- उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने आईटीआर भवन का किया लोकार्पण

- राज्यपाल राम नाईक, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी रहे मौजूद

- आरटीआई भवन बनवाने के लिए राज्य सरकार की सराहना की

LUCKNOW: उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी ने कहा कि आरटीआई के अधीन सूचना मांगने वाले लोगों को प्रोत्साहित करना और उन्हें सुरक्षा देना जरूरी है। हाल ही में सूचना मांगने वालों पर हमले आदि की घटनाएं सामने आई हैं, इन्हें गंभीरता से लेने और रोकने की जरूरत है। ऐसे मामलों की संख्या कम होना भी सूचना मांगने वालों की कमजोर स्थिति को दर्शाता है। राज्यों में पुलिस अधिकारियों को इस बाबत संवेदनशील होना चाहिए। अपराध करने वालों को कठोर सजा देने से सख्त संदेश जाएगा। उपराष्ट्रपति सोमवार को गोमतीनगर स्थित आईटीआर भवन के लोकार्पण कार्यक्रम में बोल रहे थे। इस अवसर पर राज्यपाल राम नाईक, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव व इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के न्यायाधीश एपी शाही भी मौजूद थे।

धमकी से भी हो जाता है काम

उपराष्ट्रपति ने आरटीआई भवन के लोकार्पण के बाद अपने संबोधन में कहा कि कई बार तो आरटीआई की धमकी मात्र से ही सरकारी मशीनरी काम करने को तत्पर हो जाती है। यह एक लोकप्रिय शब्दावली बन चुका है और व्याकरण के क्रिया के तौर पर इसका प्रयोग किया जाने लगा है कि 'यदि ऐसा किया गया या नहीं किया गया तो मैं आरटीआई करूंगा'। इसमें कोई संशय नहीं है कि आजादी के बाद भारत में पारित यह सबसे सशक्त और प्रगतिशील कानूनों में से एक है। ऐसा कहा जाता है कि भारत का सूचना का अधिकार अधिनियम विश्व के सर्वोत्तम कानूनों में से एक है, जिसे लागू किए जाने का ट्रैक रिकॉर्ड उत्कृष्ट है। उन्होंने माना कि अधिनियम की परिवर्तनकारी शक्ति का पूरा उपयोग होना अभी बाकी है। नागरिकों, सरकार, मीडिया और नागरिक समाज द्वारा बहुत सारी बाधाओं को दूर किए जाने की जरूरत है। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जागरुकता का अभाव, सूचना के प्रबंधन और प्रसार के लिए समुचित प्रणाली का न होना, लोक सूचना अधिकारियों में अनुरोधों को निपटाने की क्षमता में कमी, नौकरशाही की मानसिकता और सूचना मांगने वालों को डराया-धमकाया जाना शामिल है। उन्होंने भवन निर्माण के लिए राज्य सरकार द्वारा बजटीय प्रावधान किए जाने की सराहना की। इस अवसर पर मुख्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी, राज्य सूचना आयुक्त अरविंद सिंह बिष्ट, विजय शंकर शर्मा, स्वदेश कुमार, राजकेश्वर सिंह, सैयद मोहम्मद अब्बास, गजेंद्र यादव व हाफिज उस्मान भी मौजूद थे।

उपराष्ट्रपति का आना मुंह में शक्कर जैसा

इस अवसर पर राज्यपाल राम नाईक ने कहा कि इस समारोह में उपराष्ट्रपति का आना, मुंह में शक्कर और ईद मिलन जैसा है। भवन बनने से परिस्थितियां बदली हैं तो काम भी अच्छा होना चाहिए। करीब 18 हजार सूचना अधिकारियों के प्रशिक्षण के साथ जनता को भी इस बारे में प्रशिक्षित किए जाने की जरूरत है कि वे सूचना किस तरह से मांगे। यदि करप्शन अभिशाप है तो आरटीआई कानून वरदान। नाईक ने इस बात पर चिंता भी जाहिर की कि कुछ लोग इसका दुरुपयोग भी कर रहे है। इसकी बाकायदा एक जमात पैदा हो रही है। इसे कैसे रोका जाए, इस पर विचार होना चाहिए। उन्होंने राज्यपाल बनने के बाद का एक किस्सा बताया कि किस तरह एक व्यक्ति ने दस रुपये के स्टैंप पर उनसे सूचना मांगी कि क्या उनकी उम्र वास्तव में 82 साल है, उन्हें कैंसर भी हो चुका है और वे स्वस्थ कैसे हुए। बोले, मुझे लगा कि क्या यह भी आरटीआई के दायरे में आ चुका है।

'बिन भय होए न प्रीत'

समारोह में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पुराने दिन याद करते हुए कहा कि जब लोकसभा में इस कानून पर बहस हो रही थी तो मैं भी मौजूद था। तमाम लोग तरह-तरह की बहस कर रहे थे। यह सच है कि जानकारी देने से सरकारी कामकाज की दक्षता में फर्क पड़ता है। अब तो तकनीक का जमाना है, कानून बनने से सूचना मिलना और आसान हो गया है। इससे सरकारी मशीनरी में कहीं न कहीं भय का माहौल भी बनता है। मुहावरा है कि 'बिन भय होए न प्रीत', यह कानून सरकारी मशीनरी को जवाबदेह बना रहा है। समाजवादी पार्टी की सरकार की प्राथमिकता लोगों को ज्यादा से ज्यादा सुविधाएं व लाभ देने की है।

स्वीडन में बना था कानून

वहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के न्यायाधीश एपी शाही ने अपने संबोधन में कहा कि यह कानून सबसे पहले 1766 में स्वीडन में बना था। इसकी वजह पुरानी सरकार के कारनामों का खुलासा करना थी। अमेरिका जैसे ताकतवर देश को भी इसे प्रथम कानून बनाने में दो सौ साल लग गये। इसके बाद न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया समेत कई देशों में यह कानून बना। देश में पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह इसे लेकर आए थे। कई राज्यों में इस तरह के कानून बनाये गये। केंद्रीय स्तर पर 1998 में अटल बिहारी वाजपेई की सरकार में इसे लागू करने की घोषणा हुई। बाद में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसकी आधारशिला रखी। कहा कि सूचना मांगने से अधिकारियों की कार्यशैली में परिवर्तन आया है। उन्होंने मुख्य सूचना आयुक्त से अनुरोध किया कि आरटीआई के तहत दर्ज मुकदमों की संख्या में कमी लाने के प्रयास किये जाएं।