लखनऊ (ब्यूरो)। देश को 2025 तक टीबी मुक्त बनाने के लिए केजीएमयू अहम भूमिका निभाएगा। इसके लिए केजीएमयू को सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के तौर पर विकसित किया जायेगा। पूरे देश में इस तरह के सात सेंटर तैयार किए जाएंगे। यह जानकारी इंटरनेशनल यूनियन अंगेस्ट टीबी एंड लंग डिजीजेस में ड्रग रेजिस्टेंट टीबी के उपचार को और गुणवत्तापूर्ण बनाने के लिए आयोजित ट्रेनिंग प्रोग्राम के दौरान केजीएमयू के रेस्पिरेट्री मेडिसिन विभागाध्यक्ष प्रो। सूर्यकांत ने दी।

हर जिले में एक डीआर टीबी सेंटर

प्रो। सूर्यकांत ने आगे बताया कि केजीएमयू प्रदेश के सभी मेडिकल कालेजों और डीआर टीबी सेंटर की व्यवस्था को और चुस्त दुरुस्त बनाने में सहयोग को तत्पर है। इसके साथ ही स्क्रीनिंग, जांच और उपचार से जुड़े स्वास्थ्य कर्मियों को ट्रेनिंग देने का काम किया जायेगा। प्रदेश के हर जिले में एक डीआर टीबी सेंटर बनाने पर भी स्वास्थ्य विभाग के साथ गंभीरता से विचार चल रहा है। अभी प्रदेश के 56 जिलों में डीआर टीबी सेंटर हैं। इसके अलावा 24 नोडल डीआर टीबी सेंटर मरीजों को बेहतर इलाज में हर संभव मदद कर रहे हैं।

बारामुला टीबी मुक्त जिला

इस पर विशेष ध्यान देना है कि अपने गांव, मुहल्ले, कस्बे, वार्ड को टीबी मुक्त बनाते हुए जिले को टीबी मुक्त बनाया जाए। जम्मू-कश्मीर का बारामुला जिला देश का पहला ऐसा जिला है जो टीबी मुक्त हो चुका है, तो दूसरे जिले क्यों नहीं हो सकते। क्षय उन्मूलन के लिए देश को छह जोन में बांटा गया है, जिसमें उत्तर प्रदेश उत्तरी जोन में आता है।

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टीबी के मरीजों में फाइब्रोसिस से बढ़ी समस्या

टीबी का कोर्स पूरा होने के छह साल बाद करीब 41.18 फीसदी मरीजों को सांस संबंधी बीमारी पनप आती है। जबकि 56 प्रतिशत मरीजों में छह साल के भीतर सांस संबंधी बीमारी के लक्षण विकसित हुए। ऐसा फाइब्रोसिस की वजह से होता है। इससे फेफड़ों की कार्यक्षमता कम हो जाती है। बीमारी का पता लगाने के लिए पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट यानि पीएफटी जांच की जाती है। आधुनिक मशीनों से फेफड़े की कार्यक्षमता का सटीक पता लगाया जा सकता है। यह जानकारी पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ। वेद प्रकाश ने शुक्रवार को आयोजित यूपीटीबीसी कॉन-22 के दौरान बताई। कार्यक्रम के दौरान एक्सपर्ट ने बताया कि मरीज को टीबी का इलाज बीच में नहीं छोडऩा चाहिए। यह मरीज के लिए घातक साबित हो सकता है। टीबी ठीक होने के बाद भी उसका असर फेफड़ों की सेहत पर पड़ता है। फाइब्रोसिस की आशंका बनी रहती है। अब केजीएमयू में फेफड़ों की आधुनिक जांच की सुविधा है।