लखनऊ (ब्यूरो)। स्कूल जाने वाले बच्चों की परिवहन व्यवस्था का पुख्ता होना बेहद जरूरी है। सिर्फ बातें करने से नहीं बात नहीं बनेगी बल्कि धरातल पर काम करना होगा, तभी बच्चे सेफ रहेंगे। सबसे पहले तो जरूरी है कि चार स्टेक होल्डर्स को मिलकर काम करना होगा। ये स्टेक होल्डर्स हैैं स्कूल, पैरेंट्स, आरटीओ और पुलिस एवं स्कूलों से अटैच निजी वाहन संचालक। इन चारों को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी और साथ मिलकर काम करना होगा। वहीं, बच्चों को भी बताना होगा कि वे कैसे व्हीकल्स का यूज करें, जिससे वे सुरक्षित तरीके से स्कूल पहुंच सकें। यह विचार सामने आए दैनिक जागरण आईनेक्स्ट की ओर से सोमवार को आयोजित वेबिनार में। जिसमें स्कूल प्रबंधकों/प्रिंसिपल्स, पैरेंट्स, आरटीओ और एडीसीपी ट्रैफिक ने सुरक्षित स्कूल परिवहन व्यवस्था को लेकर मंथन किया और कई बिंदुओं के निष्कर्ष तक भी पहुंचे।

डीजे आईनेक्स्ट ने चलाया था अभियान

डीजे आईनेक्स्ट की ओर से स्कूल जाने वाले बच्चों की सेफ्टी से जुड़े बिंदुओं को लेकर 'सेफ्टी का मीटर डाउनÓ नाम से अभियान चलाया था। जिसके माध्यम से बताया गया था कि किस तरह से रोजाना लाखों बच्चे जान हथेली में रखकर स्कूल आ-जा रहे हैैं। अभियान के माध्यम से यह भी बताया गया कि स्कूल प्रबंधकों से लेकर जिम्मेदार महकमों की ओर से बच्चों की सेफ्टी को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैैं। जिसकी वजह से हर पल हादसा होने का खतरा मंडरा रहा है। स्कूल परिवहन व्यवस्था को किस तरह से बेहतर बनाया जाए, इसको लेकर ही वेबिनार आयोजित किया गया, ताकि स्कूली बच्चों की सुरक्षा को लेकर किसी नतीजे पर पहुंचा जा सके।

पैरेंट्स का पक्ष

निजी वाहनों पर कसा जाए शिकंजा

समस्या-स्कूली वाहनों में बच्चों को ठूंस-ठूंस कर भरा जाता है। जिसकी वजह से बच्चे की सेफ्टी पर सवाल तो उठते ही हैैं साथ ही हादसा होने का भी खतरा बना रहता है। हैरानी की बात तो यह है कि जब स्कूल वालों से इसको लेकर कोई कंपलेन करो तो सुनवाई नहीं होती है। ऐसे में स्कूल जाने वाले बच्चों की सुरक्षा कैसे पुख्ता हो सकती है।

सुझाव-सबसे पहले तो ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि स्कूल वाले निजी वाहन संचालकों पर शिकंजा कसे। अगर कोई वाहन चालक निर्धारित संख्या से अधिक बच्चे वैन या अन्य व्हीकल में लेकर जा रहा हो तो उसके खिलाफ कार्रवाई करें। इसके साथ ही पैरेंट्स भी इस बात का ध्यान रखें कि उनका बच्चा जिस साधन से स्कूल से आ जा रहा है, उसमें निर्धारित संख्या में बच्चे हों। अगर किसी व्हीकल में अधिक बच्चे हैैं तो उसमें अपना बच्चा न भेजें।

ममता श्रीवास्तव, पैरेंट

स्कूली वाहनों की फीस कम हो

समस्या-एक तरफ तो हम भारी भरकम फीस जमा करते हैैं साथ ही स्कूल बस या वैन की फीस भी बहुत अधिक होती है। इसकी वजह से हर पैरेंट पर दोहरी मार पड़ती है। कई ऐसे पैरेंट्स होते हैैं, जो स्कूली वाहनों की भारी भरकम फीस का भार नहीं उठा पाते। वे न चाहते हुए भी बच्चों को दूसरे साधनों के माध्यम से स्कूल भेजते हैैं, जिसकी वजह से बच्चों की सुरक्षा खतरे में पड़ती है।

सुझाव-स्कूल वालों को सबसे पहले तो स्कूली वाहनों की फीस कम करनी होगी। जब फीस कम हो जाएगी तो साफ है कि सभी पैरेंट्स अपने बच्चों को सेफ माध्यम से ही स्कूल भेजेंगे। आखिर कौन पैरेंट होगा, जो नहीं चाहता होगा कि उसका बच्चा सुरक्षित स्कूल से आए-जाए।

