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KANPUR : वॉटर जेनरेटेड बीमारियों से बचने के लिए घर में आप आरओ या फिल्टर का पानी पीते हैं। ऑफिस, शॉप या यात्रा के दौरान भी पैक्ड वॉटर का यूज करते हैं। लेकिन गर्मियों में गला सूखने पर शरीर को राहत देने के लिए जलजीरा-पना, बेल का शर्बत, लस्सी, शिकंजी, नींबू-पानी आदि पीने से पहले कभी सोचते हैं कि ये किस पानी से तैयार किया गया है। अगर नहीं तो अब जरूर सोचिएगा। क्योंकि इन हाइड्रेटेड ड्रिंक्स में सौ फीसदी शुद्ध पानी का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है। ज्यादातर वेंडर्स इन्हें बनाने में जलकल का गंदा और सबमर्सिबल के अंडरग्राउंड हैवी वॉटर का इस्तेमाल कर रहे हैं। डॉक्टर्स के मुताबिक, ऐसे पानी के इस्तेमाल से तैयार ड्रिंक्स को पीने से ज्वाइंडिस, कॉलरा, टाइफाइड जैसी गंभीर बीमारियों का लोग शिकार हो रहे हैं। हैलट, उर्सला समेत प्राइवेट नर्सिग होम में ऐसे पेशेंट्स की बाढ़ आई हुई है। लेकिन इन हालात की सबसे बड़ी वजह फूड एंड सेफ्टी डिपार्टमेंट। जिनके अधिकारी सबकुछ जानते हुए कान में तेल डालकर सो रहे हैं। न क्वॉलिट चेक और न किसी पर एक्शन। इसी वजह से वेंडर्स जमकर मनमानी कर रहे हैं।

बिना लाइसेंस के

अहम बात यह कि इनमें से ज्यादातर दुकानदारों के पास फूड सेफ्टी डिपार्टमेंट का लाइसेंस तक नहीं है। सिटी के पॉश एरिया से लेकर गली-नुक्कड़ तक में इनकी पहुंच है। आप भी जानिए कि जिस हाइड्रेटेड ड्रिंक्स को आप बड़े स्वाद के साथ पीते हैं, उन्हें तैयार करने में कैसा पानी इस्तेमाल किया जा रहा है और कैसी-कैसी बीमारियां होने का खतरा है। एक नजर आई नेक्स्ट की रिएलिटी रिपोर्ट में-

नल के पानी से बना रहे नींबू-पानी

प्लेस : हडर्ड स्कूल, सिविल लाइंस

टाइम : दोपहर एक बजे

सीन : हैडर्ड स्कूल के ठीक सामने वाली लेन पर नींबू-पानी और मसाला ड्रिंक के ठेले पर भीड़ नजर आई। नजदीक ही डायल-क्00 की इनोवा भी खड़ी थी। ग्वालटोली निवासी सचिन जायसवाल नींबू-पानी बनाने में मशगूल दिखा। पानी की छोटी टंकी ठेले पर रखी थी। रिपोर्टर ने पूछा कि पानी कैसा इस्तेमाल करते हो तो सचिन बोला, भइया नल का पानी है। घर से ही भरकर लाता हूं। इसी पानी से ग्लास भी धोते हो। इस पर जवाब मिला, कि पानी कम पड़ता है तो पास के हैंडपंप से भर लाता हूं।

पानी-पुरी में भी घर का पानी

प्लेस : सिविल लाइंस

टाइम : दोपहर क्.ख्0 बजे

सीन : स्कूल से कुछ दूरी पर ही पानी-पुरी का ठेला खड़ा था। यहां बाबाघाट निवासी राम करन का बेटा मिला। पूछा कि बताशे का पानी बनाने में पानी कहां से खरीदते हो। तो इस पर जवाब मिला- दादा, पानी खरीदने की क्या जरूरत। घर में पानी आता है सप्लाई का। उसी को मिलाते हैं इसमें। और यहां आकर बेचते हैं। रेट क्या है जवाब मिला- भ् रूपए के ब् स्कूली बच्चे बहुत चाव से खाते हैं।

गन्ने के रस में ओचटी का पानी

प्लेस : फूलबाग

टाइम : दोपहर ख् बजे

सीन : यहां फेथफुलगंज निवासी शिव सहाय दुकान पर गन्ने का जूस निकाल रहा था। कस्टमर की भीड़ थी तो सारा ध्यान जूस निकालने पर लगा रहा। कस्टमर को जूस से भरा ग्लास थमाने के बाद ड्रम से पानी निकाला और उसी भगौने को धो दिया। इसी बीच दूसरा कस्टमर आ गया। भगौने में थोड़ा पानी तब भी बचा था। मगर, उसे सुखाने या फेंकने के बजाय मशीन का स्विच ऑन और गन्ना पिराई शुरू। देखते ही देखते रस भगौने से ग्लास और फिर कस्टमर के पेट में रिपोर्टर ने पूछा कि यह पानी कहां से लाते हो, जवाब मिला- नगर निगम की पानी की टंकी है। वहीं से डेली भरता हूं।

हैंडपम्प के पानी से बन रहा पना

प्लेस : लाल इमली चौराहा

टाइम : शाम ब् बजे

सीन :

