कानपुर (ब्यूरो)। जेएनएनयूआरएम के अन्र्तगत घर घर नल से जल पहुंचाने के लिए अरबों रुपए पानी की तरह बहा दिए गए लेकिन, करप्शन में डूबी पाइपलाइनों की वजह से कानपुराइट्स के घरों में नलों से एक बूंद तक नहीं गिरी। लाइन चालू करते ही जगह जगह लीकेज के चलते फौव्वारे छूटने लगते हैं। सैकड़ों जगह लाइन में लीकेज और पाइप में गैप के चलते ये लाइन बेकार हो चुकी है। ऐसे में अब 112 करोड़ रुपए से नई फीडरमेन लाइन बिछाने की तैयारी की गई है। जो कि पहले से बिछी पाइपलाइन के पैरलल और सेम साइज की होगी। जलनिगम ने टेंडर कॉल कर लिए हैं। अगले महीने टेंडर ओपेन होंगे। इसी के साथ पाइपलाइन बिछाने के लिए एक बार फिर रोड पर खंजर चलेगा। लोगों को ट्रैफिक प्रॉब्लम के बाद धूल-गर्द का भी सामना करना पड़ेगा।
सभी 110 वाड्र्स के घरों में
सिटी में ड्रिकिंग वाटर क्राइसिस की समस्या हल करने और घरों तक सरफेस वाटर (गंगा का पानी) पहुंचाने के लिए जेएनएनयूआरएम में दो हिस्सों में प्रोजेक्ट बनाया गया था। जवाहर लाल अरबन रिन्यूवल मिशन(जेएनएनयूआरएम) के फेज वन में इनर ओल्ड एरिया के 67 वार्डो को शामिल किया गया था। इसमें 270.95 करोड़ रुपए से वाटर वक्र्स, फीडर मेन लाइन, वाटर ट्रीटमेंट प्लांट, जोनल पम्पिंग स्टेशन आदि कार्यो की प्लानिंग की, लेकिन लेटलतीफी के चलते प्रोजेक्ट कास्ट बढ़ते-बढ़ते लगभग 394 करोड़ रुपए पहुंच गई। इसी तरह फेज 2 में शेष बचे 33 वार्डो में 340 करोड़ से रिजरवॉयर, ओवरहेड टैंक आदि बनाने के कार्यो को शामिल किया। लेटलतीफी के कारण इस प्रोजेक्ट की कास्ट भी बढक़र 475 करोड़ से अधिक हो गई.
वाटर ट्रीटमेंट प्लांट भी बनाए गए
वर्ष 2007 में जेएनएनयूआरएम प्रोजेक्ट शुरू होने से पहले बेनाझावर में 200 एमएलडी व गुजैनी में 28.5 के वाटर ट्रीटमेंट प्लांट बने थे। तब नलकूप आदि मिलाकर 420 एमएलडी वाटर सप्लाई हो रही थी। जेेएनएनयूआरएम में वर्ष 2040 तक पापुलेशन को ध्यान में रखकर गंगा बैराज के पास 200-200 एमएलडी और गुजैनी में 28.5 एमएलडी के और वाटर ट्रीटमेंट प्लांट बनाए गए। बेनाझाबर मुख्यालय के ट्रीटमेंट प्लांट की कैपेसिटी बढ़ाकर 250 एमएलडी की गई। जिससे 2040 तक तक कानपुराइट्स को ड्रिकिंग वाटर क्राइसिस का सामना न करना पड़े।
869 करोड़ रुपए खर्च
कुल मिलाकर जेएनएनयूआरएम प्रोजेक्ट के अंर्तगत 869 करोड़ से भी ज्यादा खर्च हो गए, बावजूद इसके कानपुराइट्स को पूरा फायदा नहीं मिल रहा है। कानपुराइट्स को ड्रिकिंग वाटर क्राइसिस से जूझना पड़ रहा है। लोगों को घरों में सबमर्सिबल पम्प लगवाने पड़ रहे हैं। एमपी, एमएलए कोटे से भी दर्जनों मोहल्लों सामूहिक पानी की टंकिया लगाई है। सबसे अधिक ड्रिकिंग वाटर प्रॉब्लम कानपुर ईस्ट व साउथ सिटी में है।
करप्शन की भेंट चढ़ी
इसकी सबसे बड़ी वजह ये रही कि इस प्रोजेक्ट को लेकर जमकर करप्शन हुआ। वाटर वक्र्स से ओवरहेड टैंक व क्लियर वाटर रिजरवॉयर्स तक पहुंचने से पहले ट्रायल में पाइप लाइनों से पानी के फौव्वारे छूटने लगे। पहले दिन ही ट्रायल में 15 जगहों पर पानी के फौव्वारे छूटने लगे। गंगा बैराज वाटर वक्र्स से कम्पनी बाग, फूलबाग और कम्पनी बाग से बारादेवी जाने वाली लाइनों 852 से ज्यादा लीकेज हो चुके हैं। करप्शन की वजह से जलनिगम के तत्कालीन इंजीनियर्स सहित 24 ऑफिसर्स के खिलाफ फजलगंज थाना में दो साल पहले मुकदमा भी दर्ज कराया गया। इन्हीं वजहों से कानपुराइट्स को ड्रिकिंग वाटर क्राइसिस से जूझना पड़ा।
फीडरमेन लाइन बदलने का प्रोजेक्ट
जलनिगम के मौजूदा ऑफिसर्स ने इस समस्या के लिए घटिया फीडरमेन लाइन को जिम्मेदार ठहराया था। उनका कहना है कि वाटर वक्र्स से थोड़ा सा भी तेज प्रेशर में पानी छोडऩे पर पाइप लाइन लीकेज हो जाती है। हेडऑफिस से ग्र्रीन सिग्नल मिलने के बाद नई पाइप लाइन बिछाने का प्रोजेक्ट तैयार किया था। जो कि एक ओर कम्पनीबाग से फूलबाग और दूसरी ओर कम्पनीबाग से दादा नगर होते बारादेवी गेट तक शामिल है। यह कार्य तीन चरणों में होगा। इसके लिए जलनिगम (अरबन) के सुपरिटेंडेंट इंजीनियर की ओर से लगभग 112.61 करोड़ रुपए से टेंडर कॉल किए गए।