लखनऊ (ब्यूरो)। केजीएमयू के क्वीन मेरी की फीटल मेडिसिन यूनिट ने पहली बार गर्भस्थ शिशु को मां के पेट से खून चढ़ाकर बड़ी कामयाबी हासिल की है। जिसके बाद गर्भवती की सफल डिलीवरी भी की जा चुकी है। डॉक्टर्स के मुताबिक, जच्चा-बच्चा दोनों स्वस्थ्य हैं। अभी तक यह सुविधा केवल पीजीआई में ही उपलब्ध थी, पर अब क्वीन मेरी में भी मरीजों को इसका लाभ मिल सकेगा। वीसी प्रो। सोनिया नित्यानंद ने पूरी टीम को बधाई दी है।
दो बार किया गया ट्रांसफ्यूजन
केजीएमयू में पहली बार स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग द्वारा गर्भ में पल रहे बच्चे में ब्लड ट्रांसफ्यूजन किया गया। इंट्रायूटेराइन ट्रांसफ्यूजन कहलाने वाले इस प्रोसीजर में अल्ट्रासाउंड की मदद से सुई के जरिये गर्भाशय में ही भ्रूण को खून चढ़ाया जाता है। केजीएमयू के क्वीन मेरी की हेड डॉ। अंजू अग्रवाल ने बताया कि अस्पताल भ्रूण चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करवा रहा है और अब हमने आरएच इसोइम्युनाइजेशन गर्भावस्था के उपचार में सफलता प्राप्त की है।
कानपुर में इलाज चल रहा था
वहीं, डॉ। सीमा मेहरोत्रा ने बताया कि उन्नाव के आर्दश नगर निवासी प्रसूता का कानपुर में इलाज चल रहा था। सात माह की गर्भवती होने पर भ्रूण में खून की कमी पाये जाने पर उसे कानपुर से क्वीन मेरी के लिए रिफर किया गया था। केस हिस्ट्री स्टडी करने पर पता चला कि महिला पूर्व में दो बार गर्भवती हुई थी और इस बार लाल रक्त कोशिका एलोइम्युनाइजेशन समस्या से ग्रसित है। भ्रूण का हीमोग्लोबिन 12 से घटकर 7 बचा था, जिससे हार्ट फेल होने का खतरा बढ़ गया था। जिसके बाद डॉक्टर्स ने गर्भ में ही ब्लड ट्रांसफ्यूजन करने का फैसला लिया। जिसके बाद गर्भाशय में भ्रूण की दो बार ट्रांसफ्यूजन चढ़ाया गया, जिसमें पहला 2 अगस्त और दूसरा 19 अगस्त को चढ़ाया गया था। जिसके बाद 19 अगस्त को 35 हफ्ते में सिजेरियन द्वारा 3 किलो के बच्चे की सफल डिलीवरी करायी गई। जच्चा-बच्चा दोनों ठीक हैं।
गर्भ में ही भ्रूण की मौत हो जाती है
डॉ। नम्रता ने बताया कि मां-बाप के ब्लड आरएच विपरीत होने पर ये स्थिति बनती है। नवजात की मां का ब्लड ग्रुप नेगेटिव और पिता के ब्लड ग्रुप आरएच पॉजिटिव होने के कारण ये स्थिति बनती है। इस विपरीत रक्त समूह के कारण भ्रूण आरएच पॉजिटिव हो सकता है और मां में एंटीबॉडी विकसित होते हैं। ये एंटीबॉडी प्लेसेंटा को पार करते हैं और भ्रूण के आरबीसी को नष्ट कर देते है। जिसके बाद धीरे-धीरे ये भ्रूण में एनीमिया का कारण बनते हैं। ऐसी स्थिति में पूरे भ्रूण में सूजन आ जाती है । ऐसे मामलों में गर्भाशय में ही भ्रूण की मृत्यु हो जाती है। वहीं, डॉ। मंजुलता वर्मा ने बताया कि अमूमन हजार से बारह सौ प्रसूताओं में किसी एक को इसका गंभीर खतरा होता है, लेकिन ट्रांसफ्यूजन से इसको रोका जा सकता है।
टीम में ये रहे शामिल
डॉ। सीमा महरोत्रा के नेतृत्व में डॉ। नम्रता व डॉ। मंजुलता वर्मा और रेडियोलॉजी विभाग के डॉ। सौरभ, डॉ। सिद्धार्थ, पीडियाट्रिक्स विभाग से डॉ। हरकीरत कौर, डॉ। श्रुति और डॉ। ख्याति की टीम द्वारा चिकित्सा प्रक्रिया को पूरा किया गया। ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग की हेड डॉ। तूलिका चंद्र ने ओ नीगेटिव ब्लड उपलब्ध करा कर सहायोग किया।