छोटेलाल पेड़ की छांव के नीचे ठेला लगाए बैठे थे। दो मटकियों में पानी और उनके चारों तरफ लिपटे दर्जनों नींबू और खूब सारा पुदीना मटकी खोलकर देखी तो पुदीने की पत्तियां और मिट्टी के कुछ पार्टिकल अंदर दिखे। पुराने सा मग और बाहर हैंडल पर लगा हुआ जलजीरा रिपोर्टर ने जब छोटेलाल से पूछा कि मटकी में भरा पानी कहां का है जवाब मिला, हैंडपम्प का पानी। इतने से काम चल जाता है इस सवाल पर छोटेलाल ने कहा, चलते-फिरते जहां हैंडपम्प मिल जाता है वहीं से भर लेते हैं। अब पानी क्या खरीद के लाएं

यहां का पानी सबसे ज्यादा खराब -

बेकनगंज

कर्नलगंज

गांधी नगर

प्रेमनगर

चमनगंज

बाबूपुरवा कॉलोनी

मसवानपुर

नवाबगंज

चमनगंज

उस्मानपुर

एनएलसी कॉलोनी

हंसपुरम-नौबस्ता

जूही कॉलोनी

कमजोर एक्ट का उठा रहे फायदा

एफडीए एक्ट के अनुसार हाइड्रेटेड ड्रिंक्स में सौ फीसदी शुद्ध पानी इस्तेमाल किया जाना चाहिए। चूंकि एक्ट में सीधे तौर पर मिनिरल और प्योर पैक्ड ड्रिंकिंग वॉटर जैसी शब्दावली का इस्तेमाल नहीं है। इसलिए ज्यादातर वेंडर्स जलकल, ओवर हेड टैंक और अंडर ग्राउंड वॉटर से काम चला रहे हैं। इसी वजह से बीमारियों के लोग ज्यादा शिकार हो रहे हैं। नगर निगम की हीलाहवाली की वजह से अब डीएम तक भी पॉल्युटेड वॉटर सप्लाई की शिकायतें पहुंच रही है। एक नजर तीन तरह के पानी पर

सप्लाई वॉटर : जलकल से घरों तक सप्लाई होने वाला पानी सौ फीसदी शुद्ध नहीं होता। इसकी सबसे बड़ी वजह दशकों पुरानी पड़ी वॉटर लाइनें हैं जोकि जर्जर होने के कारण लीकेज बनी रहती हैं। सीवर लाइनों व नालियों के पास से गुजरने के कारण इनमें वॉटर सप्लाई में गंदा पानी मिल जाता है।

ओवर हेड टैंक : शहर में क्ब्भ् ओवर हेड टैंक्स हैं। अर्से से इनकी साफ-सफाई नहीं हुई है। टैंक्स के अंदर काई और गंदगी की भरमार है। मगर, अफसर हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। शहर का ज्यादातर हिस्से में सप्लाई का प्रॉमिनेंट रिसोर्स ओएचटी है। पिछले दिनों डीएम ने अभियान चलाकर इन टंकियों की सफाई के निर्देश दिए हैं।

अंडर ग्राउंड वॉटर : सबमर्सिबल और बोरिंग के पानी सिटी के डिफरेंट एरियाज में इसकी हार्डनेस भी अलग-अलग है। अनवरगंज, तेजाब मिल, कालपी रोड, नौबस्ता-हंसपुरम जैसे एरिया के पानी में मैग्नीशियम और क्रोमियम की मात्रा सबसे अधिक पाई गई है। इस मामले में जाजमऊ एरिया सबसे ज्यादा खराब है।

होटल में पानी का भी लाइसेंस

आपको जानकर हैरानी होगी कि जिस पानी को वेंडर्स धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहे हैं। वही पानी होटल्स-रेस्टोरेंट्स में मान्य नहीं है। फूड सेफ्टी एक्ट के अनुसार होटल वालों को सबसे पहले पानी का लाइसेंस लेना होता है। उसके बाद ही वो कोई खाने-पीने की चीज बना सकते हैं। एफडीए ऑफिसर डीआर मिश्रा के अनुसार होटल में इस्तेमाल होने वाले पानी की जांच लखनऊ अलीगंज स्थित राज्य स्वास्थ्य संस्थान से करवाई जाती है। इसके बाद अपर निदेशक लाइसेंस जारी करते हैं। समय-समय पर यहां पानी की हार्डनेस, टेस्ट और कलर की टेस्टिंग भी करवाई जाती है। मानक के उल्लंघन पर लाइसेंस कैंसिल कर दिया जाता है। जिसके बाद होटल में खाने-पीने की बिक्री पर बैन लग जाता है। लाइसेंस कैंसिलेशन के बाद भी काम चालू रखने की कंडीशन पर भ् लाख का जुर्माना और म् महीने की सजा का प्रावधान है।

' ग्लास धोने से लेकर हाइड्रेटेड ड्रिंक तैयार करने में एक ही तरह का पानी इस्तेमाल किया जा रहा है। यह हेल्थ के लिए डेंजरस है। दूसरा, इसी पानी से ग्लास भी धोये जाते हैं। अगर ज्वाइंडिस पेशेंट का ग्लास भी इसी पानी में धो दिया जाए तो उसके वायरस उस पानी में एक्टिव हो जाएंगे। फिर जो भी कस्टमर जूस पिएगा, उसके शरीर में भी यह वायरस एक्टिव हो जाएगा। '

- सलिल सिंह, फूड सेफ्टी ऑफिसर