लखनऊ (ब्यूरो)।
मां के अनुशासन का पाठ आज भी याद है
मेरी माताजी विभा सिंह धार्मिक और अनुशासन का पालन करने वाली महिला हंै। उन्होंने इन्हीं गुणों का समावेश बचपन से मेरे अंदर भी किया। मुझे आज भी याद है कि हमेशा वो समय में मुझे स्कूल भेजती थीं और टाइम से होमवर्क पूरा करने के लिए प्रेरित करती थीं। बचपन में उन्होंने मुझे जो अनुशासन का पाठ पढ़ाया, उसका मैैं आज तक पालन कर रहा हूं। उनकी प्रेरणा से मेरे जीवन में सकारात्मक प्रभाव पड़ा। उसी का नतीजा है कि आज मैं सफलता के इस मुकाम को हासिल कर सका हूं।
- अभिषेक प्रकाश, डीएम

मां की प्रेरणा से बना सका आईपीएस
मेरी मां अनुराधा ठाकुर का सपना था कि मैं बड़ा होकर सिविल सर्विसेज में ज्वाइन करूं। लेकिन, मैं यहीं सोचता था कि मेरी पढ़ाई सीबीएसई या किसी अन्य बोर्ड से नहीं हुई, ऐसे में मुझे सफलता कैसे मिलेगी। मां मुझे प्रेरित करते हुए यही कहती थीं कि तुम केवल लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रयास करते रहो। सफल होते हो या नहीं इसकी चिंता मत करो। उनके इन्हीं शब्दों ने मेरे मन-मस्तिष्क में बहुत गहरा प्रभाव डाला। मां की दुआ और उनकी सीख का ही नतीजा है कि आज में आईपीएस बन सका हूं।
- डीके ठाकुर, पुलिस कमिश्नर

मां से सीखा शिक्षा और अनुशासन का महत्व
मेरी मां सुदामा त्रिपाठी को हमेशा यही चिंता रहती थी कि कहीं बच्चों का ध्यान भटक न जाए। जब हम लोग छुट्टियों में नानी के घर जाते थे तो आम के बाग में दूसरे बच्चों के साथ खेलते थे। मां कुछ कहती तो नहीं थी लेकिन मुझे और मेरे भाई दोनों को दो-तीन दिन के भीतर ही वापस भेज देती थी। जिससे हमारी पढ़ाई डिस्टर्ब न हो। उस समय तो बहुत खराब लगता था। लेकिन, अब जब बड़े हुए तो उस बात का महत्व पता चला कि जीवन में शिक्षा और समय का कितना महत्व होता है। आज मैं जो भी हूं मां की सीख से ही बन सका हूं।
- डॉ इंद्रमणि त्रिपाठी, विशेष सचिव नगर विकास

मां ने पढ़ाया सादगी का पाठ
मेरी मां राजेश्वरी राय हमेशा अपने कामों में बिजी रहती थीं लेकिन, हम सभी भाई-बहनों के खाने की चिंता उन्हें हमेशा रहती थी। मां हमारी पढ़ाई का भी पूरा ख्याल रखती थी। हम लोग भी रात भर उनकी पुरानी साड़ी से बनाई डिबरी की रोशनी में पढ़ाई किया करते थे। मां ने हमेशा हमे सादगी का पाठ पढ़ाया। उन्होंने हमेशा यही सीख दी कि सादगी को अपनाकर सफलता हासिल की जा सकती है। मां के इन शब्दों को आत्मसात कर मैैंने यहां तक का सफर तय किया है और आगे भी करता रहूंगा।
- आलोक कुमार राय, वीसी एलयू

मां से मिले संस्कार सही-गलत सीखाते हैं
हमारे यहां आर्य समाज का बेहद प्रभाव है। मेरी मां निर्मल पुरी भी हमेशा यहीं चाहती थी कि बच्चों में अच्छे से संस्कार मिलें, इसलिए घर में हवन व पाठ आदि होते रहते थे। उन्होंने पढ़ाई का पूरा ध्यान रखा। इसके लिए जिस चीज की मांग की वो पूरी हुई, ताकि बच्चे पढ़-लिख कर अपने पैरों पर खड़े हो सकें। उनके मिले संस्कार से ही हम लोग सही और गलत के बारे में सीखते हंै। आज उनके मिले संस्कारों की वजह से ही हम लोग इस मुकाम पर पहुंच सके है।
- डॉ बिपिन पुरी, वीसी केजीएमयू