- कोरोना के कारण जिन बच्चों के पिता की डेथ हुई, उनके सामने भविष्य को लेकर आया संकट

LUCKNOW :

कोरोना संक्रमण के कारण राजधानी के कई बच्चों के सिर से उनके पिता का साया उठ गया है। इनमें से कई बच्चे तो ऐसे हैं, जिन्हें अभी इसकी जानकारी ही नहीं है। महिला कल्याण विभाग के पास ऐसे करीब 178 बच्चों की जानकारी है, जिसे सत्यापित करके सरकार की बेवसाइट पर डाला गया है। इन बच्चों में से 75 फीसद शहरी क्षेत्र के हैं। ये बच्चे अब किसी रिश्तेदार या दादा-दादी के पास रह रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में बीकेटी, मोहनलालगंज और गोसाईगंज के बच्चों की संख्या अधिक है।

दादा-दादी के भरोसे कुशाग्र और श्रीव

अलीगंज निवासी शुभेश्वर श्रीवास्तव मैकेनिक का काम करके अपने परिवार को पालन कर रहे थे। कोरोना महामारी के कारण अप्रैल में उनकी मौत हो गई। अब उनके परिवार के पास आमदनी का कोई जरिया नहीं है। मजबूरन परिवार गांव चला गया है। उन्हें किसी ने बताया कि सीएम बाल सेवा योजना सरकार ने शुरू की है। इसमें बच्चों को चार हजार रुपए प्रतिमाह मिलेंगे। शुभेश्वर के बच्चे कुशाग्र और श्रीव का भविष्य असमंजस में है। उनकी मां करती हैं कि चार हजार रुपए प्रति माह मिलने से क्या होगा। उनके बच्चे अब दादा-दादी के ही भरोसे हैं।

पड़ोसी कर रहे मदद

जानकीपुरम निवासी रामकल्प प्रसाद अपने 10 साल के बेटे और 7 साल की बेटी को पढ़ाने के लिए मिस्त्री का काम करते थे। कोरोना के कारण लॉकडाउन से काम मिलना बंद हो गया और फिर अप्रैल के अंतिम सप्ताह में संक्रमित होने के 24 घंटे में ही उनकी मौत हो गई। बच्चों और परिवार को पालने में इस समय पड़ोसी अरुण राय उनकी मदद कर रहे हैं। उनके बच्चे अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं।

चाचा के भरोसे हैं गर्वित और भाव्या

मवैया निवासी मनीष कुमार वर्मा की कोरोना से मई में डेथ हो गई। उनका सपना था कि वे तीसरी क्लास में पढ़ने वाली बेटी भाव्या और सातवीं क्लास में पढ़ने वाले बेटे गर्वित को अच्छा मुकाम दिलाएं। उनकी मौत के बाद अब बच्चे अपने चाचा के भरोसे अब हैं। उनके चाचा की भी आय इतनी नहीं है कि वे इनकी अच्छी परवरिश कर सकें। वे कहते हैं कि सरकार से मिलने वाली मदद से कुछ राहत मिल सकती है।

घर में कोई नहीं है कमाने वाला

वशीरतगंज निवासी कारपेंटर विनोद वर्मा संघर्षो के बाद भी अपने दोनों बेटों की अच्छी पढ़ाई करा रहे थे। इसके लिए वे अपने खर्चो में भी कटौती करते थे। कोरोना के कारण उनकी मौत हो गई। उनके बेटों, अभियांश और अभय का कहना है कि मम्मी हाउस वाइफ हैं और घर में कोई कमाने वाला नहीं है। अब शायद हमारा डॉक्टर बनने का सपना अधूरा रह जाएगा।

ऐसे बच्चों की सहायता के लिए मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना के तहत रोज आवेदन आ रहे हैं। ऐसे बच्चों की सरकारी योजना के तहत हर संभव मदद की जाएगी।

आसमां जुबैर, महिला कल्याण संरक्षण अधिकारी

हम लोग ऐसे परिवारों और बच्चों की पूरी मदद करेंगे। जो भी आवेदन आ रहे हैं उनका सत्यापन कराके उनकी मदद के लिए आगे कार्रवाई की जा रही है।

सुधाकर पांडेय, जिला प्रोबेशन अधिकारी, लखनऊ