लखनऊ (ब्यूरो)। रोड पर लूट या चेन स्नेचिंग की वारदात पर पुलिस अमला जिस तरह सक्रिय होता है, अगर वैसी पुलिसिंग वर्तमान में सबसे ज्यादा हो रहे अपराध के नए तरीके पर होने लगे तो शायद हजारों लाखों लोगों की मेहनत की कमाई बचाई जा सकती हैै। हम बात कर रहे हैं साइबर फ्राड की। इसकी गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि साइबर अपराध एक दशक में 20 गुना तक बढ़ गया है। साइबर क्राइम की अपेक्षा स्ट्रीट क्राइम 20 फीसदी भी नहीं है।

साइबर सेल व थाना बनाकर जिम्मेदारी खत्म

वर्तमान में सबसे ज्यादा अपराध इंटरनेट वगैरह के जरिए हो रहा है। पर इसको लेकर नीचे से ऊपर तक के अफसर अभी भी उतने गंभीर नजर नहीं आते हैं, जितने स्ट्रीट क्राइम को लेकर रहते हैैं। हर जिले में साइबर क्राइम सेल बना दिया गया और 18 मंडल में साइबर थाने खोल दिया गया। पर सवाल खड़ा होता है कि क्या उन थानों व सेल में साइबर क्रिमिनल्स से लडऩे के पर्याप्त संसाधन व फोर्स मौजूद है? जबकि साइबर क्रिमिनल्स का चेहरा और उनकी लोकेशन तलाशना मुश्किल है। कई सौ किमी दूर बैठे साइबर क्रिमिनल्स एक क्लिक के जरिए लोगों की मेहनत की कमाई उड़ा लेते हैैं।

साइबर क्रिमिनल्स से मोर्चा लेने के लिए संसाधन

02-इंस्पेक्टर

04-सब इंस्पेक्टर

09-हेड कांस्टेबल

10-कांस्टेबल

व्हीकल

01-चार पहिया वाहन

01-दो पहिया वाहन

52 थानों में महज 20 फीसदी स्ट्रीट क्राइम के मामले

राजधानी में वर्तमान में 52 थाने हैं, जिसमें दो महिला थाने हैं। स्ट्रीट क्राइम के मामले महज 50 थानों में ही दर्ज होते हैं। विगत तीन साल के आंकड़े बताते हैं कि इन थानों में स्ट्रीट क्राइम (स्नेचिंग, लूट, छिनौती) आदि के 20 फीसदी से ज्यादा मामले दर्ज नहीं हुए हैं। इन थानों में सबसे ज्यादा ठगी, जालसाजी, लेन-देन के विवाद, वर्चस्व की झगड़े और आपसी विवाद के मामले ज्यादा दर्ज होते हैैं।

अन्य विंग की तरह 1930 का प्रमोशन नहीं

जिस तरह से पुलिस की अन्य विंग के हेल्पलाइन नंबर का प्रमोशन किया गया, वैसा साइबर क्राइम से जुड़े हेल्पलाइन नंबर 1930 का प्रमोशन नहीं किया जा रहा। इसके अलावा, चौराहों पर लगने वाले बोर्ड, पर्चे व अन्य माध्यम से भी साइबर हेल्पलाइन नंबर का प्रमोशन उस स्तर से नहीं किया जा रहा। लोगों को हेल्पलाइन 1930 की जानकारी तक नहीं है।

क्यों जरूरी है प्रमोशन

साइबर क्राइम से लोगों को जागरूक करना सबसे अहम है। लोगों को जागरूक करने से साइबर क्राइम से 50 फीसदी मामले घट सकते हैं, लेकिन प्रमोशन न होने व जागरूकता अभियान न चलाए जाने से बहुत से लोग इसका खामियाजा उठा रहे हैं। उन्हें नहीं मालूम है कि किस लिंक को क्लिक करना है या फिर आपके डेटा से कैसे साइबर फ्राड किया जा रहा है। साइबर फ्राड के हर दिन नए-नए तरीके सामने आ रहे हैं। इसका विस्तार बहुत बड़े पैमाने पर हो गया है।

10 फीसदी भी नहीं साइबर फ्राड की रिकवरी

साइबर फ्राड की रिकवरी के मामले में भी पुलिस विभाग काफी पीछे है। विगत दो साल से 35 करोड़ के फ्रॉड में केवल 4.5 करोड़ की रकम को ही रिकवर किया जा सका है, जबकि इससे पहले तीन से ज्यादा प्रतिशत का आंकड़ा रहता था। यह भी तब हो सका जब साइबर क्राइम की वारदात होते ही पीडि़त सक्रिय होकर साइबर सेल व साइबर थाना से मदद मांगी। ज्यादा दिन होने पर रकम वापसी में मुश्किल हो जाती है।

साइबर क्राइम को लेकर पुलिस का अभी तक सही माइंडसेट नहीं बन पाया है। उन्हें लगता है कि चेन स्नेचिंग की घटना में हल्ला मचता है, उससे लॉ एंड आर्डर बिगडऩे की स्थिति बन सकती है, इसलिए वे ज्यादा एक्टिव दिखते हैं। साइबर फ्राड के मामलों को ज्यादा तवज्जो नहीं दी जाती। हालांकि, पूरी दुनिया में आर्थिक अपराध को काफी गंभीरता से लिया जा रहा है, पर यहां स्थानीय पुलिस खुद सपोर्ट नहीं करती। इसके लिए टॉप लेवल के अफसरों को सिस्टम तैयार करना होगा तभी वर्तमान समय में बड़ी मुसीबत बन चुके साइबर क्राइम को कंट्रोल किया जा सकेगा।

-ज्ञान प्रकाश चतुर्वेदी, पूर्व पुलिस अधिकारी