- चार दशक में मुलायम ने देखे कई बड़े उतार-चढ़ाव

- घर से उपजे 'संकट' को भी मुलायम ने ही संभाला

- सपा की कलह ने पार्टी को किया आत्ममंथन को मजबूर

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LUCKNOW : समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव को राजनीति में यूं ही 'धरतीपुत्र' नहीं कहा जाता। चार दशक के राजनीतिक जीवन के दौरान मुलायम ने कई बड़े सियासी उतार-चढ़ाव का सामना किया, लेकिन पहली बार परिवार से उपजी कलह से उन्हें इतना विचलित देखा गया। इसे मुलायम की सूझ-बूझ की मिसाल ही माना जाएगा कि पांच दिन पहले सपा में जो बड़ी दरार पड़ने की आशंका जताई जा रही थी, मुलायम ने अपने फैसलों से पाट दिया। इस मुश्किल घड़ी में मुलायम ही पार्टी के संकटमोचक के रूप में सामने आए। उन्होंने यह भी संकेत दे दिए कि उनके रहते परिवार में फूट नहीं पड़ेगी। साथ ही यह भी साफ कर दिया कि पार्टी में सिर्फ उनकी ही चलेगी।

कई आए और कई गए भी

मुलायम के राजनीतिक जीवन में उनके साथ तमाम नेता आए और छोड़कर चले गये। चौधरी चरण सिंह से राजनीति का ककहरा सीखने वाले मुलायम को रिश्तों का पारखी भी माना जाता है। बूथ स्तर के कार्यकर्ता का नाम तक मुलायम को 75 साल की उम्र में याद रहना इसकी एक बानगी है। चौधरी चरण सिंह के पुत्र चौधरी अजित सिंह के साथ मुलायम राजनीतिक सफर लंबे समय तक नहीं चला। कई बार ऐसे मौके भी आए जब उन्होंने मुलायम के राजनीतिक जीवन की राह में बड़ी रुकावटें डालने की कोशिश भी की, लेकिन आज भी अजित सिंह से उनके रिश्ते कायम हैं। अक्टूबर 1992 में मुलायम ने समाजवादी पार्टी की स्थापना की तो उनके साथ बेनी प्रसाद वर्मा जैसे नेता भी शामिल हुए। बाद में बेनी ने साथ छोड़ा, लेकिन मुलायम ने उनके खिलाफ एक शब्द नहीं कहा। मायावती के साथ समझौता कर सरकार बनाने की नौबत भी आई, लेकिन मुलायम बहुत दिनों तक कांशीराम का दबाव सहन नहीं कर सके और रास्ते बदल लिए। संकट की घड़ी में साथ देने अमर सिंह आए और गए, लेकिन मुलायम कभी उनके खिलाफ मुखर नहीं हुए। 1996 में देवेगौड़ा की सरकार में रक्षामंत्री बनने के बाद एकबारगी लगने लगा कि मुलायम अब सूबे की राजनीति छोड़ राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में बड़ा दांव खेलेंगे, लेकिन देश की राजनीति की दिशा और दशा तय करने वाले यूपी से वे ज्यादा दिनों तक दूर नहीं रह सके और 2003 में फिर से मुख्यमंत्री बने।

सबको साथ लेकर चलने की कला

मुलायम के भीतर सबको साथ लेकर चलने की कला है। यही वजह है कि राज बब्बर जैसे अभिनेता सपा में आए। कुछ मनमुटाव हुआ तो उन्होंने पार्टी छोड़ दी। अमिताभ बच्चन से मित्रता की वजह से उन्होंने जया बच्चन का राजनीति में पर्दापण कराया। बीच में उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को पार्टी में शामिल किया लेकिन यह कवायद लंबी नहीं खिंच सकी। इसके बावजूद दोनों के बीच अच्छे रिश्ते कायम हैं। कभी नितीश के साथ समाजवाद की लड़ाई लड़ने वाले मुलायम ने कई बार उनका साथ दिया, लेकिन हालिया बिहार चुनाव में अचानक अपना फैसला बदल लिया। इसकी असली वजह आज भी किसी को नहीं पता है। बताना मौजू है कि रिश्तों के इस बाजीगर को पहचान कर ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में खुद अमित शाह उन्हें हाथ पकड़ कर आगे की पंक्ति में बैठाने ले गये थे।