- कर्मकाण्ड विशेषज्ञों के अनुसार शवों का भूमि विसर्जन या दाह संस्कार होना चाहिए

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परियर घाट में बहकर आए शवों की

के बाद जो हाहाकार मचा उसके बाद एक सवाल ये भी उठता है कि लोग शवों को गंगा में प्रवाहित क्यों करते हैं। जो लोग पैसे की कमी या अवैध रूप से अज्ञात लाशों को गंगा में बहा देते हैं उनके अलावा बहुत से ऐसे लोग भी हैं जो मान्यता के अनुसार शवों को गंगा में प्रवाहित करना धर्मानुकूल मानते हैं। लेकिन जब आईनेक्स्ट ने कर्मकाण्ड के जानकारों से इस बारे में बात की तो उन्होंने बताया कि शास्त्रों में कहीं भी नहीं लिखा है कि शवों को नदी में प्रवाहित किया जाना चाहिए। ऐसा सिर्फ मान्यताओं के आधार पर किया जाता है। कुछ लोगों ने मान्यता बना रखी है कि छोटे बच्चों, कुंआरी लड़कियों व किसी खास बीमारी से पीडि़त लोगों की मृत्यु के बाद उन्हें गंगा या अन्य नदी में बहा देना चाहिए। धार्मिक ग्रंथों में ऐसा नहीं लिखा है।

शास्त्रों में नहीं है ऐसा विधान

ज्योतिषाचार्य व कर्मकाण्ड विशेषज्ञ पं। आदित्य पाण्डेय ने बताया कि मौत के बाद अंतिम संस्कार करने की दो विधियां ही बताई गई हैं। पहली विधि शव के दाह संस्कार की है जिसमें शव को जलाया जाता है और दूसरी भूमि विसर्जन की होती है जिसमें शव को दफनाया जाता है या उसकी समाधि बनाई जाती है। पं। दीपक पाण्डेय ने बताया कि शवों को जल में विसर्जन करने की रीति बाद में आई है। पहले ऐसा नहीं होता था। लोक मान्यताओं के चलते बाद में ऐसा होने लगा है।

अस्थि विसर्जन का विधान है

पं। आदित्य पाण्डेय ने बताया कि नदियों में खासकर पवित्र नदी गंगा में अस्थि प्रवाहित करने का विधान है। उन्होंने बताया कि मृत्यु के बाद जब शव का दाह संस्कार हो जाता है। उसके बाद परिजन शव से अस्थियां व अवशेष निकाल लेते हैं जिन्हें गंगा में प्रवाहित किया जाता है। विज्ञान की दृष्टि से अस्थियों में कैल्शियम व पोटैशियम होता है। जो पानी को कभी भी गन्दा नहीं करता है।

मान्यताओं ने लिया परम्पराओं का रूप

पं। संतोष पाधा ने बताया कि कई मान्यताओं ने बाद में परम्परा का रूप ले लिया। नदी में शव बहाना भी एक ऐसी ही मान्यता है। पहले नदियों में जलीय जीव प्रचुर मात्रा में होते थे। खासकर गंगा में मगरमच्छ काफी तादात में थे। इसलिए ही गंगा का वाहन भी मगरमच्छ को माना गया है। लोग शवों(ज्यादातर जानवरों के) को गंगा में डालते थे तो ये मगरमच्छ उन्हें खा लेते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। नदियों में जलीय जीव प्रदूषण के चलते कम हुए। गंगा में अब मगरमच्छ भी नहीं मिलते हैं। जिसके चलते ही नदी में डाले जाने वाले शव प्रदूषण को और बढ़ा देते हैं।

उफ! कानपुर कर रहा है इतना गन्दा

गंगा में प्रदूषण का स्तर दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। अगर कानपुर की बात की जाए तो गंगा प्रदूषण के चौंकाने वाले आंकड़े सामने आते हैं। गंगा में प्रदूषण जांचने के लिए लगाए गए रियल वाटर मानीटरिंग सिस्टम में ये आंकड़े दर्ज हैं। बिठूर से गंगा के सिटी के अंदर प्रवेश करने से लेकर ड्योढ़ी घाट तक गंगा के सिटी के बाहर से निकलने तक की स्थिति गंगा को बहुत अधिक प्रदूषित बना देती है। बिठूर में लगे मानीटरिंग सिस्टम के अनुसार गंगा में डीओ यानी की घुलित ऑक्सीजन 10.1 मिलीग्राम पर लीटर है। वहीं ड्योढ़ी घाट पर ये रेट 6.7 मिलीग्राम पर लीटर है। जो गंगा में कम ऑक्सीजन रेट को बताता है। वहीं बिठूर में बीओडी रेट 2.5 मिलीग्राम पर लीटर है। जो ड्योढ़ी घाट पर 6 मिलीग्राम पर लीटर हो जाता है जो गंगा में घटते मिनरल तत्वों को बताता है।

शास्त्रों में शवों को नदी में प्रवाहित करने का विधान नहीं है। ये लोक मान्यताएं हैं। शवों का दाह संस्कार या भूमि विसर्जन किया जाता है।

- पं। आदित्य पाण्डेय

शवों को नदी में बहाना गलत है। सिर्फ अस्थियों को नदी में प्रवाहित किया जाता है। रीति रिवाजों के अनुसार शवों को दफनाया भी जा सकता है।

- पं। दीपक पाण्डेय

शास्त्रों में शव को नदी में बहाकर अंतिम संस्कार करने का कोई विधान नहीं है। शवों का दाह संस्कार व भूमि विसर्जन ही करना चाहिए।

- पं। संतोष पाधा