- स्व। केपी सक्सेना को आई नेक्स्ट की ओर से श्रद्धांजलि

- गुरू अमृत लाल नागर की सलाह से हिन्दी व्यंग्य लिखने के लिए बनाया करियर

- बॉलीवुड में उनका योगदान आज भी सराहनीय

LUCKNOW: पद्मश्री केपी सक्सेना। एक ऐसा नाम जो लखनऊ की पहचान हैं। हिन्दी व्यंग्य और फिल्म पटकथा लेखक के रूप में लोग उन्हें केपी के नाम से जानते थे। हरिशंकर परसाई और शरद जोशी के बाद वे हिन्दी के सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले व्यंग्यकार थे। उन्होनें लखनऊ में मध्यमवर्गीय जीवन को लेकर अपनी रचनाएं लिखीं। उनके लेखन की शुरुआत उर्दू में उपन्यास लेखन के साथ हुई लेकिन बाद में गुरू अमृत लाल नागर की सलाह से वह हिन्दी व्यंग्य में आ गए। उनकी लोकप्रियता इस बात से आंकी जा सकती है कि आज उनकी करीब क्भ् हजार प्रकाशित फुटकर व्यंग्य रचनाएं हैं।

अटल जी के चुनाव में हुए नुक्कड़ नाटक

लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी के खिलाफ फिल्म एक्टर राज बब्बर इलेक्शन लड़ रहे थे। पूरा बॉलीवुड उनके प्रचार में आ गया। उस समय केपी सक्सेना से बात की गई। कहा कि वह ही बॉलीवुड की हस्तियों से टक्कर ले सकते हैं। केपी सक्सेना, उर्मिल कुमार थपलियाल और स्व। कुमुद नागर ने दो नुक्कड़ नाटक बनाए और उससे कमाल हो गया। पब्लिक पर इनका जबरदस्त इम्पेक्ट पड़ा और अटल जी इलेक्शन जीत गए।

करते थे चकल्लस

केपी के चाहने वालों में से एक ने का कि चौक में क्9म्0 से होली के मौके पर कवि सम्मेलन चकल्लस का आयोजन शुरू हुआ। अमृतलाल नागर इसकी अध्यक्षता करते थे और केपी सक्सेना ने कई सालों तक इसमें हिस्सा लिया करते थे। के पी सक्सेना का जन्म सन् क्9फ्ब् में बरेली में हुआ था। उनका पूरा नाम कालिका प्रसाद सक्सेना था। केपी जब केवल क्0 वर्ष के थे उनके पिता का निधन हो गया। उनकी मां उन्हें लेकर बरेली से लखनऊ अपने भाई के पास आ गयी। केपी के मामा रेलवे में नौकरी करते थे। मामा के कोई औलाद न थी तो उन्होंने केपी को अपने बच्चे की तरह पाला। केपी ने वनस्पतिशास्त्र बॉटनी में स्नातकोत्तर एमएससी की उपाधि प्राप्त की और कुछ समय तक लखनऊ के एक कॉलेज में अध्यापन कार्य किया। बाद में उन्हें उत्तर रेलवे में सरकारी नौकरी के साथ-साथ उनकी पसन्द के शहर लखनऊ में ही पोस्टिंग मिल गयी। इसके बाद वे लखनऊ में ही स्थायी रूप से बस गये। उन्होंने अनगिनत व्यंग्य रचनाओं के अलावा आकाशवाणी और दूरदर्शन के लिए कई नाटक और धारावाहिक भी लिखे। बीबी नातियों वाली धारावाहिक बहुत लोकप्रिय हुआ। उनकी लोकप्रियता का अन्दाज इसी से लगाया जा सकता है कि था कि मूल व्यंग्य लेखक होने के बावजूद उन्हें कवि सम्मेलन में भी बुलाया जाता था। जीवन के अन्तिम समय में उन्हें जीभ का कैंसर हो गया था जिसके कारण उन्हें फ्क् अगस्त ख्0क्फ् को लखनऊ के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया। लेकिन इलाज से कोई लाभ न हुआ और आखिरकार उन्होंने फ्क् अक्तूबर ख्0क्फ् सुबह साढ़े 8 बजे दम तोड़ दिया।

प्रमुख कृतियां

नया गिरगिट

कोई पत्थर से

मूंछ-मूंछ की बात

रहिमन की रेलयात्रा

रमइया तोर दुल्हिन

लखनवी ढंग से

बाप रे बाप

गज फुट इंच

बाजूबंद खुल-खुल जाय

श्री गुल सनोवर की कथा

केपी की व्यंग्य रचनाओं की लोकप्रियता को देखते हुए उन्हें सन ख्000 में भारत सरकार का विशेष अलंकरण पद्मश्री सम्मान प्रदान किया गया।