- एलयू में डॉ। कुमार विश्वास के कविता पाठ से झूम उठा पूरा कैंपस

- चौथे दिन भरत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की स्मृतियों को समर्पित प्रोग्राम

LUCKNOW: शताब्दी समारोह में पांचवें दिन शाम मशहूर कवि कुमार विश्वास की रचनाओं से सजी। अवध की यह शाम भरत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की स्मृतियों को समर्पित थी। विश्वास ने इस दौरान गीत-संगीत में ढली अपनी चर्चित रचनाओं को गाकर सुनाया। सोमवार को साहित्यिक शाम के मुख्य अतिथि संस्कृति मंत्री डॉ। नीलकंठ तिवारी थे। पंकज प्रसून ने कुमार विश्वास के आने के पहले लोगों को साहित्यिक शाम में बांधे रखा। मशहूर शायर मजाज और इंदौरी के शेर की पैरोडी सुनाई, जिसमें कोरोना काल की स्थितियां बयां की।

हमारे मनोबल के आगे कोरोना कुछ नहीं

कुमार विश्वास ने मंच पर पहुंचते ही लखनऊ पर आधारित गीत गोमती का मचलता ये पानी भी है, हिन्द के उस गागर की निशानी भी हैगाकर सुनाया तो स्टूडेंट्स झूम उठे। उन्होंने इस गीत को विस्तार देने की बात कही। कहा भारत के मनोबल के आगे कोरोना कुछ नहीं। कहा कि आजकल व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी ग्रुप हैं। उन्होंने कोरोना से घृणा और पूजा तक देखे जाने जैसी स्थितियों पर टिप्पणी की।

सुनाए लखनऊ में बिताए किस्से

स्टूडेंट्स कुमार विश्वास के नारे लगाकर विश्वास को जब मंच पर बुला रहे थे। तो उन्होंने आते ही बोले नारे बंद करो यार। इस जय-जयकार में दो साल लग गए। एलयू के पुराने किस्से सुनाते हुए दोस्त कैबिनेट मंत्री बृजेश पाठक व शिक्षक प्रो। रमेश दीक्षित का जिक्र किया। अटल जी के विचारों को सुनाया। साहित्यकार अमृत लाल नागर को याद किया। कहा कि अटल जी की स्मृतियों में सजे मंच पर और अटल जी के यूनिवर्सिटी में आया हूं।

जवानी में कई गजलें अधूरी छूट जाती है

पंक्तियों से शुरुआत कर डॉक्टर विश्वास ने लखनऊ शहर के खूबियों को संकलित कर सम्पूर्ण माहौल में उत्साह का संचार कर दिया। जवानी में कई गजलें अधूरी छूट जाती हैं, का भी उन्होंने वाचन किया। इसके बाद उन्होंने अटल जी की सुप्रसिद्ध कविता गीत नहीं गाता हूं सुनाया फिर उन्होंने हार नहीं मानूंगा, गीत नया गाता हूं भी सुना कर युवाओं में जोश भर दिया। डॉक्टर विश्वास ने ये तेरा दिल समझता है, मोहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है, जैसी कविताये भी सुनाई। पराएँ आंसुओं से आंखे नम कर रहा हूँ मैं, इस अधूरी जवानी का क्या फायदाए बिन कथानक कहानी का क्या फायदा, वक्त के करू कल का भरोसा नहीं, आज जी लो कल का भरोसा नहीं, ताल को ताल की झंकृति तो मिले, रूप को भाव की आकृति तो मिले, अगर देश पर प्रश्न आये तो अपने आप के खिलाफ बोलो अपने बाप के खिलाफ बोलो। उन्होंने कश्मीर पर ऋ षि की कश्यप की तपस्या ने तपाया है तुझे ऋ षि अगस्त ने हम वार बननाया है तुझ, मेरे कश्मीर मेरी जान मेरे प्यारे चमन। कविता सुना कर सम्पूर्ण श्रोताओं को झूमने पर मजबूर कर दिया तथा समस्त श्रोताओं में देश भक्ति का संचार कर दिया।