लखनऊ (ब्यूरो)। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के माध्यम से स्वास्थ्य और शिक्षा के बारे में विस्तृत जानकारी जुटाई जाती है। सर्वे के अनुसार संस्था ने 15-19 वर्ष की उम्र की किशोरियों और युवतियों से बातचीत के बाद आंकड़ा जारी किया है। जहां 2.1 फीसद किशोरियां या तो मां बन चुकी थी या प्रेग्नेंट हैं।
जल्दी शादी जल्दी बच्चे का चलन
क्वीन मैरी में आब्स एंड गाएनी डॉ एसपी जैसवार ने बताया कि देश में 18 वर्ष की उम्र में लड़कियों को अडल्ट मान लिया जाता है। जल्दी शादी और जल्दी बच्चे करने का चलन आज भी जारी है। गांवों में यह बहुत देखने को मिलता है, इसे बदलने की जरूरत है। कम उम्र में मां बनना बेहद खतरनाक है, क्योंकि ऐसे में महिला का जब खुद पूर्ण रूप से शारीरिक विकास नहीं हुआ है तो वह जिस बच्चे को जन्म देगी, वह कैसे स्वस्थ्य रहेगा।
डाटा मिलने लगा है
डॉ जैसवार के मुताबिक कम उम्र में प्रेग्नेंसी पहले से होती रही हैं लेकिन इसका कोई डाटा नहीं होता था। अब लोगों में जागरूकता आने के चलते डाटा मिल रहा है। परिवार बच्चियों को लेकर अस्पताल आ रहे हंै।
पॉक्सो एक्ट में दर्ज कराने चाहिए मामले
कम उम्र में मां बनने के मामले अस्पतालों में आने पर इसकी जानकारी पुलिस को दी जानी चाहिए, ताकि पॉक्सो एक्ट में मामला दर्ज कराया जा सके। झलकारीबाई अस्पताल की एमएस डॉ दीपा शर्मा के मुताबिक पहले कम उम्र में प्रेग्नेंसी होने पर होम डिलीवरी कराई जाती थी। अब इंस्टीट्यूशनल डिलीवरी होने लगी है। गांवों में अर्ली मैरिज का कांसेप्ट है आज भी देखने को मिल रहा है। कुछ मामलों में रेप भी इसका कारण हो सकता है। अस्पताल में इन तरह के एक-दो मामले हर माह सामने आ रहे हैं।
जच्चा बच्चा दोनों के लिए खतरनाक
डॉ दीपा ने बताया कि अर्ली एज प्रेग्नेंसी में प्री-मेच्योर डिलीवरी का खतरा रहता है। ऐसे में मां के साथ बच्चे की सेहत पर भी असर पड़ता है। बच्चे का वजन कम होना, खून की कमी होना, सही तरीके से मानसिक विकास न होना आदि समस्या हो सकती है।
क्यों बढ़ गए मामले
- पहले इसका कोई रिकार्ड ही मौजूद नहीं रहता था।
- अब लोग घरों में नहीं अस्पताल में डिलीवरी कराते हैं
- जल्द शादी और जल्द बच्चे का चलन

पहले इस तरह का डाटा उपलब्ध नहीं था। अब मामले रिपोर्ट होने लगे हंै इसलिए दर बढ़ी नजर आ रही है। गांवों में आज भी जल्द शादी का रिवाज है।
डॉ एसपी जैसवार, क्वीन मैरी

कम उम्र में जो डिलीवरी घरों में होती थी, वो अब अस्पतालों में होने लगी है। जिससे मामले दर्ज होने लगे है। इस बारे में लोगों को जागरूक करने की जरूरत है।
डॉ दीपा शर्मा, झलकारीबाई अस्पताल