कानपुर (ब्यूरो) जेपी के पूर्व मंडल अध्यक्ष सुनील श्रीवास्तव ने बताया कि साल 1973 के बाद नगर निगम का चुनाव नहीं हुआ। 16 साल बाद 1989 में चुनाव हुआ तो उन दिनों श्रीप्रकाश जायसवाल को मेयर चुना गया। इन दिनों एक वार्ड में दो पार्षद हुआ करते थे, वार्ड की संख्या जरूर पचास थी, लेकिन इनका परिसीमन काफी बड़ा था। इसकी वजह से एक वार्ड की जिम्मेदारी दो पार्षदों के कंधों पर दी गई। इसे लेकर कई बार मुद्दा भी उठाया गया, जिसके बाद परिसीमन में बदलाव करने का फैसला किया गया और और धीरे-धीरे समय बदला और परिसिमन भी चेंज हो गया।

मोहल्लों को घटाकर संख्या कम
गोविंद नगर पार्षद नवीन पंडित ने बताया कि उन दिनों एक वार्ड में सैकड़ों मोहल्ले हुआ करते थे, जिसके विकास के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती थी। इस वजह से हर एक वार्ड में दो पार्षदों को रखा गया था, ताकि मोहल्लों का विकास होने के साथ-साथ वहां की व्यवस्थाएं ठीक हो सके। इसके बाद से फिर सभी वार्डों के लिए एक-एक पार्षद को चुना जाने लगा।

ऐसा होता था काम
साल 1991 में चुनाव होने के बाद परिसीमन बदलने के लिए सदन में मुद्दा उठाया गया। जिसके बाद वार्डों को बढ़ाने का फैसला हुआ। शासन से मंजूरी मिलने के बाद वार्डों की संख्या को बढ़ा दिया गया। तय किया गया कि अब हर एक वार्ड के लिए एक-एक पार्षद होगा। जिसके बाद से नगर निगम वार्डों को हर एक वार्ड के लिए एक पार्षद मिलने लगा। दो पार्षदों के होने पर मोहल्लों को इनके बीच डिवाइड कर दिया जाता था। ताकि विकास कराने को लेकर पार्षद अपने-अपने मोहल्लों को चिन्हित कर सके।