लखनऊ (ब्यूरो)। वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन द्वारा हर साल 7 अप्रैल को वल्र्ड हेल्थ डे के तौर पर मनाता है। इसबार की थीम 'हेल्थ फॉर ऑल' रखी गई है। अच्छी सेहत और अच्छा इलाज पर हर किसी का हक है। पर इसके बावजूद साधन-संसाधनों की कमी की वजह से मरीजों को अस्पतालों में पूरा इलाज नहीं मिल पाता। राजधानी के केजीएमयू, पीजीआई, लोहिया समेत अन्य अस्पतालों में तमाम दावों के बावजूद जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर की भारी कमी है। अधिकारी केवल वादे करते हैं, लेकिन होता कुछ नहीं।

केजीएमयू

प्रपोजल कई लेकिन धरातल पर नहीं

केजीएमयू में 4 हजार से अधिक बेड, 500 से अधिक फैकल्टी हैं, जबकि यहां रोजाना 5 हजार से अधिक मरीज इलाज करवाने आते हैं। पर इसके बावजूद यहां मरीजों को पूरा इलाज नहीं मिल पा रहा है। कैंसर की जांच के लिए आधुनिक पेट स्कैन मशीन लगाने को हरी झंडी मिलने के बावजूद मशीन अबतक नहीं लग सकी है। ऐसे में मरीजों को महंगी जांच के लिए निजी सेंटर या लोहिया व पीजीआई में लंबी वेटिंग से दो-चार होना पड़ता है। इसके अलावा, कोरोना के बाद यहां इंफेक्शियस डिजीज अस्पताल के प्रस्ताव को मंजूरी मिल चुकी है, पर दो साल के बाद भी इसके लिए जमीन तक तय नहीं हो पाई है। प्रवक्ता डॉ। सुधीर सिंह के मुताबिक, जल्द ही मशीन लग जायेगी। मरीजों के हितों के लिए संस्थान हमेशा तत्पर है।

लोहिया संस्थान

नहीं शुरू हो पा रहा न्यूरो साइंस सेंटर

लोहिया संस्थान में 100 बेड का एडवांस न्यूरो साइंस सेंटर शुरू होना था। इसके लिए करीब 34 करोड़ का बजट भी पास हो चुका है। इसमें हेड इंजरी सर्जरी, ब्रेन ट्यूमर सर्जरी, स्पाइन इंजरी समेत अन्य जटिल न्यूरो सर्जरी होगी। सेंटर का लोकापर्ण साल 2021 हो चुका है। पर अब तक यह सेंटर तैयार नहीं हो पाया है। जिसकी वजह से ट्रामा और न्यूरो से संबंधित मरीजों को समुचित इलाज नहीं मिल पा रहा है।

पीजीआई एपेक्स ट्रामा सेंटर

स्टाफ का अभाव बड़ी दिक्कत

केजीएमयू ट्रामा का लोड कम करने के लिए पीजीआई एपेक्स ट्रामा सेंटर की शुरुआत की गई थी, पर इसका फायदा मरीजों को नहीं मिल पा रहा है। करीब 200 बेडों से हुई शुरुआत के बाद कोरोना काल में 320 बेडों का अस्पताल तैयार किया गया था। पर जब इसे दोबारा ट्रामा के तौर पर शुरू किया गया तो महज 80 बेड ही शुरू हो सके, क्योंकि डॉक्टर और स्टाफ की कमी के कारण यह पूरी क्षमता से शुरू नहीं हो पा रहा है, जिसके चलते मरीजों को केजीएमयू ट्रामा ही रेफर कर दिया जाता है। वहीं, 210 बेड वाला न्यू इमरजेंसी मेडिसिन भी पूरी क्षमता के साथ नहीं चल पा रहा है। निदेशक प्रो। आरके धीमन के मुताबिक, स्टाफ बढ़ाने की दिशा में काम किया जा रहा है। उम्मीद है कि जल्द ही इसे पूरी क्षमता के साथ शुरू किया जाएगा।

बलरामपुर अस्पताल

एमआरआई मशीन का इंतजार

प्रदेश के सबसे बड़े जिला अस्पताल, बलरामपुर अस्पताल में एमआरआई की सुविधा नहीं है। इसके लिए 2017 में बजट पास हुआ था। करीब 92 लाख के बजट से भवन का एक हिस्सा तैयार भी हो गया है। पर मशीन लगने का इंतजार लंबा होता जा रहा था, जबकि मशीन को बीते साल अप्रैल माह में ही लग जाना था। अस्पताल में रोजाना करीब 20 से 30 मरीजों को एमआरआई कराने की जरूरत पड़ती है। ये मरीज इमरजेंसी, ओपीडी में हड्डी, न्यूरो व मेडिसिन विभाग के होते हैं। लोहिया संस्थान में तीन एक्सरे टेक्नीशियन को ट्रेनिंग दिलाई जा चुकी है। सीएमएस डॉ। जीपी गुप्ता के मुताबिक, एमआरआई भवन हैंडओवर हो गया है। मशीन जैसे ही आएगी जांच शुरू हो जाएगी।

सिविल अस्पताल

कैथ लैब और आईसीयू तक नहीं

वीआईपी सिविल अस्पताल, जो सीएम आवास से चंद दूरी पर है, यहां रोजाना ढाई हजार से अधिक मरीज आते हैं, पर इसके बावजूद यहां कैथ लैब और बड़ों के लिए आईसीयू वेंटिलेटर की सुविधा नहीं है। जिसके चलते एंजियोग्राफी व एंजियोप्लास्टी के लिए मरीजों को दूसरे अस्पताल रेफर करना पड़ता है। निदेशक डॉ। नरेंद्र अग्रवाल के मुताबिक, प्रपोजल बनाकर शासन में भेजा गया है। उम्मीद है कि जल्द ही अप्रूवल मिल जाएगा।

लोकबंधु अस्पताल

ब्लड बैंक का इंतजार

लखनऊ-कानपुर रोड स्थित लोकबंधु अस्पताल में 300 से अधिक बेड हैं। यहां रोजाना 1500 से अधिक मरीज आते हैं। यहां सर्जरी के साथ डिलीवरी भी होती है, लेकिन ब्लड बैंक की सुविधा का अभाव है। बीते साल इसके प्रस्ताव को हरी झंडी मिलने के साथ 1.15 करोड़ का बजट जारी किया गया था। पर अभी तक ब्लड बैंक शुरू नहीं हो सका है। जिसके चलते मरीजों को ब्लड के लिए दूसरे अस्पतालों पर निर्भर रहना पड़ता है। इसमें उनके कई घंटे खराब हो जाते हैं। अस्पताल के एमएस डॉ। अजय शंकर त्रिपाठी ने बताया कि ब्लड बैंक का इंफ्रास्ट्रक्चर पूरा है। मेडिकल कार्पोरेशन से मशीनों के आने का इंतजार है, जिसके बाद लाइसेंस के लिए अप्लाई करेंगे। उम्मीद है कि करीब दो-तीन माह ब्लड बैंक शुरू हो जाएगा।