लखनऊ (ब्यूरो)। एक ओर सरकार स्वास्थ्य के क्षेत्र में लगातार काम कर रही है। बच्चों को लेकर कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। जिसमें इम्युनाइजेशन सबसे बड़ा अभियान है। इसके बावजूद कई ऐसी नॉन कम्युनिकेबल गैर संचारी रोग डिजीज हैं जिनको ताउम्र मैनेज करना होता है। जिसमें, डायबिटीज, थैलेसीमिया, कैंसर, अल्जाइमर, ऑटोइम्यून रोग आदि प्रमुख हैं। लेकिन कई बीमारियों को लेकर सरकार की उदासीनता समझ से परे है। अगर कैंसर जैसे रोगों के लिए योजनाएं हैं तो बच्चों में होने वाले टाइप-1 डायबिटीज के लिए कोई योजना क्यों नहीं है। आखिर बच्चों के साथ यह भेदभाव क्यों किया जा रहा है।।।

मिल रहा इलाज का पैसा
नॉन कम्युनिकेबल डिजीज वो हैं जो एक से दूसरे में नहीं फैलती हंै। इनके लिए सरकारी संस्थानों में विभिन्न मदों के तहत इलाज के लिए बजट जारी किया जाता है। केजीएमयू के प्रवक्ता डॉ। सुधीर सिंह के मुताबिक कैंसर के इलाज के लिए सीएम कोष, पीएम कोष, असाध्य स्कीम बीपीएल कार्ड धारक, आयुष्मान योजना और पं। दी दयाल योजना के तहत खर्च मिलता है। सीजीएचएस स्कीम के अलावा प्रतिपूर्ति के द्वारा केंद्र व स्टेट कर्मचारियों को भी मदद मिलती है। वहीं हार्ट, किडनी व ब्लड संबंधी कई बीमारियों के लिए भी राहत कोष से मदद मिलती है।

इसके लिए बजट नहीं मिलता
अगर बात डायबिटीज की करें तो यह असाध्य रोग नहीं है। नॉन कम्युनिकेबल डिजीज को दवा से ठीक नहीं किया जा सकता है। इनको केवल कंट्रोल किया जा सकता है। जैसे बीपी, डायबिटीज, हार्ट की बीमारी आदि ताउम्र रहती है। इनको केवल कंट्रोल किया जा सकता है ठीक नहीं। ऐसे में कई बीमारियां होती है जिनके लिए अलग से बजट नहीं मिलता है।

अरबों की आर्थिक मदद दी
प्रदेश सरकार की बात की जाए तो सरकारी आंकड़ों के दावों के अनुसार बीते सात वर्षों में 1.87 लाख से अधिक मरीजों को 32.31 अरब की आर्थिक सहायता दी जा चुकी है। जिसके तहत 2023-24 में 9.83 अरब और 2024-25 में जून तक 3.23 अरब की आर्थिक सहायता दी चुकी है। यह आर्थिक मदद जिलों से प्राप्त पत्रों के तहत की गई है। जो जन प्रतिनिधि और जिला प्रशासन या फिर लोगों द्वारा भेजे गये प्रार्थना पत्रों के आधार पर दी गई है।

बच्चों को भी मिलनी चाहिए मदद
ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि जब विभिन्न मदों के तहत इलाज के लिए सरकार द्वारा पैसा मुहैया कराया जा रहा है। तो बच्चों को फ्री इंसुलिन उपलब्ध कराने के लिए राज्य सरकार पहल क्यों नहीं करती है। जबकि, राजधानी सहित प्रदेश भर में हजारों बच्चों को टाइप-1 डायबिटीज की समस्या है।

एनएचएम में चल रहीं कई योजनाएं
नेशनल हेल्थ मिशन के तहत राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम भी चलाया जा रहा है। जिसके तहत जन्म से 18 वर्ष तक के बच्चों के लिए समय दोष, कमी, रोग और विकलांगता सहित विकास में देरी को करने के लिए प्रारंभिक पहचान और हस्तक्षेप करना है। जिसके तहत ऐसे बच्चों को फ्री प्रबंधन किया जाता है। जिसके तहत न्यूरल ट्यूब दोष, डाउन सिंड्रोम, जन्मजात मोतियाबिंद, गंभीर एनीमिया, कुपोषण, ओटिटिस मीडिया, दंत स्थितियां, मोटर विलंब, श्रवण दोष आदि समस्या शामिल है। इसके अलावा इम्युनाइजेशन, बाल स्वास्थ्य आदि प्रोग्राम भी चलाये जा रहे है। वहीं, पहले डायबिटीज टाइप-1 के लिए फ्री इंसुलिन की सुविधा दी जा रही थी, जिसे अब बंद कर दिया गया है। इससे गरीब परिवार के लोग इंसुलिन नहीं खरीद सकते हैं। जिसका सीधा असर बच्चों की सेहत पर पड़ रहा है।

टाइप-1 डायबिटीज से पीडि़त बच्चों के लिए इंसुलिन बेहद जरूरी है क्योंकि बच्चा जीवनभर इस पर निर्भर रहता है। फ्री इंसुलिन मिलने से परिवार को काफी राहत मिल सकेगी।
- डॉ विजय लक्ष्मी भाटिया, पीजीआई

कैंसर समेत कई असाध्य रोगों के लिए विभिन्न योजनाओं के तहत फंड मिलता है। जिसका लाभ मरीजों को मिल रहा है।
- डॉ सुधीर सिंह, प्रवक्ता, केजीएमयू