लखनऊ (ब्यूरो)। हिमालय क्षेत्र में दो हजार पांच सौ मीटर ऊपर की घाटियां, जो पैराग्लेशियल जोन का भाग हंै, इनमें ग्लेशियर के द्वारा लाया गया मलबा जमा है। जैसे ही तापमान में बढ़त होती है, यह मलबा मूव करता है और नीचे के जो भी कंस्ट्रक्शन के काम होते हैं, वे बुरी तरह प्रभावित होते हैं। ऐसे में पैराग्लेशियल जोन में इस तरह के कंस्ट्रक्शन न किए जाएं जो नदी के फ्लो को रोक दें। ये बातें सोमवार को बीरबल साहनी पुरा विज्ञान संस्थान के सेंटर फॉर प्रमोशन ऑफ जियोहेरिटेज एंड जियोटूरिज्म की ओर से शुरू किए गए अर्थ साइंस सप्ताह में शामिल हुए मुख्य अतिथि डॉ। नवीन जुयाल, पूर्व वैज्ञानिक, भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला, अहमदाबाद ने कहीं। उन्होंने बताया कि हिमालय में जो हाइड्रो पावर प्लांट्स बनाए जाएं उनकी डिजाइन ऐसी हो कि जो फ्लड का मैनेजमेंट कर सकें। उन्होंने कहा कि छोटे बैराज बनाए और साइड से रास्ता भी दें, जिससे नदी के फ्लो को रोका न जा सके और बाढ़ त्रासदी के रूप में न आए।

संवेदनशील होना पड़ेगा
कार्यक्रम की शुरुआत सीपीजीजी-बीएसआईपी, लखनऊ की वैज्ञानिक और संयोजक डॉ। शिल्पा पांडेय ने की। उन्होंने कार्यक्रम के बारे में बताया। कार्यक्रम के दौरान बीएसआईपी के निदेशक, प्रोफेसर महेश जी ठक्कर ने कहा कि हर किसी को धरती से गैर-नवीकरणीय संसाधनों के उपयोग के प्रति संवेदनशील होना चाहिए और ग्रह के स्थायी भविष्य के लिए मिलकर काम करना चाहिए। डॉ। विवेश वीर कपूर, वैज्ञानिक और सदस्य सीपीजीजी-बीएसआईपी ने धन्यवाद प्रस्ताव रखा। डॉ। कपूर ने कहा कि सीपीजीजी भारत में भूवैज्ञानिक विरासत स्थलों के संरक्षण और टिकाऊ भू-पर्यटन को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इस दौरान डॉ। सतीश त्रिपाठी, पूर्व-डीडीजी ने भी अपने विचार रखें। कार्यक्रम में शहर के कई स्कूलों व कॉलेजों के स्टूडेंट्स ने भाग लिया।