ये चुनाव अमरीकी जनता के लिए तो महत्व रखते ही हैं, भारत जैसे देशों पर भी इनके नतीजों का असर पड़ सकता है। इसीलिए इस पर भी नज़र डालना ज़रूरी है कि भारत के प्रति आर्थिक, सामरिक और कूटनीतिक मामलों से जुड़े मुद्दों पर दोनों उम्मीदवारों का क्या रूख है, वे भारत के प्रति कैसी नीति अपनाएंगे, वगैरह-वगैरह।

अमरीका के हवाले से भारत और भारतीयों से जुड़े कुछ अहम मुद्दे हैं। भारत और अमरीका के बीच संबंध, जिनमें आर्थिक, सामरिक और अन्य मामलों में दोनों देशों के बीच सहयोग।

इसके अलावा परमाणु संधि, आउटसोर्सिंग, एचवन बी वीज़ा, भारत में आर्थिक सुधार जैसे कई अहम मुद्दे भी हैं। इन मुद्दों पर दोनों उम्मीदवारों के रूख पर नज़र डालते हैं।

चुनावी मुहिम के दौरान विभिन्न मुद्दों पर बराक ओबामा और मिट रोमनी दोनों ही अपनी-अपनी नीतियों को उजागर कर रहे हैं जिनमें विदेश नीति से जुड़े कई मुद्दों पर दोनों का रूख अलग है।

अहम साथी

लेकिन दोनों ही उम्मीदवार भारत को अमरीका का अहम साथी मानते हैं। राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने कार्यकाल के दौरान भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को ही सबसे पहले सरकारी दौरे की दावत दी और खुद ओबामा ने भी भारत का दौरा किया।

राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भारत और अमरीका के बीच सामरिक वार्ता की शुरूआत की और वह दोनों देशों के बीच दीर्घकालीन सामरिक साझेदारी को जारी रखना चाहते हैं।

भारत और अमरीका के बीच सामरिक वार्ता के तहत आतंकवाद के खिलाफ़ लड़ाई, परमाणु अप्रसार, साइबर सुरक्षा और पर्यावरण जैसे अहम मुद्दों पर सहयोग जारी है। और दोनों देशों के बीच आर्थिक, सैन्य और विज्ञान के क्षेत्रों में भी सहयोग तेज़ी से बढ़ रहा है।

लेकिन साल 2005 में दोनों देशों के बीच हुई परमाणु संधि को पूरी तरह लागू करने में अभी भी कुछ अड़चनें बाकी हैं। आर्थिक सुधारों और विदेशी निवेश के मुद्दों पर भी बराक ओबामा भारत द्वारा और सुधार किए जाने की मांग करते हैं।

बराक ओबामा

राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार इस वर्ष 100 अरब डॉलर से अधिक होने की संभावना है, फिर भी ओबामा प्रशासन भारतीय बाज़ारों को और खोले जाने की मांग करता है।

लेकिन अमरीका में आर्थिक मंदी और बेरोज़गारी बढ़ने के बाद बराक ओबामा आउटसोर्सिंग या नौकरियों को विदेश भेजने की प्रक्रिया का कड़ा विरोध करते हैं। वो कहते हैं कि अमरीकी कंपनियाँ नौकरियों को भारत जैसे देशों में न भेजें।

आउटसोर्सिंग के ज़रिए अमरीका से बहुत सी नौकरियाँ भारत भी भेजी जाती हैं और ओबामा उन कंपनियों को टैक्स में छूट खत्म करने की बात करते हैं, जो नौकरियां अमरीका से बाहर भेजती हैं। इस मामले में वह मिट रोमनी से अधिक कड़ा रूख अपनाते हैं।

इसके अलावा अमरीका में काम करने के लिए एच1बी वीज़ा हासिल करने के मुद्दे पर भी ओबामा के दौर में आईटी और अन्य क्षेत्रों में भारतीय पेशेवरों को मुश्किलें उठानी पड़ रही हैं। ओबामा प्रशासन द्वारा एच1बी और एल1 वीज़ा की फ़ीस काफ़ी बढ़ा दी गई है।

लेकिन कई सामरिक मामलों में बराक ओबामा की नीतियां भारत के हित में नज़र आती हैं। बराक ओबामा ने कश्मीर के मुद्दे पर बाहरी हस्तक्षेप का विरोध किया है औऱ कहा है कि इस मुद्दे समेत अन्य मुद्दों पर भारत और पाकिस्तान को आपस में बातचीत जारी रखनी चाहिए।

