LUCKNOW: शादी ब्याह का अनिवार्य हिस्सा मैरिज लॉन, गेस्ट हाउस, कैटरर्स, टेंट हाउस, शहनाई और बैंड बाजे वाले होते हैं। इन सभी को लॉकडाउन ने पूरी तरह लॉक कर दिया है। इस कारोबार से जुड़े लाखों लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है। करोड़ों का झटका झेलने वाली इस इंडस्ट्री से जुड़े लोगों के सामने किस तरह की समस्याएं आई हैं, आइए जानते हैं मयंक श्रीवास्तव की इस रिपोर्ट से

मैरिज लॉन-गेस्ट हाउस

10 हजार मैरिज लॉन और गेस्ट हाउस शहर में

1.5 लाख लोगों को मिलता है काम

एक लाख लोगों का गया रोजगार

राजधानी में छोटे-बड़े मिलाकर 10 हजार के करीब मैरिज लॉन और गेस्ट हाउस हैं। यहां कर्मचारियों की एक पूरी टीम होती है। करीब तीन माह से उन्हें कोई बुकिंग नहीं मिली है, जिसके कारण वहां काम करने वाले कर्मचारियों को घर चलाने के लिए पैसा तक नहीं मिल रहा है।

पर टैक्स तो देना ही होगा

मैरिज लॉन और गेस्ट हाउस कारोबार से जुड़े विनीत तिवारी ने बताया कि लॉकडाउन में कोई काम नहीं मिला है और आने वाले समय में भी काम मिलने की कोई उम्मीद फिलहाल नहीं नजर आ रही है। यह पूरा साल ऐसे ही निकल जाएगा। समस्याएं बहुत हैं इसके बाद भी उन्हें बिजली, पानी, नगर निगम आदि के टैक्स तो देने ही होंगे।

वर्कर गए घर

विनीत तिवारी ने बताया कि इस सेक्टर में कुछ कर्मचारी दैनिक वेतन पर काम करते हैं तो कुछ फिक्स वेतन पर। लॉकडाउन में यहां काम करने वाले फिक्स वेतन कर्मचारी भी अपने घर चले गए हैं। वहीं दैनिक वेतन पर काम करने वाले भी कोई दूसरा काम करने लगे हैं।

करोड़ों का नुकसान

हर साल राजधानी में मैरिज लॉन और गेस्ट हाउस में कम से कम पांच हजार शादियों के फंक्शन होते हैं। इस सीजन में कोई फंक्शन नहीं हुआ है, ऐसे में अब तक करोड़ों का नुकसान हो चुका है। इससे उबरने में मैरिज लॉन और गेस्ट हाउस मालिकों को कम से कम एक-दो साल का समय लग जाएगा।

गेस्ट हाउस व मैरिज लॉन में 8-10 रेगुलर कर्मचारी होते हैं, सीजन में इनकी संख्या काफी बढ़ जाती है। लॉकडाउन के चलते हम लोगों के साथ कर्मचारियों पर भी असर पड़ा है। जिस तरह के हालात है, उसे देखकर इस फील्ड के कई लोग दूसरा कारोबार करने की सोच रहे हैं।

विनीत तिवारी, आरके पैलेस

तीन माह से एक भी बुकिंग नहीं मिली है और आगे मिलती भी नजर नहीं आ रही है। गेस्ट हाउस, मैरिज लॉन को मेंटेन करने में लगने वाला पैसा तो खर्च हो ही रहा है। जल्द हालात नहीं सुधरे तो कारोबार बंद करना पड़ सकता है।

आकाश जायसवाल, राज पैसेल गेस्ट हाउस

50 बड़े टेंट हाउस राजधानी में

15 सौ छोटे टेंट हाउस भी

गया करोड़ों का कारोबार, लाखों का रोजगार

लॉकडाउन के कारण टेंट और डेकोरेशन से जुड़े लोगों के सामने भी आर्थिक संकट आ गया है। इस फील्ड के ओनर किसी तरह दो माह तक अपने कर्मचारियों की मदद करते रहे लेकिन अब उनकी हिम्मत भी टूट रही है। सभी एक दूसरे से यही पूछ रहे हैं कि आखिर लॉकडाउन कब खत्म होगा और फिर से उनका धंधा शुरू होगा।

