लखनऊ (ब्यूरो)। केजीएमयू में प्लास्टिक विभाग में बड़ी संख्या में बर्न केस के मरीज आते हैं। इनमें से कई ऐसे होते हैं, जिनकी स्किन पूरी तरह डैमेज हो गई होती है और उन्हें स्किल ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ती है। हालांकि, केजीएमयू में स्किन बैंक बनना है लेकिन अभी उसमें समय है। ऐसे में विभाग द्वारा आर्टिफिशियल स्किन का यूज बर्न पेशेंट के लिए किया जा रहा है।

दो तरह की आर्टिफिशियल स्किन
प्लास्टिक सर्जरी विभाग के हेड प्रो। विजय कुमार ने बताया कि आर्टिफिशियल स्किन एक डर्मल सबस्टीट्यूट है। जो मार्केट में दो प्रकार का मिलता है। पहला, सिंथेटिक तरीके से बनाया हुआ और दूसरा एनीमल से निकाले हुए कुछ डर्मिस होते हैं।

छोटे एरिया में लगाते हैं
प्रो। विजय कुमार के मुताबिक इन आर्टिफिशियल स्किन को छोटे एरिया में लगाया जाता है। इस 7 से 15 दिनों तक मरीज की स्किन पर लगे रहने दिया जाता है। जिसके बाद इसे हटाया जाता है। तब तक इसके नीचे नई स्किन आ जाती है और जो पपड़ी बन जाती है वो खुद ही हट जाती है। जिससे कोई स्कार नहीं होता है और स्किन एकदम नई जैसी ही लगती है।

महंगा है इसका इलाज
इसके ट्रीटमेंट में आने वाले खर्च को लेकर प्रो। विजय ने बताया कि इसका यूज थोड़ा महंगा पड़ता है। एक छोटे से हिस्से में इसे लगाने के लिए करीब 15 हजार रुपये खर्च करने पड़ते हैं। हालांकि, यह तरीका वहां बेहद कारगर है, जहां घाव बेहद गंदे होते हैं और उनकी सर्जरी नहीं की जा सकती है। विभाग में इस ट्रीटमेंट का कई मरीज फायदा उठा चुके हैंं। ये मरीज अब पूरी तरह से फिट हैं। हालांकि, इसका मार्केट लगातार बढ़ता जा रहा है। उम्मीद है कि आने वाले समय में और कंपनियां इसे बनाने लगेंगी, जिससे इसके दामों में कमी आएगी।

आर्टिफिशियल स्किन एक तरह का डर्मल सबस्टीट्यूट है। विभाग में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। अभी इससे इलाज थोड़ा महंगा पड़ता है। हालांकि, पूरी उम्मीद है कि आने वाले समय में इसका इलाज सस्ता हो जाएगा।
- प्रो विजय कुमार, हेड, प्लास्टिक सर्जरी, केजीएमयू