लखनऊ (ब्यूरो)। केजीएमयू मेडिकल क्षेत्र में टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल की मदद से उपकरण बनाने के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर के साथ मिलकर डीबीटी स्कूल ऑफ इंटरनेशनल बायोडिजाइन-सिनर्जाइजिंग हेल्थकेयर इनोवेशन एंड एंटरप्रेन्योरशिप (एसआईबी-शाइन) फेलोशिप प्रोग्राम के तहत काम कर रहा है, ताकि मेडिकल के क्षेत्र में विदेशी उपकरणों पर निर्भरता कम की जा सके। इसके तहत 8 छात्र 8 आइडिया पर काम कर रहे हैं, जिसमें, ब्रेस्ट कैंसर डिटेक्शन ब्रा, स्पेशल सीपीआर डिवाइस, ग्लू गन आदि पर काम किया जा रहा है। इसका फायदा भारतीय मरीजों को उनके बेहतर इलाज के रूप में मिलेगा।

सही तरह से चलने में डिवाइस करेगा मदद

सुमित वैश्य, प्रोग्राम मैनेजर ने बताया कि एसआईबी-शाइन के तहत 8 आइडियाज पर स्टूडेंट्स काम कर रहे हैं। इनमें खासतौर पर मेडिकल डिवाइस को डेवलप किया जाएगा। इसमें एक डिवाइस फुट ड्राप पेशेंट के लिए बनाई जानी है। इस डिवाइस को पैर में घड़ी के जैसे पहन सकेंगे, ताकि पेशेंट को सही तरीके से चलने में मदद मिले। दरअसल, इस बीमारी में पैर का पंजा पूरी तरह से खुलता नहीं है। इस डिवाइस की अर्ली टेस्टिंग हो गई है और यह काम कर रही है। उम्मीद है कि यह एक साल में पूरी तरह डेवलप हो सकेगी। यह डिवाइस सेलेब्रल और लकवा पेशेंट के इलाज में भी काम आएगी।

ब्रेस्ट कैंसर की मिल सकेगी जानकारी

महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे में, अर्ली डिटेक्शन ऑफ ब्रेस्ट कैंसर बेहद जरूरी है। इसी को देखते हुए एक खास तरह की ब्रा डिजाइन की जा रही है, जिसमें एक पैच लगा होगा, जो ब्रेस्ट में लंप्स को डिटेक्ट कर उसका अर्ली डिटेक्शन करने में मदद करेगा। हालांकि, अभी इसे पूरी तरह बनने में करीब 3 साल का समय लगेगा। इसके अलावा, लैप्रोस्कोपी के दौरान मशीन को लगातार हाथ से पकड़ने और लंबी सर्जरी के कारण हाथों में दर्द होने लगता है। इसकी डिजाइन में बदलाव और अधिक सुविधाजनक बनाने का काम किया जा रहा है, ताकि डॉक्टर बिना थके आसानी से सर्जरी कर सकें।

सीपीआर में डिवाइस करेगा मदद

आजकल हार्ट अटैक के मामले काफी सामने आ रहे हैं। हालांकि, एक सच यह भी है कि सही वक्त पर सीपीआर देकर कई लोगों की जान बचाई जा सकती है। पर ज्यादातर लोगों को इसे देने का सही तरीका नहीं पता होता है। ऐसे में, एक छोटा सा बॉक्स चेस्ट पर लगाने से वह गाइड करेगा कि सीपीआर के वक्त कैसे और कितना प्रेस करना है, ताकि समय रहते मरीज की जान बचाई जा सके। इसके अलावा, अन्य मेडिकल डिवाइसेस पर भी काम चल रहा है।

50-60 आइडियाज मांगे जा रहे हैं

प्रो। ऋषि सेठी, कार्डियोलॉजी विभाग, केजीएमयू और एसआईबी शाइन कार्यक्रम के प्रमुख ने कहा कि करीब पांच साल के इस फेलोशिप प्रोग्राम के तहत 50 बायोमेडिकल इंजीनियर्स को तैयार करने का काम किया जायेगा। पहला बैच जा चुका है और दूसरा बैच आ गया है, जो सर्जरी, ईएनटी, डेंटल आदि विभागों में जा रहे हैं और वहां की जरूरतों को देख रहे हैं। हर किसी से करीब 50-60 आइडिया लिए जा रहे हैं। जिसमें से 2-3 आइडिया लेकर वे जायेंगे और आखिरी में संस्थान में किसी 1 आईडिया को डेवलप करने का काम करेेंगे। इसे विभिन्न क्राइटेरिया को ध्यान में रखने के बाद फाइनल किया जाता है।

पहले बैच के तहत 8 आइडिया पर काम हो रहा है। जिससे मरीजों को बेहतर ट्रीटमेंट देने में मदद मिलेगी। दूसरे बैच ने भी काम शुरू कर दिया है।

-प्रो। ऋषि सेठी, कार्डियोलॉजी विभाग, केजीएमयू और एसआईबी शाइन कार्यक्रम प्रमुख