डायरी लिखना शुरु किया। इसके लिए उन्हें वर्ष 2011 में बच्चों के लिए अंतरराष्ट्रीय शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था।

पाकिस्तान की स्वात घाटी में लंबे समय तक तालिबान चरमपंथियों को दबदबा था लेकिन पिछले साल सेना ने तालिबान को वहां से निकाल फेंका।

बहादुरी के लिए पुरस्कार भी मिला

मलाला सिर्फ़ 11 वर्ष की थीं जब तालिबान ने स्वात घाटी में लड़कियों के स्कूल बंद करने का फ़रमान जारी किया था। मलाला ने गुल मकाई नाम से बीबीसी उर्दू के लिए डायरी लिखी जिसमें उन्होंने तालिबान के शासन की वजह से लोगों को हो रही मुसीबतों का खुलासा किया।

उनकी पहचान लोगों के सामने तब आई जब स्वात से तालिबान को खदेड़ा जा चुका था। बाद में उन्हें वीरता के लिए राष्ट्रीय पुरुस्कार मिला और वो बच्चों के एक अंतरराष्ट्रीय शांति पुरुस्कार के लिए नामांकित की गईं।

राजनेता बनने की इच्छा

पिछले साल बीबीसी से बातचीत में उन्होंने बताया कि लड़कियां डरती थीं कि "तालिबान उनके चेहरे पर तेज़ाब फेंक सकते हैं या उनका अपहरण कर सकते हैं."

मलाला ने बताया था, "इसलिए उस वक्त हम कुछ लड़कियां वर्दी की जगह सादे कपड़ों में स्कूल जाती थीं ताकि लगे कि हम छात्र नहीं हैं। अपनी किताबें हम शॉल में छुपा लेते थे."

तालिबान के लड़कियों की शिक्षा पर प्रतिबंध लगाने के बारे में मलाला की डायरी का एक हृदयस्पर्शी अंश कुछ इस प्रकार है: "आज स्कूल का आखिरी दिन था इसलिए हमने मैदान पर कुछ ज़्यादा देर खेलने का फ़ैसला किया। मेरा मानना है कि एक दिन स्कूल खुलेगा लेकिन जाते समय मैंने स्कूल की इमारत को इस तरह देखा जैसे मैं यहां फिर कभी नहीं आऊंगी."

बड़े होकर मलाला क़ानून की पढ़ाई करने और राजनीति में जाना चाहती हैं। उन्होंने कहा था, "मैंने ऐसे देश का सपना देखा है जहां शिक्षा सर्वोपरि हो."

International News inextlive from World News Desk