- आईसीएमआर कोविड-19 के इलाज से प्लाज्मा थेरेपी को हटाने पर कर रहा विचार

- इलाज से जुड़े डॉक्टर्स बोले, फायदा तो होता है, पर अभी और रिसर्च की जरूरत

- डॉक्टर्स की राय, हमें इलाज के अन्य ऑप्शन भी तलाशने होंगे

LUCKNOW : इंडियन काउंसलि ऑफ मेडकिल रिसर्च (आईसीएमआर) द्वारा कोविड-19 के लिए नेशनल डायग्नोस्टिक प्रोटोकॉल से प्लाज्मा थेरेपी को हटाया जा सकता है। दरअसल, इसको लेकर हुए ट्रायल में गंभीर बीमारी की स्थिति में मृत्युदर में कमी नहीं आई। हालांकि कई एक्सपर्ट का मानना है कि इससे थोड़ा फायदा तो जरूर देखने को मिला है। जब तक कोरोना का कोई बेहतर इलाज सामने नहीं आता तब तक इसको जारी रखना चाहिए। वैसे और भी ऑप्शन भी देखते रहने होंगे। क्योंकि अभी सब कुछ एक्पेरिमेंटल दौर में ही चल रहा है।

पेशेंट में फायदा देखा गया

केजीएमयू के ब्लड एंड ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन डिपार्टमेंट की एचओडी डॉ। तूलिका चंद्रा का कहना है कि प्लाज्मा थेरेपी काफी पुरानी थेरेपी है, लेकिन जब तक वैक्सीन नहीं है तब तक दूसरे मेथड से ट्रीट करने की कोशिश की जाती है। हालांकि आईसीएमआर ने भी माना है कि इस थेरेपी से पेशेंट की हालत में सुधार देखा गया है। फिर भी आईसीएमआर जो फैसला लेगा उसी अनुसार काम होगा। वैसे इसके बाद भी थेरेपी जारी रख सकते हैं, क्योंकि इसको लेकर कोई मनाही नहीं है। साथ ही इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है और ट्रीटमेंट भी महंगा नहीं है। ऐसे में डॉक्टर्स को देखना होगा कि थेरेपी वाकई किन को देने की जरूरत होगी।

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थेरेपी के मजबूर एंटीबॉडी की जरूरत

केजीएमयू के संक्रामक रोग विभाग के इंचार्ज डॉ। डी हिमांशु का मानना है कि शुरू से ही कहा जाता रहा है कि इस थेरेपी का हर जगह इस्तेमाल नहीं होना था। केवल कुछ जगहों पर इसके यूज करने का फायदा था। जहां तक आईसीएमआर की बात है तो जो उन्होंने ट्रायल किया था उसमें देखा गया कि जो प्लाज्मा डोनर्स थे, उनके एंटीबॉडी अच्छी नहीं थी। ऐसे में डोनर्स का एंटीबॉडी कितनी अच्छी है, थेरेपी उस पर भी डिपेंड करती है।

देखने होंगे दूसरे ऑप्शन

डॉ। हिमांशु बताते हैं कि प्लाज्मा थेरेपी हर एक को देने की जरूरत नहीं है। वहीं आईसीएमआर के फैसले के बाद क्या असर होगा इसके बारे में ज्यादा बताया नहीं जा सकता है। ऐसे में इसके बाद ऑप्शन क्या बचेंगे इसके बारे में देखना पड़ेगा क्योंकि अभी तक कोरोना का कोई ट्रीटमेंट, दवा या वैक्सीन नहीं आई है।

आईसीएमआर का ट्रायल

- प्लाच्मा थेरेपी के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए प्लेसिड परीक्षण नाम से रैंडेमाइच्ड कंट्रोल ट्रायल किया था।

- देश के 39 सेंटर पर 22 अप्रैल से 14 जुलाई के बीच 464 मरीजों पर टेस्ट किया गया था।

- सितंबर में एक मेडिकल जर्नल में प्रकाशित परीक्षण के परिणाम के अनुसार इससे मरीजों को फायदा नहीं हुआ।

- इसके बाद इसे हटाने की बात चल रही है।

डॉक्टर्स का दावा, थोड़ा सुधार जरूर

इलाज से जुड़े कई डॉक्टर्स के अनुसार शुरुआत में प्लाज्मा थेरेपी के दौरान कई गंभीर मरीजों को फायदा होता देखा गया। दावा किया गया था कि कई पेशेंट इसके बाद ठीक भी हुए थे, जिसके बाद दूसरे संस्थानों में भी प्लाज्मा थेरेपी की शुरुआत की गई। ऐसे में थेरेपी पर रोक लगने से इलाज पर फर्क पड़ सकता है।