- प्रतिष्ठित पदों पर बैठे लोगों की जिंदगी में गुरुजनों का अहम योगदान

- सफलता मिलने के बाद भी गुरुजनों की बातों को आज तक नहीं भूले

LUCKNOW सभी के जीवन में गुरु का अहम रोल होता है। स्कूल लाइफ हो या कॉलेज लाइफ, कभी न कभी गुरु ऐसी नसीहत दे जाते हैं, जिससे स्टूडेंट का जीवन सफलता की ओर अग्रसर हो जाता है। टीचर्स डे पर हम आज ऐसी ही कुछ शख्सियतों की बात करने जा रहे हैं, जो जीवन में निराश तो हुए लेकिन उनके गुरु ने न सिर्फ उनकी हिम्मत बढ़ाई बल्कि उन्हें जोश से परिपूर्ण भी किया। आज ये सभी महत्वपूर्ण पदों पर बैठ अपने कर्तव्यों का बखूबी निर्वहन कर रहे हैं। पेश है दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की रिपोर्ट

जिस सब्जेक्ट से डरता था, उसी में की पीएचडी

बात उस समय की है, जब मैं तमिलनाडु एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में था। अन्य सब्जेक्ट में तो कोई प्रॉब्लम नहीं थी, लेकिन प्लांट पैथोलॉजी से मुझे टेंशन होती थी। वजह यह थी कि सब्जेक्ट काफी टफ था। गुजरते दिनों के साथ मुझे लगने लगा था कि मैं इस सब्जेक्ट में पास नहीं हो सकूंगा। एक दिन प्रो। जगन्नाथन ने मुझे बुलाया और कहा कि परेशान मत हो। अगर कोई सब्जेक्ट टफ लगता है तो उसे छोटे-छोटे पार्ट में डिवाइड करके पढ़ो, सब्जेक्ट आसान लगने लगेगा। इसके बाद मैंने वैसा ही किया। मैं खुद हैरान था कि जिस सब्जेक्ट से मैं डरता था, बाद में उस सब्जेक्ट पर मेरी कमांड हो गई और उसी सब्जेक्ट में मैंने पीएचडी की। अगर मेरे गुरु ने राह नहीं दिखाई होती तो शायद आज भी उस सब्जेक्ट का डर मेरे मन में बना रहता।

सेंथिल पांडियन सी, आबकारी आयुक्त

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गुरुजनों की सीख से जीवन को मिली राह

राजधानी के लॉमार्ट में जूनियर स्कूल में था। उस समय मेरा सेलेक्शन पोएट्री कांटेस्ट में हुआ। वहां गये तो इतने सारे लोगों को देखकर घबरा गया और कविता ही भूल गया। अगले दिन मेरे टीचर ने बुलाकर कहा कि जिंदगी की सीख देता हूं कि कभी आडियंस को मत देखो कि कौन क्या देख या सुन रहा है। बस अपनी मंजिल को देखो और सोचो कि मेरे से बढि़या कोई और नहीं बोल सकता है। वो दिन है और आज का दिन, मैंने जिंदगी में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। मैंने कभी सोचा ही नहीं कि कोई मुझसे अच्छा बोल सकता है। आज मैं नेशनल से लेकर इंटरनेशनल लेवल पर जाकर बेहद आसानी से बोल लेता हूं और यही सीख मैं दूसरे स्टूडेंट्स को देता हूं।

- ले.ज। डॉ। बिपिन पुरी, वीसी केजीएमयू

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टीचर्स के मोटीवेशन से बनीं आईपीएस

सिविल सर्विसेज में आने के लिए सर्वाधिक अहम मेरे टीचर्स रहे हैं। पंजाब होशियारपुर में स्कूल टाइम पर मेरी टीचर प्रसन्नता मैम थीं। उन्होंने मुझे काफी मोटिवेट किया था। स्कूल से निकलने के बाद जब मैं चंडीगढ़ से एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही थी, तब प्रवीण सर ने मुझे सिविल सर्विसेज में जाने के लिए मोटिवेट किया। आज मैं जो भी हूं उसमें सर्वाधिक अहम रोल प्रसन्नता मैम व प्रवीण सर का है। जब भी मुझे मौका मिलता है तो इनसे जरूर मिलती हूं। आज मेरी लाइफ बहुत बिजी है, लेकिन उन्हें याद करना नहीं भूलती हूं। जब भी मौका मिलता है तो उनकी नसीहत का पालन करते हुए हर चुनौती को सॉल्व भी कर लेती हूं।

ख्याति गर्ग, डीसीपी सेंट्रल

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मदर टेरेसा से मिलते ही बदल गई जिंदगी

जब मैं 14 साल की थी, उस समय मदर टेरेसा से मिलने का मौका मिला था। वो एक तरह से मेरे लिए गुरु का ही रूप थीं। मैं जब उनसे मिली तो मैंने अपनी जमा की गई सारी पॉकेट मनी गरीबों की मदद के लिए उनको सौंप दी। वे मेरे उस कांट्रीब्यूशन से बहुत खुश हुई और मुझसे लिखने के लिए डायरी मांगी। डायरी में उन्होंने गॉड लव्स सुनीता, लव अदर ऐज ही लव्स यू लिखा। उनके ये शब्द मेरे मन में ऐसे छप गये कि उसको मैं ताउम्र अपने साथ जी रही हूं। उन्होंने मेरे मन में सेवा की भावना को जगाया। जिस तरह वो बच्चों की पूजा व सेवा करती थीं, उसी को फॉलो करते हुए हम भी अपने स्कूल के माध्यम से बच्चों की पूजा और सेवा करने का काम कर रहे हैं।

- डॉ। सुनीता गांधी, निदेशिका, सिटी इंटरनेशनल स्कूल

टीचर का मिला साथ तो एग्जाम का डर दूर

जब मैं सेंट लॉरेटो में क्लास 7 में थी तो मेरे मन में एग्जाम फोबिया था। साल भर तो मैं अच्छे से पढ़ती थी लेकिन जैसे ही एग्जाम आते थे, फोबिया के चलते रोने लगती थी। मेरी प्रॉब्लम को टीचर यास्मीन नकवी ने समझा और मुझे बुलाकर कहा कि बेटी, तुम्हारे अंदर खासी एनर्जी है, तुम एक्टिविटीज में हिस्सा लिया करो। इसके बाद मैंने वैसा ही किया और इसका असर भी देखने को मिला। मेरा कांफिडेंट बढ़ गया और एग्जाम फोबिया खत्म हो गया। आज भी टीचर मुझसे जुड़ी हुई हैं और उन्हें गर्व है कि आज उनकी स्टूडेंट एक स्कूल की प्रिंसिपल है।

रिचा खन्ना, प्रिंसिपल, वरदान इंटरनेशनल एकेडमी, लखनऊ