लखनऊ (ब्यूरो)। राजधानी में ठगी, फ्रॉड और धोखाधड़ी का खेल लंबे समय से खेला जा रहा है। हालांकि, समय के साथ इसके तरीके में बदलाव हुआ है। अब मैनुअल ठगी से ज्यादा वर्चुअल फ्रॉड हो रहे हैं। लखनऊ पुलिस कमिश्नरेट के आंकड़े खुद गवाह हैं कि राजधानी के थानों में दर्ज होने वाले 70 फीसदी केस धोखाधड़ी, फ्रॉड और ठगी के हैं। वर्चुअल फ्रॉड की बात करें तो इसके शिकार सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे लोग ही होते हैं। हालांकि, अगर जरा सी सावधानी बरती जाए तो ठगों के अटैक से बचा जा सकता है।

पर्सनल डिटेल को रखें गोपनीय

साइबर क्राइम सेल के साइबर एक्सपर्ट शिशिर यादव बताते हैं कि आपकी पर्सनल जानकारी जाने बिना बैंकिंग फ्रॉड संभव नहीं है। अपनी पर्सनल डिटेल जैसे क्रेडिट कार्ड नंबर, यूपीआई पिन आदि को गोपनीय रखें। इस तरह की जानकारी किसी को न दें। बैंक या फाइनेंस कंपनीज आपसे ये जानकारियां कभी नहीं मांगती हैं। न ही यूजरनेम, पासवर्ड या अन्य बैंक डिटेल मांगी जाती है।

लिंक या अटैचमेंट को ओपन न करें

साइबर एक्सपर्ट अखिलेश कुमार का कहना है कि अगर आपके इनबॉक्स में आने वाला कोई ई-मेल आपको संदिग्ध लगे तो उसे ओपन न करें और न ही उसका रिप्लाई करें। मेल या मैसेज में किसी भी अनजाने सोर्स से मिले अटैचमेंट को ओपन न करें और इस तरह के मैसेज को तत्काल डिलीट कर दें। पब्लिक वाई-फाई नेटवर्क का यूज न करें।

ऐसा पासवर्ड बनाएं जो क्रैक न हो सके

पेमेंट ऐप में लॉगिन और ट्रांजेक्शन पिन और पासवर्ड बनाते समय इस बात का ध्यान रखें कि पासवर्ड हमेशा ऐसा हो जिसे कोई गेस न कर सके। आसान पासवर्ड रखने से आपके अकाउंट में कोई भी सेंध लगा सकता है। पासवर्ड में हमेशा अपर और लोअर कैरेक्टर के साथ नंबर और स्पेशल कैरेक्टर्स का भी यूज करें। वहीं, अपने फोन पर ऐसी किसी भी ऐप को इनस्टॉल न करें जो गूगल प्ले स्टोर पर उपलब्ध न हो।

फ्रॉड के तरीके और बचाव

अपनी डिटेल्स को रखें सुरक्षित

साइबर एक्सपर्ट्स के अनुसार, आपने ई-कॉमर्स वेबसाइट से ऑनलाइन सामान ऑर्डर किया, फिर उसमें से सामान निकाला और डिब्बे को कूड़ेदान में फेंक दिया। उसमें चिपके बिल में आपका नाम, मोबाइल नंबर, पता आदि सब होता है। ठग उस डिब्बे पर दी गई जानकारी को चुराएगा और एक नया पार्सल तैयार करेगा। आपके घर आकर वह पार्सल देग, जो कैश ऑन डिलीवरी होगा। डिलीवरी बॉय अपना परिचय फेमस कंपनी के नाम पर देगा। जब आप कहेंगे कि यह सामान आपने ऑर्डर नहीं किया है तो वह उसे कैंसल करने के लिए कहेगा। इसके लिए कस्टमर केयर का नंबर भी देगा और बात करके ऑर्डर कैंसल करने को भी कहेगा। कस्टमर केयर आपके नंबर पर ओटीपी जनरेट करेगा। आप जैसे ही कस्टमर केयर को ओटीपी बताएंगे वैसे ही आपका बैंक खाता खाली हो चुका होगा।

बचाव का तरीका

डिलीवरी बॉय पर विश्वास न करें। वह जिस कंपनी का परिचय दे रहा है उसकी वेबसाइट पर दिए कस्टमर केयर नंबर से उस पार्सल की जानकारी लें, न कि डिलीवरी बॉय द्वारा दिए गए नंबर पर। इसके अलावा जब भी डिब्बा फेंके तो उस पर मौजूद आपकी जानकारी को पहले मिटा दें।

फ्री सामान के जरिए भी होती ठगी

आप किसी सुपर मार्केट में शॉपिंग करते हैं तो बिल बनवाते समय कई बार कुछ फ्री प्रोडक्ट के ऑफर दिए जाते हैं। आपसे कहा जा सकता है कि आपका बिल हजार से ऊपर बन रहा है इसलिए आप ये सामान मुफ्त में घर ले जा सकते हैं। इन मुफ्त पैकेट की कीमत 20 से 50 रुपये हो सकती है। जब आप बिल देखेंगे तो इसमें मुफ्त सामान की कीमत शून्य होती है। लेकिन जब आप बिल में मौजूद वस्तुओं की कीमत जोड़ेंगे तो कुल कीमत अधिक होगी। मुफ्त सामान का मूल्य बिल में इस तरह से शामिल किया जा सकता है कि उसकी कीमत दिखाई न दे।

बचाव का तरीका

शॉपिंग के दौरान कोई सामान मुफ्त मिल रहा है और वह आपके काम का नहीं है तो उसे लेने से मना कर दें। अगर आप लेते भी हैं तो वहीं खड़े होकर बिल जांचें और कीमत जोडें़। यदि फ्री सामान का मूल्य इसमें शामिल है तो वहीं इस बात को क्लियर कर लें।

ऑफर कार्ड से भी होती है ठगी

मॉल में शॉपिंग करने के बाद दुकानदार आपको शॉपिंग कार्ड खरीदने की सलाह देते हैं। इसे कोई निश्चित राशि देकर बनवाया जाता है ताकि अगली हर खरीदारी पर आपको छूट मिल सके। उनका हिसाब-किताब थोड़ा उलझा हुआ होता है ताकि ग्राहक को समझ न आए और फायदा भी दिखे। वे सोचने का समय भी नहीं देंगे कि आप समय लेकर उस हिसाब को समझ सकें।

बचाव का तरीका

अगर आपको ऑफर रोचक लग रहा है तो समय लें और फायदा नुकसान जरूर देखें। उन्हें आराम से समझाने के लिए कहें क्योंकि यह ग्राहक का अधिकार है। अगर शॉपकीपर आपको ठीक से नहीं समझा रहा या उसका गणित आपको समझ नहीं आ रहा है तो ऐसे ऑफर स्वीकार करने से पहले जरूर सोचें।