-पुष्पा मिश्रा, पैरेंट

ओवरलोड वाहनों की चेकिंग हो

समस्या-हम सभी अक्सर देखते हैैं कि स्कूली वाहन ओवरलोड रहते हैैं। ऐसे में खुद अंदाजा लगाया जा सकता है कि बच्चों की सेफ्टी को कितना नजरअंदाज किया जाता है। स्कूल वाले भी ध्यान नहीं देते हैैं और पैरेंट्स की ओर से भी कहीं न कहीं इस बिंदु को नजरअंदाज किया जाता है। बच्चों की सेफ्टी बहुत जरूरी है।

सुझाव-सबसे पहले तो ऐसा सिस्टम बनाया जाना चाहिए, जिससे बच्चों की सेफ्टी पुख्ता हो सके। अगर किसी भी स्कूली वाहन में सुरक्षा से जुड़े मानक पूरे नहीं हैैं तो उनके खिलाफ आरटीओ या पुलिस विभाग को कार्रवाई करनी चाहिए। निरंतर चेकिंग अभियान चलने से स्कूली वाहनों में सुरक्षा के मानक पूरे हो सकते हैैं।

-अमित मिश्रा

सीएनजी की जांच भी जरूरी

समस्या-जिम्मेदार विभागों की ओर से सुरक्षा मानक न पूरा करने वाले वाहनों को सीज तो कर दिया जाता है, लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि शाम तक वो वाहन फिर से रोड पर दौड़ता नजर आता है और अगले दिन स्कूली बच्चों को घरों से लेने के लिए पहुंच जाता है। जिससे साफ है कि कहीं न कहीं चेकिंग व्यवस्था में सुधार की जरूरत है। वहीं स्कूली वाहनों में लगी सीएनजी किट की भी जांच नहीं होती है।

सुझाव-गंभीरता से सीएनजी चेकिंग अभियान चलाया जाए। जिससे स्कूल जाने वाले बच्चों की सेफ्टी पुख्ता हो सके। वहीं, जो भी मानकों को लेकर चेकिंग अभियान चले, उसमें इस बात का ध्यान रखा जाए कि अगर कोई वाहन सीज किया जाता है तो तब तक उसे रिलीज न किया जाए, जब तक उसमें सुरक्षा से जुड़े मानक पूरे न हो जाएं।

विवेक शर्मा, समाजसेवी एवं आरडब्ल्यूए प्रतिनिधि

स्कूल प्रबंधक/प्रिंसिपल्स

हम सबको मिलकर काम करना होगा

हमारा यही प्रयास रहता है कि जो बच्चे बस या वैन से स्कूल आ-जा रहे हैैं, उनकी सुरक्षा के साथ कोई खिलवाड़ न हो। इसके लिए हमारी ओर से सभी चालकों के मोबाइल नंबर और उनकी पूरी डिटेल का रिकॉर्ड तैयार किया गया है। इसके साथ ही बसों में स्कूल कर्मचारी या टीचर की भी ड्यूटी लगाई जाती है। अगर किसी पैरेंट की ओर से स्कूली व्हीकल को लेकर कोई शिकायत दर्ज कराई जाती है तो तत्काल उसका समाधान कराया जाता है। जो बच्चा हमारे स्कूल में पढ़ रहा है, उसकी सेफ्टी हमारी प्राथमिकता है। मेरा मानना है कि पैरेंट्स को भी थोड़ा जागरूक होना होगा। स्कूल और पैरेंट्स मिलकर स्कूली परिवहन व्यवस्था को और मजबूत बना सकते हैैं। रही स्कूली वाहनों की फीस की बात तो हम पहले से ही इस पर काम कर चुके हैैं।

-रिचा खन्ना, प्रिंसिपल, वरदान इंटरनेशनल एकेडमी

हम सबकी जिम्मेदारी है

अगर कोई बच्चा ऐसे वाहन से स्कूल आ रहा है, जो असुरक्षित है तो हम सबकी संयुक्त जिम्मेदारी है कि हम इस व्यवस्था को बंद कराएं, जिससे बच्चा सुरक्षित रहे। इसके साथ ही जो निजी वाहन स्कूलों से अटैच हैैं, निरंतर रूप से आरटीओ या पुलिस विभाग की ओर से उनकी चेकिंग की जाए और सेफ्टी मानकों की जांच की जाए। पैरेंट्स को भी बताया जाए कि स्कूल बस या वैन का ही प्रयोग करें। जो भी प्राइवेट वाहन स्कूलों से जुड़े हुए हैैं, उनके चालकों और हेल्पर्स का पूरा डेटा रखा जाए, जिसे समय-समय पर चेक किया जाए। मेरी सभी से अपील है कि बच्चों की सेफ्टी को लेकर हर एक को प्रयास करना होगा, तभी कुछ बात बनेगी।

-अनिल अग्रवाल, अध्यक्ष, अनएडेड प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन (यूपी)

