- श्रुत पंचमी जैन शास्त्रों का लेखन विषय पर हुआ वेबिनार

LUCKNOW: महावीर के वाद जैन दर्शन के सूत्रों का लेखन ब्राह्मी लिपि में हुआ है। भाषा विकास के साथ ही उत्तरोत्तर विभिन्न भाषाओं में जैन दर्शन शास्त्रों का विकास हुआ है। ये बातें मंगलवार को प्रो। फूलचंद्र ने बताई। जो उप्र जैन विद्या शोध संस्थान की ओर से आयोजित श्रुत पंचमी जैन शास्त्रों का लेखन विषय पर वेबिनार में बतौर अध्यक्ष शामिल हुए थे।

वक्ताओं ने रखे विचार

वेबिनार में संस्थान के उपाध्यक्ष प्रो। डॉ। अभय कुमार जैन ने बताया कि प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव के काल से अंतिम तीर्थंकर महावीर तक सत्य, अहिंसा और शाकाहार के उपदेश गुरुकुलों में शास्त्रोक्त विधि से कंठस्थ कराये और समझाये जाते थे। पहली सदी में श्रुत आचार्य धरसेन को अनुभूति होने लगी कि आगे आने वाले समय में जनकल्याणकारी उपदेश यथावत आम लोगों तक पहुंचने चाहिए। धरसेनाचार्य ने योग्य शिष्यों पुष्पदंत एवं भूतबलि को आशीर्वाद देकर जैन सिद्धांतों को लिपिबद्ध करने को कहा। मुख्यवक्ता प्रो। वीर सागर जैन कहा कि हमारे पूर्व आचायरें ने शास्त्रों की समय समय पर विभिन्न भाषाओं में रचना कर हम सब पर बहुत बड़ा उपकार किया है। दान और करुणा की प्रेरणा देने में जैनशास्त्रों की उपयोगिता अत्यंत अधिक है। वहीं अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान के अध्यक्ष भदंत शांतिमित्र ने कहा कि जैन शास्त्रों में वर्णित अहिंसा और सत्य का स्वरूप मानवीयता को बढ़ाता है। संस्थान के निदेशक डॉ। राकेश सिंह ने धन्यवाद ज्ञापित किया।