बाहरी कारीगरों को मिलता था काम

इस फील्ड से जुड़े जमील शम्सी ने बताया कि लखनऊ में कई बड़े टेंट हाउस और डेकोरेटर काम कर रहे हैं। जिनके यहां शहर के लोगों के साथ कोलकाता, बिहार के कामगारों को भी काम मिलता था। एक से डेढ़ लाख लोगों की रोजी-रोटी इससे जुड़ी है। इस समय यह काम पूरी तरह ठप हो गया है।

सात करोड़ का नुकसान

जमील शम्सी ने बताया कि मार्च, अप्रैल और मई का पूरा सीजन बेकार निकल गया है। आने वाले समय में भी जल्द काम मिलते नहीं दिखाई दे रहा है। नवंबर-दिसंबर की बुकिंग भी नहीं मिली हैं। करीब पांच से सात करोड़ का नुकसान इस फील्ड को अब तक हो चुका है।

लॉकडाउन से पूरा कारोबार पटरी से उतर गया है। अब तो हम अपने कर्मचारियों को उनका पैसा देकर सलाह दे रहे हैं कि वे कोई छोटा-मोटा धंधा करके अपना परिवार पालें। हालात कब ठीक होंगे, पता नहीं, ऐसे में इंसान कब तक संघर्ष करेगा।

जमील शम्शी

टेंट कारोबार के साथ-साथ कई अन्य विंग्स भी इस कारोबार से जुड़ी होती हैं। जिसके चलते कई लोगों की रोजी रोटी चलती है। लॉकडाउन में कारोबार प्रभावित होने के साथ-साथ कई लोगों से रोजगार भी छीन गया हैं।

विजय

300 के करीब बड़े कैटरर्स

12 सौ के करीब छोटे कैटरर्स

बेस्वाद हुआ कैटरिंग का धंधा

पार्टियों पर लगी पाबंदी का असर कैटरिंग उद्योग पर भी पड़ा है। लॉकडाउन के दौरान राजधानी में करीब 400 करोड़ का कैटरिंग कारोबार ठप हो गया है। शादी-ब्याह में कैटरिंग करने वालों को अभी आगे की कोई बुकिंग भी नहीं मिली है। जबकि पहले उनके यहां तीन से पांच माह पहले से ही बुकिंग आने लगती थीं।

50 हजार को मिलता है काम

कैटरिंग कारोबार में सीजन में हर दिन 45 से 50 हजार लोगों काम मिलता है। बड़े कैटरर्स के यहां अपने कारीगरों के साथ दिहाड़ी कारीगर भी होते हैं। बड़े कैटरर्स के यहां एक दिन में 150 से 200 लोगों तक को काम मिलता है।

अब नहीं दिख रही आस

अवध कैटरर्स एसोसिएशन के अनुसार मार्च, अप्रैल, मई में काम पूरी तरह प्रभावित रहा और जून-जुलाई से भी कोई उम्मीद नहीं दिख रही है। अप्रैल से ही पहले नवंबर-दिसंबर की बुकिंग मिलने लगती थी लेकिन इस बार कोई बुकिंग नहीं मिली है। कारोबार फिर कब पटरी पर आएगा, यह कहा नहीं जा सकता।

लॉकडाउन में फंक्शन के साथ सार्वजनिक रूप से शादी-ब्याह पर रोका है। जिसके चलते कैटरिंग कारोबार बंद है। पिछले चार माह से एक भी काम नहीं हुआ है। आगे की बुकिंग भी नहीं आ रही है। कैटरर्स के साथ-साथ उनके कर्मचारियों को भी काफी नुकसान हो रहा है।

राहुल जायसवाल

शहर में कैटरर्स सीजन में हर दिन हजारों लोगो को रोजगार देते हैं। लॉकडाउन के चलते कैटरिंग कारोबार पूरी तरह से ठप होने के चलते हजारों लोगों का रोजगार भी पूरी तरह खत्म हो गया है। सभी सोच रहे हैं कि यह काम किस तरह फिर से शुरू किया जाएगा।

