- छठ घाट पर केवल दो लोगों को मिलेगी इजाजत

- इस बार नहीं होंगे कोई भी सांस्कृतिक कार्यक्रम

LUCKNOW : सूर्य उपासना का चार दिवसीय महापर्व छठ पूजा शुरू होने वाली है। इसी के साथ राजधानी में छठ मैय्या की भक्ति का उफान जोरों पर है। गोमा किनारे बने लक्ष्मण मेला मैदान व झूलेलाल घाट पर छठ की तैयारियों पूरी हो चुकी हैं। नहाय-खाए के साथ आज यानि बुधवार से छठ पर्व की शुरुआत होगी। हालांकि कोरोना की वजह से इसबार कोई भी सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं होंगे। वहीं घाटों पर कोविड प्रोटोकॉल के साथ सीमित संख्या में लोगों को आने की अनुमति मिलेगी।

घाट पर केवल दो लोगों का प्रवेश

अखिल भारतीय भोजपुरी समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रभुनाथ राय ने बताया कि छठ पर्व को लेकर सभी तैयारी अंतिम दौर में हैं। गोमती तट पर साफ-सफाई के साथ सुसोभिता 'सूर्य मंदिर' बनवाने और उसकी रंगाई पुताई का काम पूरा हो चुका है। इसके साथ सुरक्षा के लिए पुलिस ड्यूटी भी लगवाई गई है। इसके अलावा स्टीमर की भी व्यवस्था रहेगी। घाट पर आने वाले सभी लोगों को कोविड प्रोटोकॉल के तहत ही एंट्री मिलेगी। बिना मास्क के प्रवेश नहीं दिया जायेगा। इसबार घाट पर पूरी चेकिंग के बाद केवल दो लोगों को ही एंट्री मिलेगी। साथ ही व्रतियों से अपील है कि कोई भी पूजन सामग्री नदी में न फेंके। इसके लिए अलग से बनाए गई जगहों पर ही डालें ताकि गोमा को प्रदूषित होने से रोका जा सके। साथ ही कोरोना को देखते हुए लोग सोशल डिस्टेंसिंग का पालन के साथ कम संख्या में ही आएं।

यहां पर भी होगी पूजा

मनकामेश्वर उपवन घाट पर 20 और 21 नवंबर को छठ पूजा होगी। महंत देव्यागिरि के सानिध्य में सूर्य को अ‌र्घ्य दिया जाएगा। इसके अलावा पक्कापुल स्थित छठ घाट, खाटू श्याम मंदिर घाट, पंचमुखी हनुमान मंदिर घाट समेत घरों में पूजा होगी, जहां पर कोविड प्रोटोकॉल को ध्यान में रखते हुए पूजन का आयोजन किया जाएगा।

बाजार में बढ़ी रौनक

सूर्य उपासना के इस पर्व को लेकर बाजार में भी तैयारियां शुरू हो गई हैं। पूजन में मौसमी फल केला, अमरुद, सेब, अनन्नास, हल्दी, सिंघाड़ा, सूप व गन्ने आदि का प्रयोग किया जाता है। बांस की टोकरी में साम‌र्थ्य अनुसार 6, 12 व 24 की संख्या में फल रखकर व्रती के पति या बेटा सिर पर रखकर घाट तक जाते हैं, जहां 36 घंटे के निर्जला व्रत रखने के साथ पूजन किया जाएगा। व्रत का समापन 21 को उदीयमान सूर्य को अ‌र्घ्य देने के साथ होगा।

नहाय-खाए के साथ व्रत की शुरुआत

चार दिवसीय छठ महापर्व की शुरुआत बुधवार 18 नवंबर को नहाय खाय के साथ होगी। इस दिन व्रती महिलाएं रसोई की सफाई करती हैं। दिनभर व्रत रखने के बाद शाम को लौकी की सब्जी व गाय के देसी घी के साथ रोटी का सेवन करती हैं। वहीं 19 नवंबर को खरना व छोटी छठ मनाई जाएगी। इस दिन ठेकुआ बनाने के साथ पूजन की पूरी तैयारी की जाती है जबकि शाम को साठी के चावल व गुड़ की बनी खीर रसियाव के सेवन के बाद 36 घंटे का कठिन निर्जला व्रत की शुरुआत होती है।

21 को व्रत का पारण

इसके बाद 20 नवंबर को अस्ताचलगामी सूर्य को अ‌र्घ्य के साथ मुख्य पर्व की शुरुआत होती है। इस दिन व्रती महिलाएं पास की नदी व तालाब जाकर पानी में खड़ी होकर अस्ताचलगामी सूर्य को अ‌र्घ्य देती हैं, जिसके बाद व्रती महिलाएं घर चली जाती है या फिर घाट पर ही इंतजार करती हैं। इस दौरान व्रती महिलाएं छठ मैय्या के गीत भी गाती हैं। वहीं घाट पर बने छठ मइया के प्रतीक सुसोभिता के पास बैठकर पूजन करती हैं। जहां 6, 12 व 24 दीप जलाएं जाते हैं जबकि 21 नवंबर को उदीयमान सूर्य को अ‌र्घ्य देने के बाद प्रसाद वितरण के साथ ही व्रत का पारण करती हैं।

महिलाएं भरती हैं कोसी

छठ व्रती महिला व पुरुष माटी की कोसी के रूप में षष्ठी देवी की पूजा अर्चना करते हैं। व्रती शाम को पहले अ‌र्घ्य अर्पण के बाद जब घाट से वापस घर को आते हैं तो आंगन में रंगोली बना माटी के हाथीनुमा कोसी की पूजा अर्चना करते हैं, जिसके ऊपर ईख का चनना बनाकर पूजा की जाती है, जिसे महिलाएं कोसी भरना भी कहती हैं।

पूजा का प्रोग्राम एक नजर में

18 नवंबर - नहाए-खाए

19 नवंबर - खरना

20 नवंबर - डाला छठ अस्तचलगामी सूर्य को अ‌र्घ्य

21 नवंबर - उगते सूर्य के साथ अ‌र्घ्य व व्रत पारण