लखनऊ (ब्यूरो)। सम्मान और यकीन की नींव पर टिका टीचर और स्टूडेंट्स का रिश्ता बहुत खास होता है। बदलते वक्त के साथ यह रिश्ता भी काफी बदला है। वर्चुअल दुनिया से भावनाओं के बीच प्रोफेशनलिज़्म ने पैर जमाए हैं। छात्र शिक्षक से सवाल पूछने की बजाए गूगल और यूट्यूब पर सवाल पूछने लगे हैं, लेकिन इन सबके बावजूद गुरु आज भी शिष्य के लिए अहम है। बिना उनके सहयोग के पढ़ाई को समझना मुश्किल है। इसी दौर में कुछ ऐसे शिक्षक हैं जो अपने इनोवेशन के जरिए स्टूडेंट्स को फायदा पहुंचा रहे हैं। हमने स्कूल और कॉलेजों के कुछ ऐसे ही शिक्षकों के प्रयासों पर बात की। पेश है सैयद सना की रिपोर्ट

अपने अनुभवों से स्टूडेंट्स को पढ़ा रहे

डॉ। एपीजे अब्दुल कलाम टेक्निकल यूनिवर्सिटी के प्रति कुलपति प्रो। मनीष गौड़ अपने स्टूडेंट्स के बीच काफी पॉपुलर हैं। वह कहते हैं कि हायर एजुकेशन में स्टूडेंट्स को सिर्फ थ्योरी पढ़ा देने से काम नहीं चलता, थ्योरी पढ़ाने के बाद उसे कहां अप्लाई करेंगे, यह बताना भी बहुत जरूरी है। ऐसे में हमारा पढ़ाने का तरीका पूरा प्रैक्टिकल बेस होता है। वह कहते हैं कि मैंने यूके, आईआईटी दिल्ली, कानपुर जैसे संस्थानों में पढ़ाई करने के दौरान जो सीखा बच्चों को वही पढ़ा रहा हूं। पढ़ाने के साथ-साथ वह कई प्रोजेक्ट्स पर भी काम कर रहे हैं। मोबाइल कचरे से बैटरी बनाने के बाद फिलहाल वह साइबर सिक्योरिटी पर एआई के जरिए सिंथेटिक डेटा पर काम कर रहे हैं। उनके सुपरविजन में 5 पीएचडी हो चुकी हैं और उनके एक स्टूडेंट ने डीएसटी भी किया है। अपने 32 साल के करियर में उनके रिसर्च पेपर कई बड़े जर्नल में प्रकाशित हो चुके हैं। साथ ही उन्हें कॉमनवेल्थ अकेडमिक स्टाफ स्कॉलरशिप 2012, यूके, कॉमनवेल्थ यूके स्कॉलरशिप 2005, यंग साइंटिस्ट अवार्ड समेत तमाम सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है।

स्टडी, टीच एंड लर्न के कॉन्सेप्ट को अपनाया

राजकीय जुबिली इंटर कॉलेज के शिक्षक अभय मिश्रा 11वीं-12वीं कक्षा को मैथ्स पढ़ाते हैं। उन्होंने मैथ्स को रोचक बनाने के लिए मॉडल बेस लर्निंग का कॉन्सेप्ट शुरू किया। वह बताते हैं कि इसके तहत हमने एलईडी लाइट का इस्तेमाल करके बच्चों से ट्रिग्नोमेट्री, कैलकुलस जैसे टॉपिक्स के मॉडल्स बनवा रहे हैं। इसके अलावा स्टडी टीच एंड लर्न को भी शुरू किया। इसमें हफ्ते भर में जो भी पढ़ाया गया है, उसमें से जो विषय नहीं समझ आया, उसको खुद से पढ़कर बच्चा दूसरे बच्चों को पढ़ा कर खुद सीखता है। वह बच्चों को टेक्नोलॉजी फ्रेंडली बनाने के लिए गूगल फॉर्म से टेस्ट भी ले चुके हैं। इसके साथ ही स्कूल के दो अन्य शिक्षकों के साथ मिलकर स्कूल की डिजिटल मैग्जीन 'जुबिटलÓ भी बना चुके हैं।

बच्चों की फाउंडेशन लर्निंग पर जोर

पीएस सलेमपुर पतौरा काकोरी की हेड टीचर शशि मिश्रा प्राइमरी स्कूल में बच्चों की संख्या बढ़ाने से लेकर ड्रॉपआउट छात्रों को स्कूल भेजने, छात्रों को तकनीकी रूप से सुदृढ़ करने और फाउंडेशन लर्निंग पर जोर देने का काम कर रही हैं। उनके स्कूल में बच्चों को प्राइवेट स्कूल की तरह फैसिलिटी दी जा रही है। सारे टीचर एंड्रॉयड फोन के साथ बच्चों को एक्टिविटी व तकनीकी लर्निंग पर जोर देते हैं। इसके अलावा हमने बच्चों में पढ़ाई को बढ़ावा देने के लिए गांव के लोकल लोगों मसलन अभिभावकों, प्रधान और बच्चों को जोड़ा है, जिससे स्कूल में छात्रों की संख्या बढ़ी है। वहीं, करिकुलर एक्टिविटीज के साथ-साथ छात्र खेलकूद में भी हिस्सा ले रहे हैं। उनके स्टडी वीडियोज दूरदर्शन में प्रसारित किए जाते हैं। साल 2020 में उन्हें राजकीय शिक्षक पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है।

सिखा रहीं एंवायरमेंट को बचाना

सिटी मॉन्टेसरी स्कूल, कानपुर रोड की टीचर शिक्षा त्रिपाठी जूनियर हाईस्कूल के बच्चों को जियोग्राफी पढ़ाती हैं। वह बताती हैं कि सब्जेक्ट को आसान बनाकर पढ़ाने से बच्चे आसानी से उसे समझते हैं। एक तो टॉपिक्स को रोजाना होने वाली चीजों से जोड़ना साथ ही मैप के लिए रिवर्स को याद कराने से उनके लिए सब्जेक्ट्स को समझना आसान हो जाता है। वह एंवायरमेंट से जुड़कर बच्चों को भी जोड़ रही हैं। फिलहाल वह तीन नेशनल प्रोजेक्ट्स पर काम कर रही हैं। उनके एंवायरमेंट से रिलेटेड काम के लिए उन्हें कई सम्मान भी मिल चुके हैं। शिक्षा को नेशनल लेवल पर पर्यावरण मित्र, सेंटर फॉर एंवायरमेंट एजुकेशन की ओर से बेस्ट टीचर और इंटरनेशनल संस्था की ओर से भी अवार्ड मिल चुका है।