लखनऊ (ब्यूरो)। कई बार ऐसा देखा जाता है कि पेरेंट्स अपने बच्चों की अच्छाई को छोड़ कर दूसरे बच्चों की अच्छाई देखने लगते हैैं। इसके बाद वे अपने बच्चों की तुलना उनके साथ करने लगते हैैं। कई बार पेरेंट्स ऐसा जानबूझकर करते हैैं और बहुत बार ऐसा अंजाने में हो जाता है। हालांकि, इस कंपैरिजन का बच्चों के दिमाग पर गहरा असर पड़ सकता है। इस तुलना का बच्चों पर क्या असर पड़ता हैै, यह जानने के लिए हमने बात की एलयू के सोशियोलॉजी डिपार्टमेंट के हेड डॉ। डीआर साहू से। इसके अलावा हमने कुछ पेरेंट्स से भी उनकी राय जानी कि वह इस बारे में क्या सोचते हैैं।

बच्चों के दिमाग पर हो रहा बुरा असर

डॉ। डीआर साहू का कहना है कि कभी भी एक बच्चे की तुलना दूसरे बच्चों से नहीं करनी चाहिए। इससे बच्चे पर नकारात्मक असर पड़ता है। पेरेंट्स बहुत बार अपने बच्चे की तुलना उन बच्चों के साथ करने लगते हैैं जो किसी चीज में उनके बच्चों से बेहतर होते हैैं। इससे बच्चों के दिमाग में नकारात्मक ख्याल आने लगते हैैं। उनका आत्मविश्वास कम हो जाता है। इसके अलावा उन्हें लगने लगता है कि वह जीवन में कुछ नहीं कर सकते। कंपेयर करने के बजाए अगर हम बच्चों की तारीफ करें और उन्हें अहसास कराएं वह भी किसी न किसी चीज में अच्छे हैैं तो उनका आत्मविश्वास बढ़ता है और आगे चलकर अच्छा प्रदर्शन करते हैैं।

कंपेयर करने के बजाए दोस्त बनने की जरूरत

पेरेंट कनिका लालवानी का मानना है कि बच्चों के बीच कभी भी कंपैरिजन नहीं करना चाहिए। हर बच्चे में कोई न कोई काबिलियत जरूर होती है। हमें अपने बच्चों का दोस्त बनना चाहिए और उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए। उन्होंने बताया कि उनके दो बच्चे हैैं और उन्होंने कभी उनकी आपस में या दूसरों के बच्चों से उनकी तुलना नहीं की। हालांकि, उनके बच्चों को कभी-कभी महसूस होता है कि उन दोनों की आपस मेंं तुलना की जा रही है।

दूसरों के बच्चों के बजाए खुद के बच्चों पर ध्यान दें

पेरेंट रंजना राजपूत का कहना है कि हमें दूसरे बच्चों से तुलना करने के बजाए अपने बच्चों पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि हर बच्चे में कुछ गुण होते हैैं जो उन्हें दूसरों से अलग बनाते हैैं। हालांकि, कई बार जब दूसरों के बच्चे अच्छा काम करते हैैं तो रंजना को लगता है कि काश उनका भी बच्चा ऐसा ही करे।

मोटिवेट करने के लिए दें दूसरों का उदाहरण

कई बार लोग कहते हैैं कि हमें बच्चों को कंपेयर नहीं करना चाहिए लेकिन डॉ। दीप्ती गुप्ता का मानना कुछ और है। वह कहती हैैं कि हर पेरेंट्स को अपने बच्चे की काबिलियत को पहचानना चाहिए और उन्हें उज्ज्वल बच्चों का उदाहरण देकर मोटिवेट करना चाहिए। हमें बच्चों को टॉप करने के लिए नहीं कहना है बल्कि वे जितना कर रहे हैैं उससे अच्छा करने के लिए मोटिवेट करना है। कंपैरिजन तभी सही होता है जब वह किसी को मोटिवेट करने के लिए किया जाए। इन सबमें सबसे जरूरी है बच्चों की काबिलियत को पहचानना और ये जानना कि बच्चे का इंटरेस्ट किस चीज में है।

कैसे बढ़ाएं बच्चों का आत्मविश्वास

- बच्चों को उनकी कमियां गिनाने के बजाए उनकी अच्छाइयां बताएं। इससे उनको और अच्छा काम करने का हौसला मिलेगा।

- उनके हर अच्छे काम की सराहना करें चाहे वह काम कितना भी छोटा क्यों न हो।

- अगर बच्चों को लगे कि वे कोई काम नहीं कर सकते तो उन्हें शांति से बैठ कर समझाइए और उस काम को करने के लिए प्रेरित करिए।

- दूसरों की बात सुनकर अपने बच्चे के लिए निर्णय न लें, आप अपने बच्चे को ज्यादा बेहतर जानते हैैं।

- अपने बच्चे की काबिलियत को समझें और उसे उसी दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें।