लखनऊ (ब्यूरो)। डॉ। एपीजे अब्दुल कलाम टेक्निकल यूनिवर्सिटी बीफार्मा के स्टूडेंट्स के लिए दो हफ्ते की कार्यशाला कराने जा रहा है। स्टूडेंट्स को कंपनी की मांग के अनुसार तैयार करने और इंटरव्यू की बारीकी से जानकारी देने के लिए यह पहल की जा रही है। एकेटीयू के प्रवक्ता डॉ। पवन कुमार त्रिपाठी ने बताया कि विवि के ट्रेनिंग एंड प्लेसमेंट विभाग और वाईबीआई फाउंडेशन की ओर से दो सप्ताह का ऑनलाइन पर्सनालिटी डेवलपमेंट सर्टिफिकेट कार्यक्रम 25 सितंबर से नि:शुल्क शुरू हो रहा है। इसमें शामिल होने के लिए स्टूडेंट्स को 24 सितंबर तक आवेदन करना होगा।

फार्मेसी का बढ़ती मांग को देखकर लिया फैसला

डॉ। पवन कुमार त्रिपाठी ने बताया कि मौजूदा समय में फार्मेसी के क्षेत्र में लगातार स्किल्ड युवाओं की मांग बढ़ रही है। ऐसे में कुलपति प्रो। जेपी पांडेय के निर्देशन में इस कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है। ऑनलाइन माध्यम से यह कार्यशाला अंग्रेजी और हिंदी दोनों में होगी। इसमें विशेषज्ञ स्टूडेंट्स को नौकरी कैसे खोजें, प्रभावी बायोडाटा बनाना, पावरफुल सोशल मीडिया प्रोफाइल, साक्षात्कार के लिए तैयारी, ऑनलाइन साक्षात्कार को फेस करने के टिप्स देंगे। डीन प्रो। अरुणिमा वर्मा के अनुसार, इस कार्यशाला से स्टूडेंट्स को काफी फायदा होगा। इंटरव्यू को लेकर छात्रों की झिझक दूर होगी, साथ ही वे कॉन्फिडेंट बनेंगे।

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भारतीय संस्कृति में हमेशा से रहा है पौधे से जुड़ाव

सीएसआईआर नेशनल बॉटनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट ने सोमवार को संस्थान में हिन्दी पखवाड़े का उद्घाटन कार्यक्रम हुआ। इस दौरान बतौर मुख्य अतिथि लोक गायिका पद्मश्री मालिनी अवस्थी रहीं। उन्होंने संस्थान की लाइब्रेरी में हुई हिंदी पुस्तकों की प्रदर्शनी का उद्घाटन किया। संस्थान की राजभाषा पत्रिका विज्ञान वाणी के नवीनतम अंक का विमोचन किया। साथ ही हिंदी प्रोत्साहन पुरस्कार विजेताओं को प्रमाण पत्र भी बांटे गए।

दादी-नानी के नुस्खे आज भी प्रचलित

संस्थान के निदेशक डॉ। अजित शासनी ने भी कार्यक्रम में हिस्सा लिया। मुख्य अतिथि मालिनी अवस्थी ने कहा कि भारतीय संस्कृति में पौधों एवं अन्य जीवों से जुड़ाव शुरू से रहा है। ग्रामीण एवं लोक संस्कृति में अनेकों परंपराओं, अनुष्ठानों एवं गतिविधियों को पौधों से जोड़ा गया है। अनेकों लोक गीत जो इस भावना को प्रदर्शित करते है। उन्होंने वर्तमान पीढ़ी को संस्कृति से जोड़ने पर जोर दिया। घर की महिलाएं घरेलू चीजों से ही अनेकों बीमारियों का इलाज कर लेती थीं और ऐसे दादी-नानी के नुस्खे आज भी प्रचलित हैं। उन्होंने कहा कि आज हमारी संस्कृति की इन जानकारियों को अगली पीढ़ी तक ले जाने की बहुत आवश्यकता है। संस्थान की राजभाषा कार्यान्वयन समिति के सदस्य सचिव डॉ। कृष्ण कुमार रावत, उपाध्यक्ष डॉ। श्रीकृष्ण तिवारी समेत कई वैज्ञानिक कार्यक्रम में मौजूद रहे।