कानपुर (ब्यूरो) कार्रवाई का मकसद हत्याकांड से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े आरोपियों पर जांच के बाद शिकंजा कसना है। इसके लिए एसटीएफ ने आर्थिक अपराध शाखा यानी ईओडब्ल्यू के साथ मिलकर आगे की कार्रवाई की रणनीति बना ली है। अगले कुछ दिनों में संतोष शुक्ला कांड में पर्दे के पीछे रह कर सफेदपोश बनने वाले आरोपियों पर शिकंजा कसेगा।

क्या है पूरा मामला
विकास दुबे के खिलाफ अकेले शिवली थाने में ही 26 मुकदमे दर्ज हैं। 12 अक्टूबर 2001 को थाने के अंदर दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री संतोष शुक्ला की हत्या कर दी थी। मामले में विकास दुबे मुख्य आरोपी था। साथ ही 22 अक्टूबर 2002 को पूर्व चेयरमैन लल्लन बाजपेई के दरवाजे पर हुई बमबारी में कौशल किशोर त्रिपाठी और श्रीकृष्ण मिश्र की हत्या में भी विकास आरोपी था। एक साल पहले शिवली के ताराचंद इंटर कॉलेज के सहायक प्रबंधक सिद्धेश्वर पांडेय की हत्या कर दी थी। इसमें विकास दुबे को उम्रकैद की सजा हुई, लेकिन ऊपरी अदालत से वह बेल पर बाहर आ गया था। संतोष शुक्ला हत्याकांड में भी कोर्ट ने उसे बरी कर दिया था।

अब गुमनामों पर शिकंजा
संतोष शुक्ला हत्याकांड में नौ लोग नामजद थे। जिसमें तात्कालीन शिवली थानाध्यक्ष देववंशी और दो सिपाही भी थे। इसके अलावा विकास दुबे, उसके साले राजू खुल्लर, भाई अनुराग दुबे, भाई दीपू दुबे, बहनोई संतोष तिवारी सहित नौ पर एफआईआर हुई थी। एसटीएफ सूत्रों का कहना है कि मामले में कुछ आरोपी थे, जो पर्दे के पीछे रहकर खेल कर गए। उन्होंने वारदात के बाद विकास और उसके गुर्गों की पैरवी की थी। अब जल्द ही वह सफेदपोश भी सामने आ जाएंगे और उन्हें कानून के शिकंजे में लिया जाएगा।

मुकर गए थे सभी गवाह
पूर्व मंत्री स्व। संतोष शुक्ला के भाई मनोज शुक्ला ने बताया कि कोर्ट में हत्याकांड की सुनवाई के दौरान 26 गवाह मुकर गए थे। हत्या थाने में हुई थी, लेकिन विकास के खौफ में पुलिसकर्मी भी बयान देने से मुकर गए थे। दो साल पहले बिकरू कांड के तुरंत बाद संतोष शुक्ला हत्याकांड की जांच शुरू की गई थी। उस वक्त एडीजी जयनारायण सिंह ने शिवली कोतवाली पहुंचकर विकास और उसके साथियों के आपराधिक इतिहास की जानकारी ली थी। उन्होंने संतोष शुक्ल हत्याकांड के साथ हर उस मामले की फाइल खोलने को कहा था, जिनमें विकास को कोर्ट से क्लीनचिट मिल चुकी है।

इस बार न हो कोई चूक
संतोष शुक्ला की हत्या के समय राजनाथ सिंह प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। वारदात के बाद वह दो-तीन बार संतोष शुक्ला के घर गए और कार्रवाई का आश्वासन भी दिया। मगर, विकास की दबंगई के आगे किसी की न चली। कुछ ही साल में वह कोर्ट से बरी हो गया। मामले की जांच कर रही एसटीएफ इस बार कोई चूक नहीं करना चाहती है इसलिए कई तेज-तर्रार और ईमानदार आईपीएस को लगाया गया है, जो बिकरू कांड के बाद से हर एंगल पर जांच में खुद लगे हुए हैं। इस मामले में बिकरू कांड के तुरंत बाद संतोष के छोटे भाई मनोज शुक्ला का बयान दर्ज किया गया था।