लखनऊ (ब्यूरो)। क्वीन मैरी आब्स एंड गाएनी विभाग की डॉ। रेखा सचान के मुताबिक बीते कुछ वर्षों में महिलाओं के प्रति समाज में काफी बदलाव देखने को मिला है। ये आंकड़े इसे परिभाषित कर रहे हैं। इसके कई कारण है। जिसमें प्रमुख यह है कि पीसीपीएनडीटी एक्ट का कड़ाई से पालन किया जा रहा है। अवैध तरीके से अल्ट्रासाउंड जांच कराकर भ्रूण का लिंग जांचना करीब-करीब बंद हो गया है। जिससे गर्भपात में कमी आई है।
जागरूकता से आया सुधार
डॉ। रेखा सचान के मुताबिक लोगों में जागरूकता बढ़ी है। पहले जहां बेटी होने पर माताएं रोती थीं कि घर वाले क्या कहेंगे। अब तो पति सामने से आकर मुझे बेटी चाहिए बोलते हैं। दूसरा यह कि इंस्टीट्यूशनल डिलीवरी में भी सुधार देखने को मिला है। इसमें सरकार की जननी सुरक्षा योजना, फ्री डिलीवरी आदि योजनाओं का बड़ा योगदान है।
जन्म में भी आया सुधार
नेशनल हेल्थ सर्वे के मुताबिक प्रति हजार मेल चाइल्ड बर्थ के मुकाबले बच्चियों का आंकड़ा भी बढ़ा है। यह आंकड़ा 2915-16 के 870 के मुकाबले 2020-21 में 981 हो गया है। क्वीन मैरी की डॉ एसपी जैसवार ने बताया कि अब बेटियां पढ़-लिखकर खुद पैरों पर खड़ी हो रही हंै। जिससे समाज में उनके प्रति सम्मान बढ़ा है। ओवरआल मेडिकल सुविधाओं में इजाफा होने से बच्चों की मृत्युदर में भी कमी आई है।

इन कारणों से आया सुधार
- पीसीपीएनडीटी एक्ट का सख्ती से पालन
- लोगों के बीच जागरूकता का बढऩा
- सरकार की ओर से बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान चलाना
- संस्थागत प्रसव में इजाफा होना
- महिलाओं का शिक्षित होकर अपने पैरों पर खड़े होना
- गर्भवतियों में कैल्शियम-आयरन को लेकर जागरूकता

राजधानी में किस तरह आया सुधार
- 2015-16 में प्रति एक हजार पुरुषों में महिलाओं की संख्या 919 थी।
- अब राजधानी में प्रति एक हजार पुरुषों में महिलाओं की संख्या 950 हो गई है।

संस्थागत प्रसव में इजाफा
- प्रदेश में प्रतिशत 83.4 फीसद है
- राजधानी में प्रतिशत 91.3 फीसद है
- राजधानी में 2015-16 में प्रतिशत 88.1 फीसद था

पीसीपीएनडीटी एक्ट का कड़ाई से पालन और सरकारी योजनाओं का लाभ मिलना इसकी बड़ी वजह है। इसमें और सुधार आए इसके लिए और कदम उठाए जाएंगे।
डॉ मनोज अग्रवाल, सीएमओ