लखनऊ (ब्यूरो)। कई बार हार्ट में कोई खराबी या समस्या नहीं होती है, पर इसके बावजूद हार्ट अटैक से मौत हो जाती है। ऐसे मरीजों के हार्ट की रिदम यानि गति में गड़बड़ी देखने को मिली है, जो पैदाइशी जीन में म्यूटेशन के कारण होती है। अगर समय रहते इसका पता लगा लिया जाये तो प्रिसीजन मेडिसिन की मदद से इसे काफी हद तक रोका जा सकेगा। इसी तरह रेयर बीमारियों में क्या अलग-अलग होता है, उसके बारे में पता लगाया जाये तो प्रिसीजन मेडिसिन से फायदा मिल सकता है। यह जानकारी लंदन की विलियम हार्वे रिसर्च इंस्टीट्यूट क्वीन मेरी यूनिवर्सिटी के प्रो। धावेंद्र कुमार ने दी।

जांच से पहले उसके बारे में पता हो

सेंटर फॉर एडवांस रिसर्च, केजीएमयू के प्रिसीजन ऑफ पर्सनलाइज्ड मेडिसिन के सेंटर ने दूसरी इंटरनेशनल प्रिसीजन मेडिसिन सिम्पोजियम का आयोजन गुरुवार को किया। इसमें प्रिसीजन इमरजेंसी और क्रिटिकल केयर के नये अनुसंधान एवं भविष्य की शोध का दिशा निर्धारण किया गया। इस सिम्पोजियम में देश एवं विदेश के 150 से अधिक डेलीगेट्स ने प्रतिभाग किया। वहीं, एमोरी यूनिवर्सिटी, अमेरिका की प्रो। माधुरी हेगडे ने होल जिनोम सीक्वेंसिग के पारंपरिक पैथाजिकल जांच की उपयोगिता और इसे अधिक सस्ता एवं सुलभ बनाने की जरूरत पर बल दिया। वीसी डॉ। बिपिन पुरी ने प्रिसीजन मेंडिसिन के नये अनुसंधानों को जल्द से जल्द मरीजों तक पहुचाने पर जोर दिया, ताकि हर मरीज को उसकी आवश्कतानुसार सटीक इलाज मुहैया कराया जा सके। लोहिया संस्थान की निदेशक प्रो। सोनिया नित्यानंद ने ब्लड कैंसर में कार-टी सेल तकनीक को भारत में ही विकसित करने के अपने प्रयासों के बारे में जानकारी दी।

मिलकर काम करेंगे विभाग

कार्यक्रम के दौरान प्रो। एके त्रिपाठी, डीन मेडिकल ने प्रिसीजन मेडिसिन को आम आदमी तक पहुचाने के लिए आवश्यकता पर जोर दिया एवं भारतीयों के जीनोमिक डेटा संग्रहण एवं उसके प्रिसिजन मेडिसिन की उपयोगिता पर प्रकाश डाला। संस्थान के विभिन्न विभाग साथ मिलकर एचआइवी एवं ड्रग रेंसिस्टेंट टीबी के मरीजों का बेहतर इलाज प्रिसीजन मेडिसिन द्वारा उपलब्ध करायेंगे।