- 21 साल पहले शुरू किया था एक बेटी के विवाह से सफर, हर साल 40 बेटियों का करते हैं कन्यादान

- चैत नवरात्र पर छोहरिया माता मंदिर परिसर में आयोजित किया जाता है सामूहिक विवाह

LUCKNOW : आंखों से नीर छलकता है, अधरों से प्यार बरसता है, दिल में पीड़ा सी होती है, जब कन्यादान होता, उन हाथों का कर्ज कोई नहीं चुका सकता, जिन हाथों ने कन्यादान किया। चिनहट के लल्ला पंडित और सिराज अहमद जब एक साथ मिलकर गरीब बेटियों का पिता बनकर उनका कन्यादान करते हैं तो उनकी आंखों में अपनेपन का अहसास साफ देखने को मिलता है। लोग भी उनके इस कदम की भूरि भूरि प्रशंसा करते हैं। दोनों की जोड़ी हर साल करीब 40 बेटियों का कन्यादान करती है।

21 साल पहले की थी शुरुआत

चिनहट निवासी लल्ला पंडित छोहरिया माता मंदिर के पुजारी हैं। 21 साल पहले अपने मकान में गृह प्रवेश के साथ ही एक निर्धन कन्या का विवाह कराया था। इस काम में उनके साथ सिराज अहमद भी थे। दोनों ने अपनी मेहनत की कमाई से विवाह कराया। गरीब कन्या के विवाह की यह परंपरा हर साल बढ़ती गई और चैत नवरात्र के दसवीं के दिन मंदिर में 40 जोड़ों का विवाह कराया जाता है। शुरुआत में लल्ला पंडित व सिराज अहमद अपनी कमाई का हिस्सा खर्च करते थे, हालांकि हिंदू मुस्लिम एकता की इस अनूठी परंपरा को देख इलाके के लोग भी उनके साथ जुड़ते गए।

स्थानीय बारातियों का करते स्वागत

धर्म, जाति से ऊपर हिंदू मुस्लिम युवा बैंड बाजा का स्वागत करने के लिए मौजूद रहते हैं। बारात चिनहट कस्बा से होकर छोहरिया माता मंदिर पहुंचती है जहां लल्ला पंडित, सिराज अहमद बारातियों का स्वागत करते हुए बेटियों का कन्यादान करते हैं। उनके अलावा अब इलाके में रहने वाले कई मुस्लिम परिवार बेटियों को उनकी नई गृहस्थी के लिए अपनी तरफ से पंखा, कपड़े, साइकिल, बर्तन भेंट करते हैं।

कभी नहीं मांगी सरकारी मदद

लल्ला पंडित का कहना है कि कभी उन्होंने निर्धन बेटियों के विवाह के लिए न सरकरी मदद मांगी और न ही विधायक, मंत्री के चक्कर लगाए। लल्ला पंडित, सिराज अहमद बताते हैं कि उन बेटियों की खासतौर से शादी कराते हैं जिनसे पिता का साया दूर हो गया।

कोरोना में भी जारी रखी परंपरा

कोरोना काल के दौरान परंपरा को बंद नहीं किया गया। सरकारी कोविड 19 की गाइडलाइन का पालन करते हुए बीस बेटियों का कन्यादान किया गया। बारात नहीं निकली, बैंड बाजा नहीं बजा और न ही लोगों ने मेहमानों को बैठाकर भोजन कराया गया। हर जोड़े के साथ केवल तीन लोग बुलाए गए और लंच पैकेट देकर बेटियों को विदा किया गया।