लखनऊ (ब्यूरो)। साइबर फ्रॉड, ठगी, धोखेबाजी, टप्पेबाजी, ये क्राइम वर्ल्ड में एक ही शब्द के पर्यायवाची हैं। हालांकि, कानूनी की किताब में इन सबके के लिए अलग-अलग धाराओं का यूज होता है। ऑनलाइन ठगी के ज्यादातर मामले में आरोपियों की अरेस्टिंग नहीं हो पाती और अगर अरेस्टिंग हो भी जाती है तो रकम की रिकवरी जल्द नहीं हो पाती है, जबकि लूट, चोरी व अन्य करेंसी संबंधित क्राइम में पुलिस बहुत हद तक रिकवरी कर लेती है। साइबर फ्रॉड, ठगी और धोखाधड़ी के केस में जल्दी गिरफ्तारी और रिकवरी न होने के पीछे का कारण है केस की लंबी विवेचना।
लोकल स्तर पर ही पुलिस कर पाती है वर्कआउट
साइबर फ्रॉड व ठगी करने वाले क्रिमिनल्स कहीं से भी बैठ कर ऑनलाइन क्राइम को अंजाम देते हैं। जिसके चलते उनकी अरेस्टिंग बहुत हद तक संभव भी नहीं हो पाती। गिरफ्तारी न होने पर रिकवरी भी नहीं हो पाती। हालांकि, लोकल स्तर पर फ्रॉड व ठगी के केस में पुलिस 50 प्रतिशत से कम मामले में अरेस्टिंग तो कर लेती है लेकिन लंबी विवेचना और लंबे प्रोसेस के चलते रिकवरी बहुत कम हो पाती है। आरोपी को तत्काल पकड़ने पर ही पुलिस रिकवरी कर पाती है, नहीं तो 70 प्रतिशत मामले में रिकवरी निल रहती है।
एफआईआर दर्ज करने में होती है देरी
शहर में ऑनलाइन ठगी का शिकार होने पर पहले तो थानों में जल्दी एफआईआर नहीं हो पाती है। इससे ठगी करने वालों की समय रहते घेराबंदी नहीं हो पाती है। इसका फायदा उठाते हुए ठग अपना मोबाइल नंबर बंद कर देते हैं और जिस खाते में रकम ट्रांसफर करते हैं, उसे भी तत्काल खाली कर देते हैं। इससे न आरोपी मिल पाता है और न ही पीड़ित की राशि वापस हो पाती है। ऐसे कई मामले हैं, जिसमें आरोपियों का पता नहीं चल पाया और न ही पीड़ित को राशि वापस मिल पाई।
साइबर फ्रॉड में बहुत कम होती है अरेस्टिंग
साइबर फ्रॉड के मामले दिन प्रति दिन बढ़ते जा रहे हैं। हर पांचवां व्यक्ति साइबर फ्रॉड का शिकार हो रहा है। एक दशक में साइबर फ्रॉड की कंप्लेन पांच गुना से भी ज्यादा बढ़ गई हैं। 2014 में साइबर सेल में करीब 800 मामले ही साइबर फ्रॉड के आते थे, लेकिन उनकी संख्या बढ़ते-बढ़ते लखनऊ में ही अकेले अब चार हजार तक पहुंच गई है, जबकि साइबर फ्रॉड के मामले में गिरफ्तारी न के बराबर होती है।
दूरी के चलते बच निकलते हैं फ्रॉड
साइबर फ्रॉड के ज्यादातर मामलों में क्रिमिनल्स बच निकलते हैं। इसके पीछे का रीजन यह है कि क्रिमिनल्स दूर किसी शहर व देश से बैठकर साइबर क्राइम को अंजाम देते हैं। एक पैटर्न पर कई बार क्राइम करने के बाद वे अपना नंबर व आईडी चेंज कर देते हैं, जिसके चलते जब तक साइबर पुलिस उन तक पहुंचती भी तो आईडी न होने के चलते गिरफ्तारी नहीं कर पाती। इसके अलावा विवेचक के पास वर्क का ओवर लोड भी गिरफ्तारी व रिकवरी के आड़े आता है। विवेचना की लंबा प्रोसेस और फिर दूरी के चलते विवेचक केवल केस मेें चार्जशीट या एफआर (फाइनल रिपोर्ट) लगाने तक ही सीमित रह जाता है।
एविडेंस को साबित करने में होती है देरी
कोर्ट में सजा केवल मौखिक तत्वों नहीं बल्कि साक्ष्य के आधार पर होती है। फ्रॉड व ठगी के मामले में एविडेंस जमा करना और उसे साबित करना आसान नहीं होता है। कई बार डॉक्यूमेंट्स की जांच में इतना ज्यादा टाइम लग जाता है कि आरोपी उसका फायदा उठाकर बच निकलता है। इसके अलावा फ्रॉड व ठगी संज्ञेय अपराध की श्रेणी में न आने पर कानून में तत्काल गिरफ्तारी न करने का नियम है। किसी भी क्रिमिनल्स की गिरफ्तारी के लिए पुलिस को एक चेक लिस्ट तैयार करनी होती है, जिसे कोर्ट में बताना भी पड़ता है।