LUCKNOW: बाल कल्याण समिति ने आठ हजार मामलों का पिछले करीब पांच वर्षो में समाधान किया है। इस दौरान कई ऐसे मामले भी आएं जो मुख्य रूप से पति-पत्‍‌नी के आपसी झगड़े के कारण बच्चों का उत्पीड़न हो रहा था। जिस अभिभावक के पास बच्चा होता वह दूसरे को उससे नहीं मिलने देता और बच्चा व दूसरा अभिभावक परेशान होते। ऐसे में बाल कल्याण समिति अपने ही परिसर में बच्चे से मिलवाने का कार्य किया। इस तरह के मामले में बच्चे की मां ने हाईकोर्ट में बाल कल्याण समिति लखनऊ के खिलाफ अपील भी किया था। जहां बाल कल्याण समिति के फैसले को सही ठहराया गया। नवजात शिशुओं के मामले में भी समिति के सामने चुनौती आई। अधिकतर नवजात शिशु बहुत ही कमजोर और कम वजन के मिलते हैं जिन्हें रखने के लिए अक्सर ही परेशानियों का सामना करना पड़ा। इसके अलावा बाल गृहों में मेडिकल कैंप, बालगृह शिशु में पुस्तकालय की स्थापना, योग तथा मेडिटेशन की शुरुआत, कथा रंग तथा कथा कथन जैसे कार्यक्त्रमों के माध्यम से बालगृहों में स्टोरी टेलिंग बच्चों को फास्टर केयर में दिया गया।

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कोविड के दौरान बाल कल्याण समिति के सामने बड़ी चुनौती आई जिसमे घरों से पलायन किए हुए बच्चे रखने की बड़ी समस्या आई। 2020 में लॉकडाउन के दौरान बाल विवाह के लगभग 14 मामले सामने आए जिन्हें तत्परता से रुकवाया गया। बालिकाएं राजकीय बालगृह बालिका कोविड पाजिटिव पाई गई। 29 बालिकाएं लगभग 15 दिन आईसोलेशन सेंटर में रही और स्वस्थ्य होकर वापस गृह में चली गई। बाल कल्याण समिति की ओर से कुलदीप रंजन, रिचा खन्ना, विनय कुमार, सुधा रानी, डॉ संगीता शर्मा इस कार्य में जुटी रही हैं।

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कैसे मामले आए

-बच्चों के आश्रय

-बालश्रम

-बाल भिक्षावृत्ति

-माता-पिता से नाराज होना

- किशोर-किशोरियों का पलायन -बाल विवाह