लखनऊ (ब्यूरो)। अगर कोई आम इंसान क्राइम करता है तो पुलिस उसके खिलाफ फौरन मुकदमा दर्जकर उसे सलाखों के पीछे भेज देती है, लेकिन जब किसी पुलिसवाले का नाम क्राइम से जुड़ता है, तो पीड़ितों को सुबह-शाम थानों के चक्कर लगाने पड़ते हैं। कई-कई महीनों तक उनकी थानों में सुनवाई तक नहीं होती, जिससे वे थक कर कोर्ट से इंसाफ की गुहार लगाते हैं। जिसके बाद पुलिस आरोपी के खिलाफ मजबूरन केस दर्ज कर जांच ठंडे बस्ते में डाल देती है। पढ़ें दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने खास रिपोर्ट

केस-1

फरवरी 2023

लखनऊ कमिश्नरेट पुलिस में तैनात रहे इंस्पेक्टर महेश पर दुष्कर्म के तहत केस दर्ज किया गया था। पीड़ित युवती का आरोप था कि इंस्पेक्टर ने दोस्ती की और फिर उसके साथ अवैध संबंध बनाए। युवती के गर्भवती होने पर उसका अश्लील वीडियो बनाकर गर्भपात करवाने का दबाव बनाया। पीड़िता ने बच्ची को जन्म दिया। इंस्पेक्टर के जुल्मों से तंग आकर कई बार उसने थाने में शिकायत दी, सुनवाई नहीं हुई तो इसकी शिकायत उच्च अधिकारियों से की। जिसके बाद इंस्पेक्टर समेत अन्य पर दुष्कर्म समेत कई गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया था।

केस-2

जनवरी 2024

गोमतीनगर विस्तार थाने में एएसपी राहुल श्रीवास्तव पर दुष्कर्म समेत अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया। पीड़िता का आरोप था कि फेसबुक के जरिए उनकी दोस्ती हुई थी। आरोप था कि उसे यूपीएससी की परीक्षा क्लियर कराने का आश्वासन दिया था। इसके बाद स्टडी मैटेरियल देने और रिसर्च वर्क के बहाने एक होटल में बुलाया। इसी दौरान होटल में उसने उसे कोई नशीला पदार्थ पिला दिया और बेहोश होने पर उसके साथ रेप किया। पीड़िता का कहना है कि वह पिछले कई महीने से इंसाफ के लिए थानों के चक्कर काट रही है।

कई-कई महीनों तक काटने पड़े चक्कर

बीते एक साल में राजधानी में ऐसे कई केस सामने आए हैं, जहां पुलिसकर्मी पर दुष्कर्म से लेकर लूटपाट करने के आरोप लगे हैं। इन पुलिसकर्मियों के खिलाफ केस दर्ज कराने के लिए पीड़ितों को कई-कई महीनों तक थानों के चक्कर भी काटने पड़े, लेकिन पुलिस ने उनकी एक न सुनी। हैरानी की बात है कि पुलिस ऐसे आरोपी पुलिसकर्मियों पर तभी मुकदमा दर्ज करती है जब तक कोर्ट या उच्च अधिकारियों का आदेश न हो।

कोर्ट के आदेश पर हुई एफआईआर

पीड़ित लाखन सिंह ने आरोप लगाते हुए बताया कि एक केस के संबंध में कृष्णानगर थाना गए थे, जहां थानेदार के न होने पर एडिशनल इंस्पेक्टर सुनील कुमार आजाद ने अगले दिन आने की बात कही थी। सात मार्च 2023 को वह थाने गए। आरोप है कि थाने के बाहर इंस्पेक्टर सुनील कुमार आजाद, एसीपी के पेशकार कौशलेंद्र प्रताप सिंह समेत अन्य ने रास्ता रोक लिया, कारण पूछने पर सुनील दुबे ने गालियां देते हुए मारपीट की और जेब से पैसे निकालकर फायरिंग की। इसकी शिकायत को लेकर उन्होंने थाने और उच्च अधिकारियों पास कई-कई महीने चक्कर काटे, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई, कोर्ट के आदेश पर जनवरी 2024 को एफआईआर तो हुई, लेकिन किसी की कोई गिरफ्तारी नहीं हुई।

ठंडे बस्ते में जाता है केस

पीड़ित का कहना है कि उच्च अधिकारियों पर केस दर्ज कराने के लिए पहले थाने में चक्कर लगाने पड़ते हैं। केस दर्ज भी हो जाता है, तो आगे की कार्यवाही पूरी तरह से ठप हो जाती है। छोटे रैंक के पुलिसकर्मियों के केस की इंक्वायरी तो होती है, लेकिन जहां उच्च अधिकारियों का नाम सामने आता है, इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। जिससे साफ दिखता है कि आम पब्लिक के लिए अलग न्याय और उच्च अधिकारियों के लिए अलग कानून बना है, जिसका खामियाजा आमजन को भुगतना पड़ता है।