अफ़गा़निस्तान में शांति बहाली के मुद्दे पर भी बराक ओबामा भारत का अहम किरदार देखते हैं और दोनों देश इस मामले में करीबी सहयोग कर रहे हैं।

लेकिन कुछ जानकार कहते हैं कि भारत को जो सम्मान राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के ज़माने में मिला वह राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में नहीं दिया गया।

मिट रोमनी

राष्ट्रपति पद के चुनाव में रिपब्लिकन उम्मीदवार मिट रोमनी ने भारत के हवाले से खासतौर पर अपनी कोई नीति तो नहीं बयान की है, लेकिन विदेश नीति के बारे में उनकी चुनावी मुहिम ने जो बयान जारी किए हैं उनमें भारत को अमरीका का सामरिक साझेदार कहा गया है।

पिछले महीने रिपब्लिकन पार्टी के चुनावी सम्मेलन में भी पार्टी की ओर से मंज़ूर किए गए प्रस्तावों में भारत को अमरीका का सामरिक और व्यापारिक मामलों में साझीदार करार दिया गया।

यही नहीं, रिपब्लिकन पार्टी के ही राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के दौर में ही भारत और अमरीका के बीच परमाणु संधि पर हस्ताक्षर हुए थे। इस करार को दोनों देशों के बीच रिश्तों को सुदृढ़ करने में अहम कदम माना जाता है।

इसके अलावा मिट रोमनी आउटसोर्सिंग के मुद्दे पर भी भारत के लिए फ़ायदेमंद रूख रखते हैं। वह अमरीका से भारत जैसे देशों में नौकरियां भेजने वाली कंपनियों को दंडित न करने में विश्वास रखते हैं।

बराक ओबामा ने मिट रोमनी पर यह आरोप भी लगाए हैं कि जब वह मैसाच्यूसेट्स राज्य के गवर्नर थे तो राज्य की कुछ सरकारी नौकरियां आउटसोर्सिंग के ज़रिए भारत भी भेजी गई थीं।

अमरीका में काम करने के लिए एच1बी वीज़ा जैसे मुद्दों पर मिट रोमनी मानते हैं कि अमरीकी आप्रवासन कानून में काफ़ी ढील होनी चाहिए जिससे विदेशों से माहिर पेशेवर अमरीका में आकर कंपनियाँ शुरू कर सकें और यहां नौकरियां पैदा हों।

रोमनी मानते हैं कि अमरीकी यूनिवर्सिटी से विज्ञान, गणित, और इंजीनियरिंग की उच्च डिग्री हासिल करने वाले हर विदेशी छात्र को अमरीकी ग्रीन कार्ड या स्थायी तौर पर अमरीका में रहने और काम करने की इजाज़त दी जानी चाहिए।

जानकारों का मानना है कि मिट रोमनी अगर राष्ट्रपति बन जाते हैं तो भारत के साथ सामरिक और कूटनीतिक मुद्दों जैसे कशमीर, पाकिस्तान और अफ़गानिस्तान में भारतीय सहयोग जैसे मुद्दों पर बराक ओबामा की ही नीतियां जारी रखने की उम्मीद है।

मिट रोमनी एक चुनावी भाषण में कह चुके हैं, "पाकिस्तान का भविष्य अनिश्चित है और इस अनिश्चितता के कारण यह खतरा बना रहेगा कि पाकिस्तान के पास मौजूद 100 के करीब परमाणु बम कहीं इस्लामी जिहादियों के हाथ न पड़ जाएं."

इसके अलावा मिट रोमनी, जो चीन के खिलाफ़ कड़ा रूख रखते हैं, चीन की ताकत को काबू में रखने के लिए भी भारत को अहम साथी देश मानते हैं।

इस वर्ष चुनाव में अमरीका में रहने वाले बहुत से भारतीय मूल के अमरीकी लोग डेमोक्रेटिक पार्टी को समर्थन दे रहे हैं, लेकिन कुछ भारतीय अमरीकी रिपब्लिकन पार्टी की भी हिमायत कर रहे हैं। और इनमें से अधिकतर लोग अपना समर्थन देते हुए बराक ओबामा और मिट रोमनी की भारत के प्रति नीतियों को भी ध्यान में रखते हैं।

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