अपनी बस सेवा को चेक करते रहें

हमारे स्कूल से जुड़े सभी वाहनों में नियमित रूप से सेफ्टी मानकों की जांच की जाती है। इसके साथ ही जो भी चालक या परिचालक हैैं, उन्हें ड्रेस दी गई है और समय-समय पर उनकी हेल्थ की भी जांच कराई जाती है। वाहनों की फिटनेस को लेकर भी एक टीम बनाई गई है, जो समय-समय पर फिटनेस को लेकर जांच कराती रहती है। मेरी यही अपील है कि सभी पैरेंट्स प्रयास करें कि बच्चों को स्कूली बस या स्कूल से अटैच अन्य वाहन से ही स्कूल भेजें, जिससे बच्चा सेफ रहे। ई-रिक्शा या ऑटो की सवारी बच्चों के लिए थोड़ी रिस्की साबित हो सकती है। पैरेंट्स को भी अवेयर होने की जरूरत है।

-जतिंदर वालिया, डायरेक्टर, अवध कॉलेजिएट

बच्चों की सुरक्षा से समझौता नहीं

स्कूलों में जो ट्रांसपोर्टेशन की सुविधा है, उसमें सुरक्षा अधिक रहती है। इस बात को पैरेंट्स को भी समझना चाहिए। हमारी ओर से स्कूल से जुड़े सभी वाहनों में सुरक्षा से जुड़े सभी इंतजाम किए गए हैैं। समय-समय पर वाहनों की जांच कराने के साथ ही चालक और क्लीनर की भी काउंसिलिंग की जाती है। अगर किसी पैरेंट को व्हीकल को लेकर कोई समस्या है तो वह तुरंत आकर कंपलेन कर सकता है। जो भी कंपलेन आएगी, उसे तत्काल संज्ञान में लेकर उसका निस्तारण कराया जाएगा। मेरा भी यही मानना है कि बच्चे पूरी सुरक्षा के साथ स्कूल से आएं और घर जाएं।

-शर्मिला सिंह, प्रिंसिपल, पायनियर मांटेसरी स्कूल, एल्डिको ब्रांच

बोले जिम्मेदार

तेजी की जाएगी कार्रवाई

सबसे पहले तो चारों स्टेक होल्डर्स को मिलकर काम करना होगा, तभी बच्चों की सुरक्षा पुख्ता हो सकेगी। हमारी ओर से नियमित रूप से मानकों का पालन न करने वाले स्कूली या निजी वाहनों के खिलाफ चेकिंग अभियान चलाया जाता है। इसके साथ ही समय-समय पर स्कूलों में जागरूकता अभियान भी ऑर्गनाइज करते हैैं और उसके माध्यम से वाहनों की सेफ्टी को लेकर सभी को जागरूक करते हैैं। मेरा मानना है कि पैरेंट्स को भी जागरूक होना होगा साथ ही स्कूल वालों को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। मेरा सुझाव है कि स्कूल के प्रबंधक समय-समय पर पैरेंट्स के साथ मीटिंग करें या पैरेंटस टीचर्स मीटिंग में ही पैरेंट्स को बताएं कि उनका बच्चा किस तरह से सुरक्षित तरीके से स्कूल आ सकता है। जब तक पैरेंट्स जागरूक नहीं होंगे, तब तक कार्रवाई का कोई खास असर नहीं दिखेगा। हम आने वाले समय में भी चेकिंग अभियान चलाकर सुरक्षा नियम तोडऩे वाले स्कूली वाहनों के खिलाफ कार्रवाई करेंगे। अगर किसी को कोई कहीं भी स्कूली वाहन नियमों के साथ खिलवाड़ करता नजर आए तो तत्काल हमें इसकी जानकारी दें।

-संदीप कुमार पंकज, आरटीओ प्रवर्तन

पैरेंट्स को मोटिवेट करें

ज्यादातर पैरेंट्स को पता ही नहीं होता है कि उनका बच्चा किस साधन से स्कूल आ-जा रहा है। ऐसे में सबसे पहले तो पैरेंट्स को अवयेर किए जाने की जरूरत है। इसके लिए स्कूल प्रबंधकों को जिम्मेदारी निभानी होगी। स्कूल प्रबंधक जब पैरेंट्स टीचर्स मीटिंग करें तो पैरेंट्स को मोटिवेट करें कि वे अपने बच्चों को स्कूल से अटैच वाहनों से ही स्कूल भेजें। जिससे उनका बच्चा सेफ रहे। हमारे स्तर से नियमित रूप से चेकिंग अभियान चलाया जाता है और कार्रवाई की जाती है। जो निजी वाहन स्कूलों से अटैच हैैं, स्कूल प्रबंधक उनका डेटा तैयार करें और हमसे शेयर करें, ताकि समय-समय पर हमारी ओर से भी निजी स्कूल वाहनों में मानकों को लेकर चेकिंग की जा सके। सबके संयुक्त प्रयास से ही बच्चों की सेफ्टी को पुख्ता किया जा सकता है और यह हम सबकी जिम्मेदारी भी है।

-अजय कुमार, एडीसीपी ट्रैफिक