लखनऊ (ब्यूरो)। एक तरफ जहां सरकार पर्यावरण संरक्षण के लिए कई योजनाएं बना रही है और उस पर अमल भी हो रहा है, वहीं दूसरी ओर रोडवेज की बसों से निकल रहा जहरीला धुआं पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है। न तो रोडवेज बसों से निकलने वाले धुआं की जांच होती है और ना ही इनमें स्मॉग मीटर लगाए जा रहे हैं। यही नहीं कई बसें तो खटारा होने के बाद भी रोड पर दौड़ रही हैं। बीएस सिक्स बसों से विषैली गैसों का उत्सर्जन कम होता है लेकिन विभाग के पास अभी सिर्फ दो हजार बीएस सिक्स बसें ही हैं।

बसों की कमी बनी रुकावट

प्रदेश में इस समय रोडवेज की 12 हजार डीजल बसें चल रही हैं। इनमें तीन हजार से अधिक बसों की लाइफ खत्म हो चुकी हैं। ये बसें आठ साल या फिर डेढ़ लाख किमी का सफर पूरा कर चुकी हैं, लेकिन बसों की कमी के चलते रोडवेज इनकी नीलामी भी नहीं कर रहा है। मरम्मत कर इन बसों का संचालन किया जा रहा है। इसके साथ ही रोडवेज बसों में प्रदूषण भी चेक नहीं हो रहा है। बसों से निकलने वाली विषैले धुंए पर लगाम लगाने के लिए तकरीबन छह साल पहले इनमें स्मॉग मीटर लगाए जाने की तैयारी की गई, लेकिन आज तक ये लग न सके।

लखनऊ में सर्वाधिक प्रदूषण फैला रहीं बसें

परिवहन निगम के अनुसार, शहर में चार डिपो मौजूद हैं। इनमें तकरीबन रोजाना 200 से अधिक बसें मरम्मत के लिए आती हैं। इसके अलावा राजधानी से रोजाना 3000 बसों क आवागमन हो रहा है। शहर में अंदर आने और यहां से निकलने में इन बसों को खासा वक्त लग रहा है। प्रदेश में किसी अन्य शहर में इतनी बसों का आवागमन नहीं होता है। जिससे यहां रोडवेज बसों से सर्वाधिक वायु प्रदूषण फैल रहा है।

रोडवेज बस बेड़े में जल्द ही इलेक्ट्रिक बसें भी शामिल होंगी। ऐसे में यहां से कई डीजल बसें हटा दी जाएंगी। इससे प्रदूषण कम होगा। नई बसें खरीदे जाने की तैयारी की गई है।

-संजय शुक्ला, मुख्य प्रधान प्रबंधक तकनीक, परिवहन निगम