लखनऊ (ब्यूरो)। पॉल्यूशन के मामले में एक तरफ जहां राजधानी लखनऊ पहले से ही डेंजर जोन में है, वहीं दूसरी तरफ करीब 80 प्रतिशत भवन स्वामी इस खतरे को और भी बढ़ा रहे हैैं। इसकी वजह यह है कि निगम प्रशासन की बार-बार अपील के बाद भी ज्यादातर भवन स्वामी सूखा और गीला वेस्ट अलग-अलग नहीं रख रहे हैैं। जिसकी वजह से वेस्ट का प्रॉपर निस्तारण नहीं हो पा रहा है। इसके साथ ही शहर की स्वच्छता संबंधी छवि पर भी दाग लग रहा है। यह सच नगर निगम की ओर से कराए गए सर्वे में सामने आया है। अब निगम प्रशासन स्वच्छता संबंधी नियमों की अनदेखी करने वाले भवन स्वामियों के खिलाफ कड़ा कदम उठाने की तैयारी कर रहा है। इसके अंतर्गत पहले तो भवन स्वामी को चेतावनी दी जाएगी और अगर इसके बाद भी भवन स्वामी ने सूखा और गीला वेस्ट अलग-अलग नहीं दिया तो उसके यहां से वेस्ट लेना भी बंद किया जा सकता है।

हर जोन में यही स्थिति

ऐसा नहीं है कि सिर्फ गोमती नगर या इंदिरा नगर में यही स्थिति है, बल्कि राजधानी के लगभग सभी इलाकों में यह समस्या सामने आ रही है। कई भवन स्वामी तो ऐसे हैैं, जो निगम की गाड़ी जाने के बाद रोड पर वेस्ट डाल दे रहे हैैं। जिसकी वजह से निगम को स्वच्छता परीक्षा में अंकों का झटका लग सकता है। ऐसे भवन स्वामियों को भी अलग से चिन्हित करने का काम शुरू कर दिया गया है।

वेस्ट कलेक्शन कर्मी परेशान

नगर निगम की ओर से डोर टू डोर वेस्ट कलेक्शन की जिम्मेदारी ईकोग्रीन कंपनी को दी गई है। कंपनी के कर्मचारी रोज सुबह घरों से जाकर वेस्ट लेते हैैं। कंपनी के पास जो गाडिय़ां हैैं, उसमें भी सूखा और गीला वेस्ट अलग-अलग रखने की व्यवस्था है। चूंकि घरों से सूखा और गीला वेस्ट एक साथ मिल रहा है तो कर्मियों को गाड़ी में अलग-अलग वेस्ट रखने में समस्या आ रही है। वेस्ट कलेक्शन कर्मियों की ओर से भवन स्वामियों से सूखा और गीला वेस्ट अलग-अलग रखने को कहा जा रहा है लेकिन कोई फायदा नहीं।

20 फीसदी में दिखा सुधार

पहले तो लगभग सभी भवन स्वामी सूखा और गीला वेस्ट एक साथ ही दे रहे थे लेकिन अब स्थिति में खासा सुधार देखने को मिल रहा है। करीब 20 फीसदी भवन स्वामी ऐसे हैैं, जो सूखा और गीला वेस्ट घर के अंदर अलग-अलग रंग के डस्टबिन में रख रहे हैैं। जिसका फायदा भी उन्हें मिल रहा है।

यह है नियम

- सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट 2016 के अंतर्गत सूखा और गीला वेस्ट अलग-अलग रखे जाने का प्राविधान है।

- इसके साथ ही जैव अपशिष्ट और घरेलू हानिकारक वेस्ट को भी अलग-अलग रंग के डस्टबिन में रखे जाने का नियम है।

- वेस्ट के लिए अलग-अलग रंग के डस्टबिन का प्राविधान

- जबकि भवन स्वामी एक ही डस्टबिन में सभी तरह के वेस्ट डाल रहे हैैं। जिससे छंटाई में आ रही दिक्कत

इस तरह बन रहे चुनौती

शुद्ध पर्यावरण के लिए भवन स्वामी चुनौती बन रहे हैैं। इससे तात्पर्य यह है कि जब घरों से लिए जाने वाले वेस्ट की प्रॉपर रिसाइकिलिंग नहीं हो सकेगी तो उसका सीधा असर पर्यावरण पर पड़ेगा। अगर वेस्ट अलग-अलग रखा जाएगा तो उसका नियमों के अंतर्गत कलेक्शन और निस्तारण हो सकेगा।

ये है डस्टबिन कांसेप्ट

1-ब्लू डस्टबिन-सूखा वेस्ट, अखबार, प्लास्टिक, कपड़ा, कांच और टूटे हुए खिलौने

2-ग्रीन डस्टबिन-गीला वेस्ट, किचन से बची हुई खाद्य सामग्री, फल, सब्जी के छिलके, घास, पेड़ की पत्तियां, चाय की पत्ती, बचा खाना इत्यादि।

3-यलो डस्टबिन-जैव अपशिष्ट वेस्ट, सेनेटरी नैपकिन, एक्सपायर्ड मेडिसिन, उपयोग की गई सुईं, सिरिंज इत्यादि।

4-ब्लैक डस्टबिन-पेंट के डिब्बे, पेस्टीसाइड के डिब्बे, सीएफएल, बल्ब, ट्यूबलाइट, थर्मामीटर एवं अनुपयोगी बैटरी

ये मिलेगा फायदा

अगर अलग-अलग रंग के डस्टबिन में निर्धारित श्रेणी के अंतर्गत वेस्ट रखा जाता है तो इसके कई फायदे भी मिलेंगे। जो इस प्रकार है

1-गीले वेस्ट से खाद बन जाएगी

2-सूखे वेस्ट का उपयोग इंटरलॉकिंग टाइल्स बनाने में हो सकेगा।

3-प्लास्टिक को फिर से रीसाइकिल कर उससे खिलौने बन सकते हैं।

4-लैैंडफिल में यूज हो सकता है अनुपयोगी वेस्ट

पहले से स्थिति सुधरी है लेकिन अभी भी ज्यादातर भवन स्वामी सूखा और गीला वेस्ट अलग-अलग नहीं रख रहे हैैं। सभी भवन स्वामियों से अपील है कि नियम का पालन करें और सूखा और गीला वेस्ट अलग-अलग डस्टबिन में रखें।

- अजय कुमार द्विवेदी, नगर आयुक्त