लखनऊ (ब्यूरो)। इंडियन ऑर्थोपेडिक एसोसिएशन कॉन्फ्रेंस के दूसरे दिन शनिवार को ऑर्थोपेडिक प्रगति के भविष्य पर गहन चर्चा हुई। जिसमें प्रमुख विशेषज्ञ शामिल हुए और महत्वपूर्ण विषयों पर उन्होंने चर्चा करते हुए अपना ज्ञान और अनुभव साझा किया। वहीं, विशेषज्ञों ने बुजुर्ग रोगियों के प्रति जिम्मेदारी को समझने और उनके अनुरूप आर्थोपेडिक देखभाल पर जोर दिया। साइंटिफिक चेयरमैन डॉ। विनीत शर्मा ने कहा कि हम आर्थोपेडिक सर्जरी के भविष्य का मार्ग प्रशस्त करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। हमें मरीजों की जरूरतों के अनुसार काम करना चाहिए, ताकि उनको बेहतर इलाज मुहैया कराया जा सके।

बच्चों के लिए अलग ट्रामा और ट्रेनिंग की जरूरत

पीडियाट्रिक ट्रामा की यूपी में बेहद जरूरत है। इसकी वजह यह है कि हमारे यहां मेडिकल एजुकेशन की ट्रेनिंग में पीडियाट्रिक ट्रामा की अलग से ट्रेनिंग नहीं होती है। हमारे देश के ट्रामा सेंटरों में 7 ही लेवल 1 वाले हैं। केजीएमयू में हुई स्टडी में पता चला है कि जांच के लिए आने वाले 30 पर्सेंट बच्चों में मरीजों की भीड़ के चलते चोटें मिस हो जाती हैं। जैसे पेल्विस, रिब्स, कमर की हड्डी और दांतों का फ्रैक्चर जैसी चोटें, जिसके कारण बच्चे आगे चलकर दिव्यांग हो सकते हैं। यही वजह है कि बड़ों और बच्चों के ट्रामा और ट्रेनिंग अलग से होनी चाहिए। रिपोर्ट के अनुसार, चोट के कारण 1 मृत्यु जबकि 4 बच्चे दिव्यांग हो जाते हैं।

-प्रो। अजय सिंह, निदेशक, एम्स भोपाल

फास्ट फूड ऑस्टियोपोरोसिस बढ़ा रही

बच्चों में पहले फ्रैक्चर कम होते थे, लेकिन अब ज्यादा होने लगे हैं। खासतौर पर ट्रामा इंजरी ज्यादा होने लगी है। बच्चों में ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या अब ज्यादा देखने को मिल रही है। जिसके कारण कम इंजरी से ही उनकी बोन फ्रैक्चर हो जा रही है। इसका बड़ा कारण फूडिंग हैबिट है। बच्चे फास्ट फूड का सेवन ज्यादा कर रहे हैं, जिसमें कई प्रिजरवेटिव्स होते हैं, जो ऑस्टियोपोरोसिस के खतरे को बढ़ा रहे हैं। आजकल 30-40 पर्सेंट बच्चों में हड्डियों की कमजोरी की समस्या देखने को मिल रही है। इसमें लड़कों के मुकाबले लड़कियों के नंबर ज्यादा हैं। खासतौर पर 5-10 वर्ष के बच्चों में यह प्रॉब्लम ज्यादा कॉमन है। ऐसे में डेरी प्रोडक्ट्स, एग व नट्स का सेवन करना चाहिए। साथ में विटामिन बी और सी भी बेहद जरूरी है।

-डॉ। मजहर अब्बास, जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज, अलीगढ़

बच्चों में डिफॉरमिटी का खतरा बढ़ा

बच्चों में आजकल विटामिन डी और कैल्शियम की कमी बहुत आम हो गई है। इसकी वजह से बच्चों में डिफॉरमेटी का खतरा बढ़ गया है। कुछ साल पहले बच्चों में होने वाली हड्डियों से संबंधित बीमारियों या फ्रैक्चर के बारे में उतना स्पष्ट पता नहीं चलता था, लेकिन अब सारे इंप्लांट्स जैसे कि प्लेट, डिस्क या क्लिप आदि बच्चों को ध्यान में रखकर बनाए जा रहे हैं। बच्चों में होने वाली आम समस्याओं जैसे कि कोहनी टेढ़ी होना या घुटने टेढ़े होना का इलाज बिना ऑपरेशन के भी किया जा सकता है। आने वाले समय में बच्चों के लिए पीडियाट्रिक ऑर्थोपेडिक्स स्पेशलिस्ट उपलब्ध होंगे।

-डॉ। अनूप अग्रवाल, साइंटिफिक सेक्रेटरी

बच्चों में गर्दन व पीठ दर्द कॉमन समस्या

स्कूल जाने वाले बच्चों में गर्दन और पीठ दर्द की समस्या बेहद कॉमन है। ओपीडी में करीब 10 पर्सेंट बच्चे इसी समस्या के साथ आ रहे हैं। इसका बड़ा कारण मोबाइल, टीवी देखना और बैग का बोझ आदि है। ऐसे में बच्चों को एक्सरसाइज और सही हेल्दी डायट लेना चाहिए। वहीं, बच्चों में बोन एंड ज्वाइंट इंफेक्शन देखने को मिलता है। क्योंकि बच्चा छोटा होने के कारण बता नहीं पाता, जिससे उसका सही से मैनेजमेंट नहीं हो पाता। यह समस्या अधिकतर सालभर से कम उम्र के बच्चों में ज्यादा नहीं पता चल पाती है। इस बीमारी का कारण नेचुरल इम्युनिटी का कम होना, साफ-सफाई न होना आदि है। अगर बच्चा पैर नहीं चला रहा या डायपर बदलते वक्त पैर नहीं फैला रहा, उसे तेज बुखार आ रहा है, तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं। यह समस्या हर 10 में से एक-दो बच्चों में देखने को मिलती है।

-डॉ। सुरेश चंद, केजीएमयू