तरुण साहनी

1.5 करोड़ का नुकसान

500 बैंड कंपनी शहर में

बंद है बैंड कारोबार, 50 हजार बेकार

बिना बैंड बाजा के शादी बारात नहीं होती है। शादी में सबसे ज्यादा क्रेज बैंड का ही होता है, लेकिन जब शादी नहीं हो रही हैं तो बैंड का क्या काम। 8 मार्च के बाद से शादियों में बैंड बजे ही नहीं हैं। 14 अप्रैल से 15 जून तक कई लगन हैं लेकिन लॉकडाउन के चलते फंक्शन पर लगी रोक के कारण किसी भी बैंड वाले के पास कोई बुकिंग नहीं है।

यही कमाई का सीजन

एक बड़ी बैंड कंपनी के ओनर हिमांशु ने बताया कि बैंड टीम में 28 कर्मचारी लगते हैं। जिसमें 16 आर्टिस्ट टीम, 10 लाइट उठाने वाले और दो जनरेट खींचने वाले होते हैं। पांच सौ के करीब बैंड बाजा शॉप शहर में हैं। जिसमें कई बड़े ब्रांड हैं जिनके पास 7 से ज्यादा टीमें हैं। लगन के सीजन में हर दिन करीब दो सौ लोगों को रोजगार मिलता है। लॉकडाउन से करीब डेढ़ करोड़ से भी ज्यादा का कारोबार खत्म हो गया। कर्मचारियों के सामने रोटी तक का संकट खड़ा हो गया है। इस बार तो दिसंबर तक की बुकिंग भी अभी नहीं हो रही हैं।

तीन माह से एक भी काम नहीं मिला है। कुछ बड़े ब्रांड किसी तरह ऑफिस खोल रहे हैं। छोटे बैंड वालों के पास तो अब खाने तक के पैसे नहीं हैं। लॉस्ट बुकिंग 8 मार्च की थी और अब तो दिसंबर तक की बुकिंग नहीं आई हैं।

हिमांशु कांत

बिना बैंडबाजा के शादी नहीं होती है। अब शादी ब्याह पर ही रोक है तो बैंज बाजा कारोबार कैसे चलेगा। आगे भी सार्वजनिक रुप से शादी ब्याह के कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं।

-दीपांशु कांत

30 शहनाई वाले ग्रुप राजधानी में

150 शहनाई बजाने वाले शहर में

शहनाई की गूंज पर भी लगा ब्रेक

शादी के घर में शहनाई की धून से पूरा माहौल खुशनुमा और मंगलकारी बन जाता है। इस धून पर भी लॉकडाउन लग गया है। वादक अब शहनाई की धून निकालने की जगह परिवार चलाने के लिए चौकीदार बनकर जागते रहो की आवाज निकला रहे हैं।

शहर में 150 से अधिक वादक

शहर में करीब 150 से ज्यादा वादक अपने हुनर से अपना और अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं। एक पार्टी में 10 से 15 हजार तक कमाने वाले शहनाई वादक ग्रुप के एक कलाकार के हिस्से में डेढ़ से दो हजार रुपये आते हैं। पूरे सीजन में एक ग्रुप को 50 बुकिंग तक मिल जाती है।

तीन माह से बेकार

शहनाई वादक दिनेश कुमार बताते हैं कि लॉकडाउन के चलते पिछले तीन माह से एक काम नहीं मिला। यहीं नहीं आने वाले लगन सीजन नवंबर, दिसंबर की भी कोई बुकिंग नहीं मिली। कई लोगों ने अपने यहां होने वाले कार्यक्त्रम को रद्द कर दिया।

शहनाई वादकों के कोट

हमारा परिवार पूरी तरह बर्बाद हो गया है। अब न हमारे पर पैसा है और ना ही काम। इस साल काम मिलने की उम्मीद भी नहीं है। अब नौकरी ही उम्मीद है लेकिन वह मिल नहीं रही है।

दिनेश कुमार

लॉकडाउन में कोई काम नहीं मिला और आने वाले समय में भी कोई उम्मीद नहीं दिख रही है। ऐसे हालात में परिवार चलाना भी मुश्किल हो गया हैं। अब तो चौकीदारी व अन्य काम करके ही परिवार पाल रहा हूं।

उपेंद्र कुमार

सरकार से उम्मीदें

- सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए फंक्शन के आयोजन को मिले मंजूरी

- फंक्शन में लोगों के आने की संख्या को बढ़ाया जाए

- कारोबार को बचाने के लिए बाकी सेक्टर्स की तरह उन्हें भी कुछ रियायतें दी जाएं