कानपुर (ब्यूरो) नाटक के माध्यम से सन्देश दिया गया कि चक्रव्यूह केवल एक युद्ध कला तक ही सीमित नहीं है वरन सम्पूर्ण जीवन दर्शन के स्तर को समझने की ओर प्रेरित करता है। नाटक में कुरुक्षेत्र की रक्त-रंजित धरती को सम्बोधित करते हुए भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि आने वाले युगों में कुरुक्षेत्र की धरती को उन सभी अनुत्तरित प्रश्नों का उत्तर देना होगा जो भावी पीढियां उनसे पूछने वाली है। इसमें अपनी माता के गर्भ में ही चक्रव्यूह भेदने का अधूरा ज्ञान सीखने वाले अभिमन्यु के चक्रव्यूह में फंसकर युद्ध नियमों के विपरीत वार से वीर गति को प्राप्त होने पर पांडव पक्ष का शोक बेहद मार्मिक ढंग से दर्शाया गया।

दर्शकों को भावुक किया
नाटक में उत्तरा, अर्जुन, द्रोपदी और अन्य परिजनों के मन में श्रीकृष्ण से पूछे जाने वाले सवालों और अंतत: श्रीकृष्ण का शाश्वत संदेश कहना कि कोई भी अपने कर्मों में रचे गए स्वयं के चक्रव्यूह से कभी मुक्त नहीं हो सकता है। यह ही सन्देश था कि हमारा सम्पूर्ण जीवन इस चक्रव्यूह के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। सदकर्मों से जीवन रूपी चक्रव्यूह को भेद कर विजयी होकर बाहर निकलना पड़ता है। चक्रव्यूह के सभी कलाकारों ने अपने अभिनय से दर्शकों को भावुक बना दिया। इस दौरान समिति के संरक्षक मंडल के भवानी भीख जी, डॉ उमेश पालीवाल, डॉ अमरनाथ, मुकेश पालीवाल, अजीत अग्रवाल, केके दुबे, परमानन्द, कमल त्रिवेदी आदि रहे।