लखनऊ (ब्यूरो)। मानसून में बारिश का सूखा देखने को मिला, तो मानसून विदड्रॉल से पहले मूसलादार बारिश का कहर भी देखने को मिल रहा है। आलम यह है कि जून, जुलाई और अगस्त माह में बारिश औसत से भी कम हुई, जबकि सितंबर और अक्टूबर में औसत से कई गुना ज्यादा बारिश रिकार्ड की गई है। मौसम के इस बदलाव की वजह से मौसम और कृषि वैज्ञानिक भी हैरान हैं। इसका असर मौसम और खेती, दोनों पर देखने को मिलेगा।

मानसून विदड्रॉल कंडीशन नहीं बन रही

मानसून के समापन का समय अमूमन 30 सितंबर तक माना जाता है। कभी-कभार कुछ हफ्ते आगे-पीछे हो सकता है। पर अक्टूबर माह में अभी तक मानसून नहीं गया है। लखनऊ की बात करें तो 10 अक्टूबर तक रिकार्ड 137.9 एमएम बारिश दर्ज की जा चुकी है, जबकि इस माह में औसतन बारिश 17.2 दर्ज होती है, यानि करीब 700 फीसद अधिक बारिश रिकार्ड की जा चुकी है। मौसम वैज्ञानिक और आंचलिक मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक जेपी गुप्ता के मुताबिक, मानसून पूरी तरह से गया नहीं है। इसकी वजह यह है कि मानसून विदड्रॉल के लिए जरूरी कंडीशन नहीं बन पा रही है जैसे एंटी साइक्लोन, बारिश नहीं होना और नमी में कमी आना आदि कई कंडीशंस होती हैं। उम्मीद है कि अगले कुछ दिनों में मानूसन की पूरी तरह से विदाई हो जायेगी। पश्चिमी उप्र में दो-तीन दिन में मानसून चला जायेगा।

जलवायु परिवर्तन का असर

एलयू में भू-वैज्ञानिक प्रो। अजय मिश्रा के मुताबिक, अधिक बारिश से धान को नुकसान होगा। दूसरा, वेस्टर्न डिस्टर्बेंस से बारिश अधिक हो गई है। इसका कारण सूर्य का एक्सिस धरती की जगह समुद्र की ओर बढ़ रहा है, जिससे बादल ज्यादा बन रहा है। धरती का तापमान बढ़ रहा है, जिसकी वजह से ऐसा देखने को मिल सकता है। इसकी एक और वजह, जलवायु परिवर्तन भी हो सकती है, जिसकी वजह से दिक्कतें और बढ़ सकती हैं, क्योंकि प्री-मानूसन जुलाई-अगस्त और पोस्ट-मानूसन सितबंर-अक्टूबर में भी बारिश होती है। पर इसबार इसका पैटर्न वेस्टर्न डिस्टर्बेंस की वजह से बदला है।

धान और गेहूं पर असर

लखनऊ विश्वविद्यालय में बॉटनी विभाग की डॉ। नलिनी पांडे के अनुसार, बेमौसम हो रही बारिश का असर कृषि पर साफ देखने को मिल रहा है। पहला यह कि जो धान पकने के लिए खड़ा है, बारिश की वजह से उसकी बालियां बेकार हो रही हैं। दूसरा, जो सर्दी नवंबर में आती है, वो जल्दी शुरू होने से तापमान में बदलाव हो रहा है। इसकी वजह से गेहूं की खेती पर भी असर देखने को मिलेगा, क्योंकि रात-दिन के समय के अनुसार फूल और बीज बनते हैं। तापमान का भी सिस्टम बदल रहा है, जिससे दिक्कतहोगी। फसल की पैदावर पर असर हो सकता है।

महंगी हो सकती हैं सब्जियां

डॉ। नलिनी आगे बताती हैं कि इस बेमौसम बारिश का असर सब्जियों की पैदावार पर भी देखने को मिलेगा, क्योंकि सब्जियां पानी में जमेंगी नहीं और जो जमीं है वो पानी की वजह से गल जायेंगी, जिससे सब्जियां बेकार हो जायेंगी। खासतौर पर पालक, मेथी, साग, कद्दू व गोभी आदि सब्जियों पर असर ज्यादा होगा। बारिश से कीड़े भी पड़ सकते हैं। पैदावार कम होने से दाम भी बढ़ सकते हैं, जिससे समस्या और बढ़ सकती है।

इतनी दर्ज हुई बारिश (एमएम में)

महीना औसत दर्ज हुई अंतर

जून 90.2 43.1 -52

जुलाई 207 156.6 -31

अगस्त 202 142.1 -30

सितंबर 163.9 249.9 +52

अक्टूबर 17.2 137.9 +702

नोट -अंतर का आंकड़ा फीसदी में है

-आंचलिक मौसम केंद्र द्वारा उपलब्ध राजधानी के आंकड़े

-अक्टूबर का 1-10 तारीख तक के आंकड़े