- दो सीएमओ की मौत के बाद खुलीं थी घोटालें की परतें

- आधा दर्जन लोगों की जान ले चुका है घोटाला

- तत्कालीन मंत्री और विधायक आज भी जेल में

- अब चार साल बाद पूर्व मुख्यमंत्री पर लटकी तलवार

-4938 करोड़ रुपये का घोटाला

-8657 करोड़ 35 लाख केंद्र ने स्वास्थ्य मिशन के तहत दिए

-72 जिलों में घोटाले की आंच पहुंची थी

-1085 करोड़ रुपये का पेमेंट बिना किसी के सिग्नेचर

-1170 करोड़ का ठेका कुछ चहेते लोगों के बीच बांटा

yasir.raza@inext.co.in

LUCKNOW: प्रदेश के 72 जिलों में 2005 से लेकर मार्च 2011 के बीच हुआ पांच हजार करोड़ का नेशनल रूरल हेल्थ मिशन (एनआरएचएम) घोटाला फिर चर्चा में है। प्रदेश के अब तक के सबसे बड़े घोटालों में से एनएचआरएम में अब तक आधा दर्जन से अधिक लोगों की जानें भी जा चुकी हैं। यही नहीं एक दर्जन से अधिक लोग अभी सलाखों के पीछे हैं। अब जांच की आंच घोटाले के समय तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती तक आ पहुंची है। सीबीआई जल्द ही मायावती से पूछताछ करेगी।

दो सीएमओ की हत्या के बाद खुली परतें

करीब 5 हजार करोड़ रुपये के इस घोटाले का पता तब चला था जब एक के बाद एक परिवार कल्याण के दो सीएमओ की हत्या कर दी गयी थी। लखनऊ के विकासनगर में परिवार कल्याण के तत्कालीन सीएमओ डॉ। विनोद आर्या और 2 अप्रैल, 2011 को लखनऊ के गोमतीनगर में परिवार कल्याण के तत्कालीन सीएमओ डॉ। बीपी सिंह की हत्या एक ही तरह से मार्निग वॉक के दौरान गोली मारकर कर दी गयी थी। इन दो हत्याओं की जांच के दौरान एनआरएचएम में ठेकों का मामला सामने आया। जांच शुरू हुई तो एनआरएचएम का बड़ा घोटाला सामने आना लगा। 22 जून, 2011 को डिप्टी सीएमओ डॉ। योगेंद्र सिंह सचान की भी संदिग्ध परिस्थितियों में मौत जेल के अंदर हो गयी। हत्या की जांच लोकल पुलिस और क्राइम ब्रांच के साथ यूपी एसटीएफ ने भी शुरू की। शुरुआती जांच में ही हत्या के पीछे एनआरएचएम के ठेकों में घोटाले की बू भी आने लगी थी। इन तीनों मामले के बाद कोर्ट में हत्याओं की जांच सीबीआई से कराये जाने की मांग की गयी, जिसके बाद कोर्ट ने जांच सीबीआई को सौंप दी। यही नहीं एनआरएचएम घोटाले भी सीबीआई के हवाले कर दिया गया।

घोटाले में बड़ों बड़ों के नाम

हजारों करोड़ के इस घोटाले में सैकड़ों लोगों से पूछताछ हुई। कुछ की गिरफ्तारी भी हुई। इसमें तत्कालीन परिवार कल्याण मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा के अलावा तत्कालीन विधायक आरपी जायसवाल, तत्कालीन प्रमुख सचिव परिवार कल्याण प्रदीप शुक्ला, तत्कालीन सीएमओ एके शुक्ला के नाम शामिल हैं। इसमें कई दवा कंपनियों के संचालक और दवा सप्लायर भी अभी सलाखों के पीछे हैं। कभी पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के सबसे खास माने जाने वाले बाबू सिंह कुशवाहा घोटाले में में शामिल थे। सीबीआई ने कई बार की पूछताछ के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया, वह अभी भी गाजियाबाद की डासना जेल में हैं। परिवार कल्याण विभाग के तत्कालीन प्रमुख सचिव रहे प्रदीप शुक्ला पर भी शिकंजा कसा और उन्हें भी सलाखों के पीछे जाना पड़ा। हालांकि कुछ दिन पहले कोर्ट ने उनको जमानत दे दी और वह दोबारा बहाल होकर यूपी की मौजूदा सरकार में सार्वजनिक उद्यम के प्रिंसिपल सेक्रेटरी बन गये। इस घोटाले के कारण तत्कालीन परिवार कल्याण मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा के साथ हेल्थ मिनिस्टर अंटू मिश्रा को भी इस्तीफा देना पड़ा था।

75 केस, 27 में चार्जशीट

सूत्रों की मानें तो एनआरएचएम घोटाले में सीबीआई ने लगभग 75 केस रजिस्टर किये गये थे। इन मामलों में लगभग 30 केस में चार्जशीट कोर्ट को सौंपी गयी।

क्या था सीएजी रिपोर्ट में

कैग की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2005 से मार्च 2011 के बीच एनआरएचएम में पैसों की जमकर बंदरबांट की गई थी। इस दौरान लोगों की सेहत सुधार के लिए 8657 करोड़ 35 लाख रुपये केंद्र ने प्रदेश सरकार को दिया। जिसमें 4938 करोड़ रुपये नियमों की अनदेखी कर खर्च किये गए। 2012 में विधानसभा में पेश सीएजी की 300 पेज की रिपोर्ट में बताया गया था कि एनआरएचएम में 1085 करोड़ रुपये का पेमेंट बिना किसी के सिग्नेचर के ही कर दिया गया। इसके साथ ही बिना करार के ही 1170 करोड़ रुपये का ठेका कुछ चहेते लोगों के बीच बांट दिया गया।

1.40 की टैबलेट 18 रुपये की

घोटाला कितना व्यापक था इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि सीएजी रिपोर्ट में कहा गया कि जिस टैबलेट का रेट एक रुपये 40 पैसे था उसे ढाई रुपये से लेकर 18 रुपये तक में सप्लाई किया गया। इसी तरह पांच रुपये के हैंकी को 100 रुपये में और 500 रुपये की प्लास्टिक कुर्सी को पांच हजार रुपये तक में खरीदा गया था।

कब कब हुई हत्याएं!

इस घोटाले से जुड़े आधा दर्जन लोगों की जान अब तक जा चुकी है। इसमें दो सीएमओ, दो डिप्टी सीएमओ, एक सीनियर क्लर्क और एक प्रोजेक्ट डायरेक्टर शामिल हैं।

27 अक्टूबर, 2010- सीएमओ परिवार कल्याण डॉ। विनोद कुमार आर्या की हत्या

2 अप्रैल, 2011- सीएमओ डॉ। बीपी सिंह की गोली मार कर हत्या

22 जून, 2011 - डिप्टी सीएमओ डॉ। वाई एस सचान की संदिग्ध परिस्थितियों में जेल में मौत

23 जनवर, 2012- प्रोजेक्ट डायरेक्टर सुनील वर्मा की गोली लगने से मौत

15 फरवरी, 2012- डिप्टी सीएमओ शैलेश यादव की संदिग्ध परिस्थितियों में वाराणसी में मौत

सीनियर क्लर्क महेंद्र शर्मा की कई दिनों से लापता होने के बाद उनकी बॉडी खीरी प्राथमिक स्वास्थ केंद्र में मिली थी।