- गांधी जी के संदेश को आत्मसात कर समाज की मदद का काम कर रहे हैं राजधानी के कई युवा

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LUCKNOW: बापू ने अपने पूरे जीवन में स्वच्छता, स्वावलंबन और दूसरों की मदद करने पर काफी जोर दिया। उनका कहना था कि समाज में बदलाव तभी संभव है जब लोग दूसरों के उत्थान को अपनी जिम्मेदारी समझकर आगे आएंगे। बापू के इन्हीं विचारों से प्रेरित होकर राजधानी के कई युवा लोगों को शिक्षित करने के साथ उनकी मेडिकल हेल्प भी कर रहे हैं। आइए गांधी जयंती पर कुछ ऐसे ही युवाओं के बारे में जानते हैं

गांव में जला रहे शिक्षा की लौ

एलयू में पढ़ाई के दौरान मन में आया कि क्यों न एक ग्रुप बनाकर स्लम के बच्चों को पढ़ाया जाए। इसके बाद हमने मनकामेश्वर मंदिर के पास और न्यू कैंपस के पास के स्लम एरिया के बच्चों को पढ़ाने का निश्चिय किया। यहां हम शेड्यूल बनाकर पढ़ाने जाते हैं। ग्रुप में किसी का बर्थडे होता है तो हम स्लम में जाकर केक काटते हैं और वहां के बच्चों के साथ अपनी खुशियां बांटते हैं। वहीं अगर स्लम में किसी के यहां डेथ की सूचना मिलती है तो वहां जाकर एक पौधा लगाते हैं। लॉकडाउन के दौरान हमने जितना हो सका कच्चा राशन जरूरतमंदों तक पहुंचाया। इन दिनों हम खुले मैदान में बच्चों को सोशल डिस्टेंसिंग के साथ पढ़ाने का काम कर रहे हैं। इस समय करीब 400 स्टूडेंट्स हमारे साथ जुड़े हैं। अब हम गांव में भी बच्चों को शिक्षित करने की ओर बढ़ रहे हैं। वहां बच्चों को किताबें और मास्क देने का काम किया जा रहा है।

दुर्गेश त्रिपाठी, पीएचडी स्टूडेंट

एजुकेशन से परमार्थ का काम

गरीब बच्चों तक शिक्षा पहुंचेगी, तभी समाज में बदलाव आएगा। इसे लेकर हमारे कॉलेज में पांच साल पहले परमार्थ संस्था बनाई गई। इसके अंतर्गत हम स्लम एरिया के बच्चों को कॉलेज लेकर आते हैं और आरटीई से उन्हें स्कूल में एडमिशन दिलाने का काम करते हैं। अब तक करीब 30 बच्चों का हम आरटीई से स्कूल में एडमिशन करा चुके हैं। हम 'पूजा' नाम से उन लड़कियों को भी पढ़ाने का काम कर रहे हैं जो किसी कारण कॉलेज पढ़ने नहीं आती है। लॉकडाउन के दौरान हम लोगों ने दूसरे संस्थानों की मदद से जरूरतमंदों तक राशन और खाने के पैकेट पहुंचाए। हम ब्लड डोनेशन कैंप लगाकर जरूरतमंदों तक ब्लड पहुंचाने का काम भी कर रहे हैं और जरूरतमंदों को मेडिकल हेल्प भी दिलाते हैं। कई गंभीर लोगों का अस्पताल में इलाज कराया है। दूसरों की मदद करने में हमें काफी खुशी मिलती है।

अमन कुमार गुप्ता, कॉलेज स्टूडेंट

ब्लड डोनेशन की जगा रहे अलख

मैं छह साल की उम्र से ब्लड डोनेट कर रहा हूं। अब मेरी उम्र 39 साल है और मैं 80 बार ब्लड डोनेट कर चुका हूं। मैं प्लेटलेट्स डोनर भी हूं। पहली बार मैंने दूसरे की मदद के लिए ब्लड डोनेट किया और धीरे-धीरे ब्लड डोनेशन के प्रति मेरा जोश बढ़ता गया। इसके बाद मैंने रक्त पूरक नाम से एक संस्था बनाई, जिसमें इस समय राजधानी से ही करीब दो हजार वालंटियर्स जुड़े हैं। हमारी कोशिश रहती है कि दूसरे प्रदेशों के जरूरतमंदों को भी ब्लड उपलब्ध करा सकें। इसके लिए हमने एक वाट्सएप ग्रुप 7607609777 शुरू किया है। जरूरतमंद इस पर मैसेज करते हैं तो हम उनकी डिटेल पता करते हैं और इसके बाद ब्लड डोनर से संपर्क कर उनकी मदद करने का प्रयास करते हैं। कैंसर और डायलिसिस वाले पेशेंट की ओर से ब्लड की ज्यादा डिमांड आती है।

बलराज ढिल्लन, वालंटियर ब्लड डोनर

800 बच्चे कर रहे दूसरों की मदद

यूपी और राजस्थान में क्रिकेट खेल रहा था, चोट के कारण क्रिकेटर बनने का सपना टूट गया। एक बार स्लम एरिया गया तो लगा कि ये लोग तो जरा सी मदद में ही खुश हो जाते हैं। वहां से जब वापस आया तो सोचता रहा कि अगर इन लोगों की मदद की जाए तो इनकी खुशी और बढ़ जाएगी। इसके बाद दो और लोग इन लोगों की मदद के काम में मेरे साथ आ गए और आज धीरे-धीरे यह संख्या 800 तक पहुंच गई है। हमारी संस्था को एक साल हो गया है और इसमें जितने भी लोग शामिल हैं, सभी स्टूडेंट हैं। हम एनीमल फीडिंग, प्लांटेशन और पांच स्लम एरिया में बच्चों को पढ़ाने का काम कर रहे हैं। लॉकडाउन में भी हमसे जितना हो सका, लोगों की उतनी मदद की। इन दिनों हमारी संस्था ठेले वालों को मास्क और सेनेटाइजर बांटने का काम कर रही है। दूसरों के चेहरों पर खुशी देखकर हम भी खुश हो जाते हैं।

अच्युत त्रिपाठी, ओनर स्वप्न संस्था