LUCKNOW कोरोना से लड़ाई में जितना संघर्ष डॉक्टर्स कर रहे हैं, उतना ही संघर्ष मरीजों की सेवा करने वाली नर्स भी कर रही हैं, जो कोविड मरीजों के बीच सबसे ज्यादा समय बिताने का काम करती हैं। यह जानते हुए भी कि यह रोग कितना संक्रामक, खतरनाक और जानलेवा है, लेकिन अपने कर्तव्य के आगे वे सभी डर व खतरे को पीछे छोड़ पूरी क्षमता व निष्ठा के साथ अपना काम कर रही हैं। एक ओर वो घर में बच्चों समेत पूरे परिवार का ख्याल रख रही हैं तो दूसरी ओर अस्पताल में मरीजों का भी पूरा ख्याल रख रही हैं। जहां दवा से लेकर खाना व उनसे बातचीत कर उनका मन हल्का करने में मदद कर रही हैं। उनके इसी त्याग और तपस्या पर अनुज टंडन की रिपोर्ट।

पति से मिला है पूरा सपोर्ट

हम लोग पूरी सतर्कता के साथ काम कर रहे हैं। घर पर अलग रूम है। पति मदद करते हैं। एक बच्चा है, उसको दूर रखते हैं। वैसे तो वैक्सीन लगवा चुके हैं। घर में ससुर भी हैं। मैं डेढ़ साल से कोविड में ड्यूटी कर रही हूं। पीपीई किट पहनकर काम करती हूं। मरीज का पूरा ट्रीटमेंट करती हूं। इस दौरान पति सबसे ज्यादा सपोर्ट करते हैं। वहीं मेरे लिए मजबूती और प्रेरणा का स्त्रोत हैं क्योंकि हम लोग नहीं करेंगे तो कौन करेगा। साथ के बहुत लोग पॉजिटिव हुए, लेकिन बाद में फिर काम करने आ गये। उनको देखकर और उर्जा मिलती है। घर आती हूं तो एक घंटा पूरी सफाई में लग जाता है। गरारा, भाप लेना और काढ़ा पीती हूं। इसके अलावा बच्चे से दूर से बात कर लेती हूं। खुद को मजबूत रखती हूं।

। गीता यादव, लोहिया अस्पताल

वीडियो पर बच्चे से करती हूं बात

मैं एक ओर कोविड वार्ड में ड्यूटी कर लोगों की सेवा कर रही हूं तो दूसरी ओर घर पर बच्चों से दूरी बना कर उन्हें संक्रमण से बचाने का काम भी कर रही हूं। मेरा 2 साल का बेटा और 8 साल की बेटी है। पति की सुल्तानपुर के जिला अस्पताल में ड्यूटी लगी है। ऐसे में बच्चों की देखभाल करने वाला कोई नहीं है। उन्हें पड़ोसियों के सहारे छोड़ कर ड्यूटी करने आती हूं। ड्यूटी के दौरान जब बच्चा होता है तो वीडियो कॉल से बात कर आने को बोलती हूं। किसी तरह समझा कर उसे चुप करवा पाती हूं। कई बार बड़ा मुश्किल हो जाता है। खुद को किसी तरह समझाकर मजबूत करती हूं क्योंकि हम लोगों को कोविड मरीजों का भी ध्यान रखना होता है। ऐसे में खुद को मानसिक तौर पर मजबूत कर उनको पॉजिटिव रहने की प्रेरणा देने का काम करती हूं ताकि मरीजों को किसी बात का डर न लगे।

। समिता, बलरामपुर कोविड अस्पताल

बच्चे ने बढ़ाया आत्मविश्सवास

जब कोविड वार्ड में ड्यूटी के बारे में पता चला तो सबसे पहले 5 साल के बेटे को लेकर चिंता बढ़ गई थी। इसे संभालने के लिए गांव से घरवालों को बुलाया। उन्हें आने में एक दिन का समय लग गया तब तक बच्चे को पड़ोसियों के सहारे छोड़ना पड़ा। इस दौरान बच्चे को लेकर काफी चिंता रहने लगी, लेकिन किसी तरह अपने मन को समझाकर मरीजों के बारे में सोचने लगती कि उनको भी तो हम लोगों की जरूरत है। कोविड ड्यूटी के बाद भी कई दिनों तक बच्चे और परिवार से दूर रही। वहीं कोविड वार्ड में ड्यूटी के दौरान जब कभी बच्चे की याद आती थी तो उसकी फोटो देख लिया करती थी। बच्चे ने वार्ड में ड्यूटी करने के दौरान मेरा आत्मविश्वास बढ़ाने काम किया है।

। अर्चना सिंह, बलरामपुर कोविड अस्पताल

रखती हूं पॉजिटिव सोच

मेरे दो बच्चे हैं। पांच साल की बेटी और तीन साल का बेटा। सुबह पांच बजे उठकर घर का सारा काम और खाना बनाना होता है। 8 बजे अस्पताल पहुंचना होता है। वैक्सीनेशन का काम भी करना होता है। लोगों को भी संभालना होता है। शाम को छुट्टी होने के बाद घर आते आते पांच बज जाता है। पॉजिटिव सोच रखकर खुद को मजबूत रखने का काम करती हूं। मरीजों के साथ भी हंस बोल कर बातें करती हूं ताकि उनको भी अच्छा लगे और हम लोगों का भी मन कुछ देर के लिए निगेटिव बातों से दूर रहे।

। रश्मि जीत सिंह, सिविल अस्पताल